
नई दिल्ली। “अनफिनिश्ड: द एंड ऑफ केजरीवाल एरा?” मशहूर टीवी पत्रकार सुमित अवस्थी की लिखी और इन्विंसिबिल पब्लिशर की ओर से प्रकाशित ये किताब पाठकों के बीच धूम मचा रही है। अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की कहानी भारत की सबसे सम्मोहक राजनीतिक कथाओं में एक है। ये कथा आदर्शवाद, विद्रोह, उम्मीद, विरोधाभास और आखिरकार कठोर आकलन वाली है। इस किताब में सुमित अवस्थी एक रिपोर्टर की तीखी नजर और तीन दशकों से राजनीति को करीब से विकसित होते देखने वाली संवेदनशीलता के साथ इस यात्रा में गहराई से उतरे हैं।
छपने वाले दैनिक अखबारों के युग से लेकर मौजूदा 5जी संचालित सुर्खियों वाली तेज रफ्तार तक सुमित अवस्थी भारत के बदलते राजनीतिक और मीडिया परिदृश्य के अग्रिम पंक्ति के गवाह हैं। अरविंद केजरीवाल पर उनकी किताब सिर्फ एक व्यक्ति या पार्टी पर टिप्पणी नहीं, यह एक अंदरूनी व्यक्ति का नजरिया है कि कैसे जनता का भरोसा बनता है, टूटता है और हर चुनावी नारे और शीर्षक के नीचे क्या छिपा होता है? अपने मूल में अनफिनिश्ड: द एंड ऑफ केजरीवाल एरा? एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो उम्मीद के प्रतीक से एक चेतावनी देने वाला कथानक बन गया।
आंदोलन का जन्म
दिल्ली में साल 2011 में जनता गुस्से से उबल रही थी। राष्ट्रमंडल खेलों से लेकर हाई-प्रोफाइल सरकारी सौदों तक में भ्रष्टाचार और घोटालों ने आम लोगों को हाशिए पर धकेल दिया था। यही वह समय था जब इंडिया अगेंस्ट करप्शन (IAC) आंदोलन लोगों की चेतना में फूट पड़ा। उसी साल जंतर-मंतर पर मफलर पहने एक दुबले-पतले व्यक्ति ने अन्ना हजारे के साथ खड़े होकर राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया। जिनका नाम अरविंद केजरीवाल है।
अन्ना हजारे तो राजनीति से दूर रहे, लेकिन केजरीवाल ने इसमें प्रवेश किया। पारदर्शिता, ईमानदारी और लोगों के लिए सही मायने में शासन के वादों के साथ आम आदमी पार्टी (AAP) की अरविंद केजरीवाल ने शुरुआत की। सरकार के विरोध से पैदा हुई पार्टी ने तुरंत लोगों पर छाप छोड़ दी। बिना इस्त्री की शर्ट, चप्पल और “मफलर मैन” की छवि के साथ केजरीवाल ने खुद को आम आदमी के नेता के रूप में पेश किया।
इसके नतीजे में साल 2013 में सियासत में जिसे असंभव माना जाता था, वो हुआ। AAP ने बाहरी समर्थन से दिल्ली में अपनी पहली सरकार बनाई और 2015 में अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने 70 में से 67 सीट जीतकर देश को चौंका दिया! अरविंद केजरीवाल ने राजधानी में कांग्रेस और बीजेपी दोनों को धूल चटा दी। ऐसा लग रहा था कि एक नई तरह की राजनीति देश में आ गई।
वादे, सत्ता और सवालों की शुरुआत
आप के शासन के पहले कुछ वर्षों में व्यापक सुधार हुए। मुफ्त पानी, सस्ती बिजली, मोहल्ला क्लीनिक और सार्वजनिक शिक्षा पर जोर रहा। अरविंद केजरीवाल ने खुद को स्वच्छ शासन और जन-हितैषी राजनीति के चेहरे के रूप में स्थापित किया। उनकी लोकप्रियता आसमान छूती गई और साल 2020 में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में एक और निर्णायक जनादेश हासिल किया।
लेकिन इस नई सियासत की सतह जितनी चमक रही थी, उतनी ही दरारें भी नीचे बनने लगी थीं। अपनी किताब में सुमित अवस्थी बताते हैं कि कैसे सादगी, ईमानदारी और पारदर्शिता के वे मूल्य जो आम आदमी पार्टी को सत्ता में लाए धीरे-धीरे धुंधले होने लगे। आरोप दर आरोप लगने की शुरुआत हुई। फिर गिरफ्तारियां भी होने लगीं। नतीजे में अरविंद केजरीवाल की पार्टी की बेदाग छवि विरोधाभासों के बोझ तले दबने लगी।
सुधार से विवाद तक: पतन की शुरुआत
सबसे पहला झटका शराब नीति घोटाले के साथ आया। जिसकी वजह से केजरीवाल मंत्रीमंडल के दो स्तंभ सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया सहित प्रमुख AAP नेताओं की गिरफ्तारी हुई। मनी लॉन्ड्रिंग और रिश्वत के लिए नीति में हेरफेर के आरोपों ने AAP की छवि को जंगल की आग की तरह खत्म करना शुरू कर दिया। कभी अरविंद केजरीवाल को स्वच्छ राजनीति के प्रतीक के रूप में पेश करने वाली सुर्खियां अब उनके वादों की बुनियाद पर सवाल उठाने लगीं।
इसके बाद “शीश महल” विवाद पैदा हुआ। मुख्यमंत्री आवास का आलीशान नवीनीकरण उस नेता पर करवाने का आरोप लगा, जिसने कभी सादगी से रहने का दावा किया था। अरविंद केजरीवाल पर अब महंगे पर्दे, संगमरमर की दीवारें, रेशमी कालीन और लग्जरी उपकरणों पर करोड़ों खर्च करने का आरोप लग चुका था। यह विरोधाभास इतना गहरा था कि इसे नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता। जैसा कि सुमित अवस्थी ने सटीकता के साथ लिखा है, “वह व्यक्ति जो सिस्टम को साफ करने के लिए झाड़ू लेकर सार्वजनिक मंच पर खड़ा था, अब उससे धूल को नए कालीन के नीचे छिपाने के लिए सवाल किया जा रहा है।”
जनता की भावना में बदलाव
समय के साथ, केजरीवाल से जनता का मोहभंग बढ़ता गया। कोविड-19 के लिए देरी से की गई कार्रवाई और राहत कोष का कम इस्तेमाल, प्रदूषण नियंत्रण परियोजनाओं की विफलता, वादों और प्रदर्शन के बीच का अंतर तेजी से साफ होता गया। सबसे ज्यादा चोट शायद वोटरों के बीच इसकी लगी कि जिस पर उन्होंने विश्वास किया और भावनात्मक तरीके से जुड़े, उसने उस भरोसे को तोड़ दिया था!
अरविंद केजरीवाल को अंतिम सियासी झटका 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में लगा। दिल्ली में कभी अपराजेय मानी जाने वाली AAP ने सत्ता खो दी। केजरीवाल खुद अपने गृह क्षेत्र में बीजेपी के प्रवेश वर्मा से हार गए। जिसे प्रतीकात्मक गिरावट ही माना जाएगा। दिल्ली ने मोहभंग का सिला उनको दे दिया था।
गिरफ्तारी जिसने सब कुछ बदल दिया
मार्च 2024 में अरविंद केजरीवाल को आबकारी नीति मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार कर लिया। एक ऐसे व्यक्ति के लिए जिसने कभी भ्रष्ट मंत्रियों से इस्तीफ़ा मांगा था, यह दृश्य अपरिहार्य था। उनकी गिरफ्तारी ने AAP की राजनीतिक पूंजी के बचे-खुचे धागों को भी तोड़ दिया। पार्टी की आवाज कमजोर हो गई। जनता का समर्थन कम हो गया। उसके नेता कानूनी लड़ाई में उलझ गए।
पुस्तक की सबसे मार्मिक टिप्पणियों में से एक में सुमित अवस्थी लिखते हैं: “राजनीति में वादे करना आसान है। विश्वास बनाए रखना कठिन है। एक बार टूट जाने के बाद यह शायद ही कभी उसी तरह से ठीक हो पाता है।”
पत्रकार का नजरिया
सुमित अवस्थी का संतुलित लहजा अनफिनिश्ड: द एंड ऑफ केजरीवाल एरा? को अलग बनाता है। केजरीवाल के उत्थान और पतन को करीब से कवर करने के बावजूद, सुमित अवस्थी नायक या खलनायक की द्विआधारी कथा के लिए समझौता नहीं करते। इसके बजाय वह तथ्य प्रस्तुत करते हैं, समयरेखाएं बनाते हैं और पाठक को निर्णय लेने देते हैं। उनकी पत्रकारीय ईमानदारी हर अध्याय में स्पष्ट है। खासकर जब वह केजरीवाल की शुरुआती जीत और बाद की विफलताओं दोनों को समान ईमानदारी से उजागर करते हैं। वह न तो मजाक उड़ाते हैं और न महिमामंडन करते हैं। सुमित अवस्थी अवलोकन करते हैं, दस्तावेज बनाते हैं और चिंतन करते हैं। यही बात इस किताब को महत्वपूर्ण और विश्वसनीय बनाती है।
आधुनिक भारतीय राजनीति का आईना
केजरीवाल और AAP से परे, यह किताब इसका भी आईना है कि भारत आज अपने नेताओं से क्या उम्मीद करता है? साफ है जवाबदेही, ईमानदारी और विनम्रता। यह याद दिलाता है कि लोकतंत्र में जनता का भरोसा ही सबसे मूल्यवान है। जब इसे बर्बाद किया जाता है, तो यह न केवल राजनीतिक हार, बल्कि भावनात्मक नुकसान की ओर ले जाता है।
पुस्तक निष्कर्षों के साथ नहीं, बल्कि सवालों के साथ समाप्त होती है। सबसे बड़ा सवाल: क्या मुक्ति संभव है? क्या जनता की भावनाओं में निहित राजनीति इतनी गिरावट के बाद वापस अपना रास्ता बना सकती है?
राजनीति के बारे में जिज्ञासु लोगों के लिए ये किताब जरूरी
चाहे आप राजनीति के छात्र हों, पत्रकार हों, मतदाता हों या कोई ऐसे व्यक्ति जो भारतीय लोकतंत्र के बदलते स्वरूप को समझना चाहता हो, अनफिनिश्ड: द एंड ऑफ केजरीवाल एरा? अवश्य पढ़ें। यह एक राजनीतिक युग की नब्ज को पकड़ता है। जिसकी शुरुआत “भारत बदल रहा है” के नारों से हुई और अंत “क्या गलत हुआ?” के साथ। इस किताब के जरिए सुमित अवस्थी हमें याद दिलाते हैं कि लोकतंत्र केवल नेताओं के बारे में नहीं है। यह हमारे बारे में है। हमारी पसंद, हमारी अपेक्षाएं, हमारी सतर्कता जो इससे जुड़ी हैं।
क्योंकि आखिरकार, किसी भी लोकतंत्र में सबसे ताकतवर आवाज किसी पार्टी या राजनेता की नहीं होती। यह जनता की आवाज होती है।