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‘स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के चलते जनजातियों का पलायन एक बड़ी समस्या’

उन्होंने कहा कि यहां जनजातीय क्षेत्रों में जमीनी स्तर पर काम करने वाले बहुत से लोग आए हैं। हमें उन्हें ध्यान से सुनने की जरूरत है, ताकि दो दिन के विमर्श के बाद इस संबंध में कुछ सकारात्मक चीजें निकाल सकें। हम पहले जनजातीय समाज के लोगों के स्वास्थ्य और उन क्षेत्रों में मौजूद स्वास्थ्य सेवाओं के आंकड़े एकत्रित करें और फिर पर चर्चा करें, तो बेहतर होगा।

नई दिल्ली। जब जनजाति समाज के विकास की बात करते हैं, तो कई पहलू निकलकर सामने आते हैं। जनजाति समाज के पलायन पर भी बहुत बातें होती हैं, लेकिन वास्तव में लोग जनजाति समाज के पलायन के बारे में नहीं समझते हैं। दरअसल, जनजाति समाज का व्यक्ति कभी पूरी तरह से पलायन नहीं करता। वह लौटकर अपने गांव जरूर आता है। हमने इस संबंध में टाटा स्कूल आफ सोशल साइंस से एक सर्वे कराया था। इस सर्वे में निकलकर सामने आया कि जनजाति समाज के लोगों के पलायन का एक बहुत बड़ा कारण स्वास्थ्य सेवाएं हैं। दरअसल, जब जनजाति समाज का व्यक्ति बीमार होता है, तो फिर इलाज के लिए वह कर्ज लेता है। उस कर्ज को चुकाने के लिए फिर वह मजदूरी करने के लिए बाहर जाता है। इसके चलते वह मजबूरी में अपनी जगह छोड़ता है। इसे मजबूरी की मजदूरी कह सकते हैं। यह बातें राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष हर्ष चौहान ने आयोग द्वारा इण्डिया हैबिटैट सेंटर, लोधी रोड में  ”अनुसूचित क्षेत्रों में जनजातियों के स्वास्थ्य एवं  स्वास्थ्य प्रणाली का मूल्यांकन” विषय पर आयोजित संवाद कार्यक्रम में कही।

उन्होंने कहा कि यहां जनजातीय क्षेत्रों में जमीनी स्तर पर काम करने वाले बहुत से लोग आए हैं। हमें उन्हें ध्यान से सुनने की जरूरत है, ताकि दो दिन के विमर्श के बाद इस संबंध में कुछ सकारात्मक चीजें निकाल सकें। हम पहले जनजातीय समाज के लोगों के स्वास्थ्य और उन क्षेत्रों में मौजूद स्वास्थ्य सेवाओं के आंकड़े एकत्रित करें और फिर पर चर्चा करें, तो बेहतर होगा। जनजातीय क्षेत्रों में जो काम कर रहे हैं। वहां क्या—क्या समस्याएं आती हैं। उन पर कौन विचार करेगा। हम  इसके लिए क्या कर रहे हैं इसका उल्लेख जरूर करें। समाधान के पूरा सिस्टम साथ में कैसे आ सकता है। इस पर काम करने की जरूरत है।

आयोग की सचिव अलका तिवारी ने संवाद में आमंत्रित प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए आयोग के अधिदेश और आयोजन की पृष्ठभूमि से सभी को संक्षेप में अवगत कराया। उन्होंने जनजाति स्वास्थ्य के क्षेत्र में डाटा की अनुपलब्धता, भौगोलिक क्षेत्र के कारण सेवाओं की कमी, बीमारियों के संबंध में जागरूकता का अभाव, मूलभूत सुविधाओं की कमी जैसी समस्याओं को रेखांकित किया। उन्होंने भागीदारों के अभिसरण एवं सरकार और निजी क्षेत्र की भागीदारी से इन समस्याओं के समाधान की आशा व्यक्त की।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय क्षमता विकास आयोग के सदस्य आर. बाला सुब्रमण्यम, ने जनजातीय क्षेत्रों का परिदृश्य स्पष्ट करते हुए कहा कि जनजातियों को जनजातियों के माध्यम से ही समझा जा सकता है। जनजातीय विकास एक सही शब्द नहीं है, क्योंकि वह ज्ञान के भंडार हैं और हमें उनसे नम्रता से  सीखने की और उनके मूल्यों को स्वीकार करने की आवश्यकता है। हमें जनजातियों के साथ ही समाधान को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के सदस्य अनंत नायक ने जनजातीय समाज के सहन करने की क्षमता और उनको मिलने वाली स्वास्थ्य सेवाओं को और बेहतर बनाने का सुझाव देने की अपील की। इसके अलावा उन्होंने संवाद में शामिल होने वाली सभी अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापित किया।