नई दिल्ली। इसे भारतीय संविधान की उदारता नहीं तो और क्या कहेंगे कि अभिव्यक्ति की आजादी के अंतर्गत सभी व्यक्ति को अपनी मजहबी गतिविधियों का निवर्हन करने की संपूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की जाती है, चाहे वो किसी भी धर्म, प्रांत या समाज का क्यों न हो, लेकिन आप उस स्थिति को क्या कहेंगे जब कुछ लोग अभिव्यक्ति की आजादी का बेजा इस्तेमाल करते हुए सेरआम अपने हठ की नुमाइश करने लग जाए। क्या कहेंगे आप उस स्थिति को जब कुछ लोग भारतीय संस्थानों द्वारा निर्धारित किए गए नियमों को धता बताते हुए अपनी विचारधाराओं को थोपने की जद्दोजहद में मसरूफ हो जाए। खैर, आप इस स्थिति को अपनी सुविधा के मुताबिक कोई भी नाम दे दीजिएगा, लेकिन हम आपको अपनी इस खास रिपोर्ट में एक ऐसे ही माजरे से रूबरू कराने जा रहे हैं, जहां कुछ लोग तमाम नियमों को धता बताते हुए अपनी हठ पर कायम हैं।
दरअसल, यह पूरा मामला कर्नाटक के उड्डपी के एक कॉलेज का है, जहां कुछ मुस्लिम छात्राओं ने कॉलेज प्रशासन द्वारा निर्धारित किए गए नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए हिजाब पहनने पर अड़ चुकी हैं। प्राचर्या का कहना है कि किसी भी शिक्षण संस्थान में एकरूपता कायम रहे इसके लिए ड्रोस क्रोड जैसे नियम निर्धारित किए गए हैं। लेकिन उड्डपी के कॉलेज में पढ़ने वाली कुछ मुस्लिम छात्राएं इन नियमों की धज्जियां उड़ाकर हिजाब पहनने पर अड़ चुकी हैं। इसके साथ ही वे उर्दू, अरबी सहित अपनी मजहबी भाषाओं को वरियता दे रहे हैं। लेकिन कॉलेज प्रशासन ने उनकी किसी भी मांग को मानने से साफ इनकार कर दिया है। लिहाजा, अपनी जिद्द पर अड़ी इन छात्राओं को कॉलेज प्रशासन ने कक्षा में प्रवेश करने की इजाजत नहीं दी है। जिसके बाद से उन्हें अपनी उपस्थिति कम होने का डर सता रहा है।
वहीं, इस पूरे मसले को लेकर कॉलेज के प्राचर्या रूद्रा गौड़ा का कहना है कि कॉलेज में पढ़ने वाली छात्रा हिजाब पहनकर कॉलेज तो आ सकती हैं, लेकिन उन्हें इसे पहनकर कक्षा में प्रवेश करने की इजाजत नहीं मिलेगी। अगर उन्हें कक्षा में प्रवेश करना है, तो उसके लिए उन्हें ड्रोस कोड का पालन करना होगा, जो कि सभी के लिए समान है, कॉलेज प्राचर्या का कहना है कि सभी छात्राएं नियमों को मानने के लिए तैयार हैं, मगर अभी-भी 6 मुस्लिम छात्राएं नियमों को धता बताते हुए शिक्षण संस्थानों की गतिविधियों का इस्लामिकरण करने की होड़ में लग गई हैं। खैर, अब देखना होगा कि यह पूरा मामला आगे चलकर क्या रुख अख्तियार करता है। क्या छात्राएं अपनी जिद कायम रहती हैं या फिर नरमी की राह पर चलने का फैसला करती है। यह तो फिलहाल आने वाला वक्त ही बताएगा।