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S Jaishankar : ‘मेरे पिता ने पद्यभूषण लेने से कर दिया था इनकार’.. जब एस जयशंकर ने बताई पिता के ऐसे करने की वजह

S Jaishankar : उन्हें 1951 के बैच में विधिवत भारतीय प्रशासनिक सेवा में नियुक्त किया गया और उन्हें मद्रास प्रेसीडेंसी के प्रशासनिक कैडर आवंटित हुआ। वहीं, जब 1956 में जब वह राज्य बनाया गया था तब उन्हें तमिलनाडु कैडर में ट्रांसफर कर दिया गया था।

नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दुनियाभर में भारतीय विदेश नीति की जो छाप बनाई है उसका हर कोई मुरीद है। एक बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि उनके पिता के. सुब्रह्मण्यम को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने केंद्रीय सचिव के पद से हटा दिया था। वहीं, जब राजीव गांधी का कार्यकाल था, तब भी उनके साथ अन्याय किया गया। विदेश मंत्री के पिता के. सुब्रह्मण्यम, एक आईएएस अधिकारी थे। उनकी गिनती देश के स्ट्रैटेजिक अफेयर्स एक्सपर्ट के रूप में होती थी। उन्हें देश के कई प्रधानमंत्रियों का विश्वासपात्र भी माना जाता था। सुब्रह्मण्यन सुरक्षा थिंक टैंक इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (IDSA) के संस्थापक निदेशक थे, जिसकी अब मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के नाम से पहचान है।

आपको बता दें कि ये वर्ष 1999 की बात है जब सुब्रह्मण्यम को सरकार ने पद्य भूषण सम्मान से सम्मानित करने का ऐलान किया, लेकिन उन्होंने इसे लेने से मना कर दिया। उन्होंने इसके पीछे जो वजह बताई वह यह थी कि नौकरशाहों और पत्रकारों को सरकारी अवॉर्ड्स नहीं स्वीकार करने चाहिए। जनवरी 1929 में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में जन्मे सुब्रह्मण्यम ने मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज से पढ़ाई पूरी की। वहीं, बाद में वे आईएएस अधिकारी भी बने। के. सुब्रह्मण्यम को भारतीय सामरिक मामलों का प्रमुख माना जाता था। उन्होंने भारत के परमाणु सिद्धांत को आकार देने में एक अहम भूमिका निभाई। वे भारत के परमाणु हथियार से लैस देश बनने और ‘पहले उपयोग नहीं’ नीति का पालन करने के हक में थे।

गौरतलब है कि मद्रास यूनिवर्सिटी से एमएससी करने के आखिरी साल में के सुब्रह्मण्यम ने सिविल सेवा परीक्षा दी और उस साल (1950-51) रैंकिंग में पहले स्थान पर रहे। उन्हें 1951 के बैच में विधिवत भारतीय प्रशासनिक सेवा में नियुक्त किया गया और उन्हें मद्रास प्रेसीडेंसी के प्रशासनिक कैडर आवंटित हुआ। वहीं, जब 1956 में जब वह राज्य बनाया गया था तब उन्हें तमिलनाडु कैडर में ट्रांसफर कर दिया गया था। बतौर आईएएस अधिकारी रहते हुए उन्होंने अपने करियर में अविभाजित मद्रास परिसर और तमिलनाडु के कई दूरदराज के जिलों में सेवा की। इसके अलावा, नई दिल्ली में विभिन्न क्षमताओं में कार्य किया।