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यूपी में हर बार चुनाव आते ही क्यों चर्चा में आ जाता है डकैत रही फूलन देवी का नाम, ये है वजह

फूलन देवी का नाम पहली बार चुनाव से पहले नहीं गूंज रहा है। हर बार विधानसभा चुनाव के दौरान इस पूर्व डकैत का नाम उछलता है। वजह है केवट और मल्लाहों के वोट। यूपी में करीब 7 फीसदी आबादी मल्लाह, केवट और निषादों की है। सूबे की 60 विधानसभा सीटों पर इनके वोटर अच्छी खासी संख्या में हैं।

लखनऊ। बिहार में वीआईपी पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी योगी सरकार से नाराज हैं। रविवार को मुकेश सहनी वाराणसी पहुंचे थे। उनके साथ फूलन देवी की मूर्तियां थीं, लेकिन पुलिस ने मूर्तियों को जब्त कर सहनी को हिरासत में ले लिया था। सहनी अपनी नाराजगी की यही वजह बता रहे हैं, लेकिन इसके पीछे कहानी दूसरी है। यह कहानी है फूलन देवी की। वही फूलन, जिसकी वजह से एक वक्त बीहड़ कांपता था और जिस पर बेहमई गांव में 22 लोगों की हत्या करने का आरोप लगा था।

phoolan devi

फूलन देवी का नाम पहली बार चुनाव से पहले नहीं गूंज रहा है। हर बार विधानसभा चुनाव के दौरान इस पूर्व डकैत का नाम उछलता है। वजह है केवट और मल्लाहों के वोट। यूपी में करीब 7 फीसदी आबादी मल्लाह, केवट और निषादों की है। सूबे की 60 विधानसभा सीटों पर इनके वोटर अच्छी खासी संख्या में हैं।
गोरखपुर, बलिया, गाजीपुर, मऊ, मिर्जापुर, संत कबीरनगर, वाराणसी, इलाहाबाद, भदोही, हमीरपुर, फतेहपुर और सहारनपुर में फूलन की जाति के वोटर सबसे ज्यादा हैं। 2017 में बीजेपी ने फूलन की जाति से जुड़े इन्हीं वोटरों का साथ हासिल कर लिया था। उससे पहले मल्लाह, केवट, बिंद और निषादों का वोट सपा और बीएसपी के साथ जाता रहा।

सियासत में फूलन का नाम लाने का सबसे पहला काम समाजवादी पार्टी यानी सपा ने किया। सपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव की नजर फूलन की जाति के वोटों पर पड़ी। इस वजह से उन्होंने बेहमई नरसंहार की नायिका फूलन को प्रोजेक्ट किया। 1996 में मुलायम ने फूलन को टिकट देकर लोकसभा का चुनाव मिर्जापुर से जितवाया था।

बस यहीं से फूलन का नाम यूपी की सियासत का हिस्सा बन गया। अखिलेश यादव और उनकी पार्टी हर साल फूलन देवी की हत्या की तारीख यानी 25 जुलाई को उन्हें श्रद्धांजलि देती है। दूसरी ओर, बीजेपी ने फूलन की जाति से आने वाले जयप्रकाश निषाद को राज्यसभा भेजा। जयप्रकाश पहले 2012 में बीएसपी के टिकट पर चौरी चौरा सीट से वायक चुने गए थे। 2018 में वह बीजेपी में शामिल हो गए।

बीते दिनों हालांकि जयप्रकाश ने भी अपने तेवर दिखाते हुए कहा था कि यूपी सरकार को उनके चेहरे पर चुनाव लड़ना चाहिए। हालांकि बाद में उन्होंने इस बयान से पल्ला झाड़ लिया। अब बिहार की सीमा से यूपी में दाखिल होकर मुकेश सहनी भी मल्लाह वोटरों को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन जिस तरह से बीजेपी ने फूलन की जाति के लोगों के लिए काम किया है, उसमें फिलहाल ऐसा लगता नहीं कि सहनी यहां बहुत कुछ हासिल कर सकेंगे। अगर उन्होंने मल्लाह, बिंद, केवट वोटरों में सेंध भी लगाई, तो भी इसका खामियाजा सपा और बीएसपी को ही भुगतना होगा।