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किसानों ने पीएम मोदी को लिखा ओपन लेटर…कहा— हम तैयार हैं आंदोलन खत्म करने के लिए , लेकिन…!

इसके अलावा आंदोलन के दौरान जिन किसानों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था, उसे वापस लिया जाए। वहीं जिन किसानों आंदोलन के दौरान अपनी जान गंवाई है, उनके परिजनों आर्थिक सहायता प्रदान करने हेतु कदम उठाए जाए।

नई दिल्ली। शायद यह कहना गलत नहीं होगा कि तकरीबन एक वर्ष से चले आ रहे किसान आंदोलन में 700 किसानों की मौत व आंदोलन की वजह से अवरूद्ध मार्गों से प्रतिदिन आवाजाही कर रहे लोगों को हो रही समस्याओं को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया था। साथ ही उन्होंने जब यह कहा कि हमें यह अफसोस रहेगा कि हम किसानों को समझा नहीं पाए, तो इसके कई सियासी दूदर्शी मायने निकाले गए और इस बीच जिस तरह प्रधानमंत्री ने किसानों से आंदोलन खत्म कर अपने-अपने घरों की ओर रवाना होने के लिए  कहा था, उसे लेकर यह सवाल उठना शुरू हो गए थे कि क्या किसान भाई अब अपने घरों की तरफ रूख करेंगे, लेकिन किसानों ने स्पष्ट कर दिया है कि वे अपने घर जाने वाले नहीं हैं, तो इसका क्या मतलब निकाला जाए कि क्या सरकार की तरफ से की गई कोशिश नाकामयाब हो गई?…नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं, बल्कि किसान भाई तो सरकार के इस कदम से बेहद खुश हैं, लेकिन उनकी सरकार से मांग है कि जल्द से जल्द एमएसपी पर कानून बनाया जाए।

अब इसे लेकर संयुक्त किसान मोर्चा के किसानों ने केंद्र सरकार को विगत रविवार को खुला पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने एमएसपी पर कानून बनाने समेत 6 मुद्दों को सरकार के टेबल पर रखा है। संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से साफ कहा गया है कि जब तक सरकार की तरफ से हमारी इन मांगों पर विचार नहीं किया जाता है, तब तक हमारा यह आंदोलन जारी रहेगा। अब देखना यह होगा कि क्या जिस चुनावी डर से मोदी सरकार की तरफ से कृषि काननों को वापस लेने का ऐलान किया गया क्या उसी चुनावी डर किसानों की मांगों को मानने के लिए सरकार राजी होगी। यह तो फिलहाल आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन आइए उससे पहले यह जान लेते हैं कि आखिर संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से लिखे गए सरकार को खत में किन मांगों को उठाया गया है।

इन मांगों को उठाया गया

यहां हम आपको बताते चले कि संयुक्त किसानों की तरफ से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाने की मांग की गई है। एसकेएम प्रमुख राकेश टिकैत की तरफ से साफ कहा जा चुका है कि जब तक मांगों पर विचार नहीं किया जाता है। तब तक हमारा यह आंदोलन जारी रहेगा। उनका कहना है कि इससे पहले भी जब तक सरकार से तीनों कृषि कानूनों पर वार्ता हुई थी, तो हमने सरकार से एमएसपी कानून बनाने की मांग की थी। वहीं, कुछ किसानों का तो यहां तक कहना है कि जब तक सरकार की तरफ से तीनों कृषि कानूनों की वापसी को लेकर लिखित रूप से कोई जवाब नहीं आ जाता है, तब तक हमारा यह आंदोलन जारी रहेगा। हमें सरकार के मौखिक ऐलान पर भरोसा नहीं है। लेकिन गंभीरता के चश्मे से देखे, तो किसानों की शंका उचित नहीं मालूम पड़ती है। खैर, अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे यह पूरा मामला क्या कुछ रूख अख्तियार करता है।

farmer protest

दर्ज केस वापस हो

इसके अलावा आंदोलन के दौरान जिन किसानों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था, उसे वापस लिया जाए। वहीं जिन किसानों ने आंदोलन के दौरान अपनी जान गंवाई है, उनके परिजनों को आर्थिक सहायता प्रदान करने हेतु कदम उठाए जाए। बता दें कि इस तरह की मांग इससे पहले भी कई सियासी दलों द्वारा उठाए गए। वहीं तेलंगाना सरकार ने तो आंदोलन में जान गंवाने वाले किसानों को 2 लाख रूपए आर्थिक सहायता देने का भी ऐलान किया है। कथित तौर पर इस आंदोलन में 700 किसानों ने अपनी जान गंवाई है। इसके अलावा  कई किसान पुलिस की लाठीचार्ज व आंसू गैस के दौरान शारीरिक रूप से भी अक्षम हुए हैं। ऐसी स्थिति में ऐसे सभी किसानों की तरफ से आवाज उठने की पूरी संभावना जताई जा रही है।

किसानों के नाम बनें स्मारक

इसके साथ ही आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों की स्मृति को सहेजने के लिए एसकेएम की तरफ स्मारक स्थल बनाने की मांग की गई है। संगठन की तरफ से कहा गया है कि निसंदेह यह किसान आंदोलन देश दुनिया के सबसे बड़े व ऐतिहासिक आंदोलनों में से एक रहा है। ऐसे में हम इस आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले लोगों की कुर्बानियों को सहेज कर रखना चाहते हैं।

Farmers Protest

केंद्रीय मंत्री को बर्खास्त करने की मांग

वहीं किसान संगठन की तरफ से केंद्र सरकार को लिखे गए खत में लखीमपुर हादसे के दौरान जान गंवाने वाले किसानों के परिजनों को आर्थिक सहायता समेत कथित रूप से आरोपित केंद्रीय राज्य मंत्री के बेटे के खिलाफ कड़ी कार्रवाई समेत केंद्रीय राज्य मंत्री को बर्खास्त करने की मांग की गई है।

विद्धुत विधेयक संशोधन

विद्धुत विधेयक संशोधन को वापस लेने की भी मांग की गई है। किसानों की तरफ से केंद्र सरकार को लिखे गए खत में साफ कहा गया है कि इस बिल को वापस लिया जाए। यह हमारे हितों पर कुठाराघात की तरह है। इसके अलावा किसानों के हितों को संरक्षित करने की दिशा में किसान कानून बनाने की भी मांग की गई है। केंद्र सरकार को  लिखे गए पत्र में कहा गया है कि कई मौकों पर देखा जाता है कि किसानों के हितों के खिलवाड़ किया जाता है, लिहाजा किसानों के हितों के साथ किसी भी प्रकार का कोई खिलवाड़ न हो और उनके अधिकारों को संरक्षित करके रखा जाए। इस संदर्भ में किसान कानून की आज की तारीख में  किसानों की आवश्यकता है। खैर, यह पत्र किसानों की तरफ से केंद्र सरकार को विगत रविवार को लिखा गया था। अब ऐसे में सियासी गलियारों में इसे लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं कि जिस चुनावी डर से मोदी सरकार की तरफ से तीनों कृषि कानून को वापस लिया गया है, क्या उसी चुनावी डर से किसानों की  मांगों पर भी विचार किया जाए। फिलहाल तो यह आने वाला वक्त ही बताएगा।