चंडीगढ़। पंजाब कांग्रेस में जारी संकट के बीच अब ये अटकलें भी जोर पकड़ रही हैं कि क्या सीएम अमरिंदर सिंह पार्टी का दामन फिर छोड़ सकते हैं ? ये अटकलें इसलिए भी खास हैं क्योंकि अगर ऐसा हुआ, तो दूसरा मौका होगा, जब वो कांग्रेस को टाटा-बाय-बाय कहेंगे। ये पढ़कर भले ही आपको अचरज हो कि गांधी परिवार के खास अमरिंदर सिंह भी कांग्रेस को एक बार अलविदा कह चुके हैं। सच हालांकि यही है। कैप्टन की कांग्रेस से विदाई की वजह बना था 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में आतंकवादियों के खिलाफ सेना का ऑपरेशन। हरिमंदिर साहिब के परिसर में सेना के ऑपरेशन से नाराज होकर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता छोड़ दी थी और 1985 के अगस्त में वह शिरोमणि अकाली दल में चले गए थे। अकाली दल में उनके शामिल होने के बाद ही पंजाब विधानसभा के चुनाव हुए थे और उसमें जीतकर कैप्टन अमरिंदर सिंह तत्कालीन सीएम सुरजीत सिंह बरनाला की सरकार में मंत्री भी बने थे।
हालांकि यह सरकार लंबे समय तक नहीं चली थी और 1987 में बरनाला सरकार को बर्खास्त कर पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। इसके बाद कैप्टन अमरिंदर की अकालियों से भी ज्यादा नहीं निभी और उन्होंने 1992 में शिरोमणि अकाली दल से अलग होकर अकाली दल (पंथिक) नाम से अलग पार्टी बना ली। फिर 1998 में वो कांग्रेस में लौट आए और पंजाब प्रदेश अध्यक्ष बने।
कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब की पटियाला राजघराने के वशंज हैं। 1963 में वह सेना के सिख रेजीमेंट में भी रहे, लेकिन 1965 में इस्तीफा दे दिया, लेकिन 1965 में पाकिस्तान से जंग शुरू हुई, तो वह फिर सेना में गए और पश्चिमी कमान के तत्कालीन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल हरबख्श सिंह के एडीसी के तौर पर काम किया।