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Agricultural law: तीन नए कृषि कानूनों को लेकर कृषि मंत्री ने शरद पवार को किया ट्वीट, लिखा अब शायद वह जनता को सच बताएंगे?

Agricultural law: कृषि कानूनों के खिलाफ देश के पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार (Sharad Pawar) भी किसानों के समर्थन में उतर आए हैं। इससे पहले मुंबई के आजाद मैदान में किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान वह मंच पर भी मौजूद थे। और उससे पहले वह राषट्रपति से मिलकर इन कृषि कानूनों को खारिज करने के लिए ज्ञापन भी सौंप चुके हैं। शरद पवार यूपीए सरकार के दौरान कृषि मंत्री थे और उनके एक पत्र ने खूब सुर्खियां सोशल मीडिया पर बटोरी जब उन्होंने अपने समय में देश के सभी मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर इस कृषि कानून को बनाने की इसी रूपरेखा पर बात की थी और राय मांगी थी।

नई दिल्ली। केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों को लेकर एक तरफ किसान सड़कों पर हैं तो वहीं दूसरी तरफ कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन को सियासी समर्थन भी खूब मिल रहा है। क्या कांग्रेस, क्या टीएमसी, क्या आप देश का लगभग हर विपक्षी दल किसानों के विरोध के समर्थन में उतर आया है। इस आंदोलन को पूरा राजनीतिक सहयोग मिल रहा है। वहीं सरकार की तरफ से इन तीनों कृषि कानूनों को किसानों के लिए फायदेमंद और बेहतर बनाने की साथ 26 जनवरी को लाल किले पर हुई हिंसा की घटना के बाद भी उनके साथ बातचीत जारी रखने की बात कही जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज स्पष्ट रूप से कह दिया है कि वह 26 जनवरी पर लाल किले के प्राचीर में जो तिरंगे का अपमान हुआ उससे दुखी हैं लेकिन किसानों के साथ फिर भी बातचीत जारी रहेगी और सरकार हमेशा किसानों के भविष्य को बेहतर और बेहतर बनाने के लिए काम करती रहेगी।

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वहीं कृषि कानूनों के खिलाफ देश के पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार भी किसानों के समर्थन में उतर आए हैं। इससे पहले मुंबई के आजाद मैदान में किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान वह मंच पर भी मौजूद थे। और उससे पहले वह राषट्रपति से मिलकर इन कृषि कानूनों को खारिज करने के लिए ज्ञापन भी सौंप चुके हैं। शरद पवार यूपीए सरकार के दौरान कृषि मंत्री थे और उनके एक पत्र ने खूब सुर्खियां सोशल मीडिया पर बटोरी जब उन्होंने अपने समय में देश के सभी मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर इस कृषि कानून को बनाने की इसी रूपरेखा पर बात की थी और राय मांगी थी।

लेकिन अब शरद पवार द्वारा इन तीन कृषि कानूनों का विरोध करने पर उनके लिए सामने से इस पर जवाब देने के लिए केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर आए। उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए कुछ दस्तावेज साझा करते हुए शरद पवार को कई ट्वीट किए। इसमें उन्होंने लिखा कि शरद पवारी जी एक अनुभवी राजनेता और पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री रहे हैं, जिन्हें कृषि से संबंधित मुद्दों और समाधानों के बारे में अच्छी जानकारी है। उन्होंने खुद कृषि संबंधी सुधारों को पहले लाने की पुरजोर कोशिश की।

तोमर ने आगे लिखा कि चूंकि वह इस मुद्दे पर कुछ अनुभव और विशेषज्ञता के साथ बोलते हैं, इसलिए कृषि सुधारों पर उनके ट्वीट को देखकर निराशा हुई। इसके बाद मुझे इस तीन कृषि कानूनों पर कुछ तथ्यों को साझा करने का अवसर मिला।

तोमर ने लिखा नए कानून किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए अतिरिक्त विकल्प की सुविधा प्रदान करते हैं, किसान अब अपनी फसल को कहीं भी बेहतर कीमत पर राज्य में या राज्य से बाहर बेच सकते हैं। इन तीन कृषि कानूनों से यह वर्तमान MSP प्रणाली भी प्रभावित नहीं होती है।

Narendra Singh

इसके साथ ही यह नए कृषि कानून मंडियों को भी प्रभावित नहीं करती हैं। इसके बजाय, वे सेवाओं और बुनियादी ढांचे के संदर्भ में अधिक प्रतिस्पर्धी और लागत प्रभावी होंगे, और दोनों प्रणालियां किसानों के सामान्य हित के लिए बेहतर होंगी। इसके बाद नरेंद्र सिंह तोमर ने लिखा कि जैसा कि वह इतने अनुभवी नेता हैं, मैं यह भरोसा करता हूं कि वह वास्तव में तथ्यों को गलत तरीके से पेश कर रहे थे। अब जब उसके पास सही तथ्य हैं, मुझे उम्मीद है कि वह अपना रुख भी बदलेंगे और हमारे किसानों को इन कृषि कानूनों का लाभ भी बताएंगे।

APMC Act: किसानों के आंदोलन से चिंतित दिखनेवाले शरद पवार जब कृषि मंत्री थे तो उनके विचार इस कानून के बारे में जानकर आप चौंक जाएंगे

एक तरफ दिल्ली की सीमा पर चारों तरफ किसान घेरा डालकर बैठे हैं और केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। वहीं किसान नेताओं की तरफ से 8 दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया गया है। ऐसे में किसानों के समर्थन में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस सहित 11 राजनीतिक दल आ गए हैं। किसान नेता इस पूरे आंदोलन को राजनीति से अलग बता रहे हैं लेकिन जिस तरह से इस आंदोलन को राजनीतिक पार्टियों का समर्थन मिल रहा है वह कई सारे सवाल भी खड़े कर रहा है। किसान आंदोलन के समर्थन में एक तरफ जहां राजनीतिक दल अपना वोट बैंक तैयार करने की जुगत में हैं।

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वहीं इसी APMC Act को समाप्त करने की वकालत करनेवाले एक समय पर देश के कृषि मंत्री रहे शरद पवार भी केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर इस एक्ट को लेकर हमलावर हो गए हैं। इससे पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी खुद इस APMC Act को अपनी पार्टी के द्वारा शाषित राज्यों में समाप्त कराने की बात कर चुके हैं। ऐसे में किसी से छिपी हुई बात नहीं है कि किसान भले अपनी जायज मांगों के साथ आंदोलन करने सड़क पर उतरे हों लेकिन विपक्षी पार्टियां का रूख इस आंदोलन को लेकर जिस का रहा है वह कई तरह के सवाल खड़े कर रहा है।

Sharad Pawar and Rahul Gandhi

अब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख और पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार का किसान आंदोलन को लेकर जो बयान आया है उसकी मानें तो केंद्र सरकार ने इस कानून को लेकर जल्दबाजी में फैसला लिया। जिसकी वजह से सरकार को इस तरह की मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है इसके साथ ही पवार ने कहा कि अगर इस मामले में जल्द को समाधान नहीं निकाला गया तो यह आंदोलन पूरे देश में फैल जाएगा और पूरे देश के किसान इसमें शामिल हो जाएंगे। इसके साथ ही शरद पवार ने कहा कि वह इस मामले को लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भी मिलेंगे।

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लेकिन अब शरद पवार द्वारा APMC Act को लेकर 2010 में दिल्ली की तब की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को लिखा एक पत्र अब वायरल हो रहा है उस समय केंद्रीय कृषि मंत्री की कुर्सी पर शरद पवार थे और उन्होंने शीला दीक्षित के पत्र लिखा था कि देशभर में किसानों की हालत को बेहतर बनाने के लिए APMC Act हटाया जाना जरूरी है। इससे किसानों की हालत बेहतर होगी। अगर किसानों की स्थिति को बेहतर करना है तो इस एक्ट को लागू करना होगा और साथ ही इसको लेकर एक आम राय भी बनानी होगी।

इसके साथ ही शरद पवार ने एक और पत्र 2011 में शीला दीक्षित को एक पत्र फिर से लिखा और इसमें उन्होंने 2010 के पत्र का जिक्र करते हुए लिखा कि जो पत्र आपको APMC Act और निजी क्षेत्र का कृषि क्षेत्र में सम्मिलित करने को लिखा था उसको लेकर विचार किया जाना चाहिए क्योंकि इसके जरिए ही हम किसानों की हालत में सुधार कर सकते हैं। शरद पवार ने दोनों ही पत्र में APMC Act को ख़त्म करने के साथ ही इस बात का भी जिक्र किया गया था कि निजी क्षेत्र का कृषि में प्रवेश कैसे जरूरी है और इसके जरिए कैसे भारत जैसे कृषि प्रधान देशों में किसानों की हालत को बेहतर किया जा सकता है। इसी तरह का एक पत्र उस समय मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी लिखा गया था।