नई दिल्ली। ‘हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले डूबेंगे’ हर बात पर शेर अर्ज करने वाले नवजोत सिंह सिद्धू पर ये शेर बिल्कुल सटीक बैठता है। क्रिकेट की पिच से लेकर राजनीति की पिच तक उनकी फ्रंटफुट पर बेटिंग करने की आदत हमेशा से उन पर भारी पड़ती रही है। जिसका उन्हें तो नुकसान होता ही होता है, लेकिन जिसका वे दामन थामते हैं, उनकी भी मिट्टी पलीद कर जाते हैं। कुछ ऐसा ही वे आजकल कांग्रेस के साथ भी कर रहे हैं। कांग्रेस वाले ये सोचकर सिद्धू को अपनी पार्टी मे लाए थे कि उनकी बेबाकी का सियासी फायदा शायद कांग्रेस को मिलेगा, लेकिन अफसोस वे आज तक कभी पार्टी की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद से जिस तरह उन्होंने इस्तीफा दिया, उसने सभी को चौंका कर रख दिया। किसी को भी इस बात की तनिक भी खबर नहीं थी कि सिद्धू ऐसा कोई कदम उठाने जा रहे हैं। हालांकि, यह कोई पहली मर्तबा नहीं है कि जब उन्होंने इस तरह अपने एकाएक इस्तीफे से सियासी गलियारों में घमासान मचा दिया हो, बल्कि इससे पहले भी वे कई मौकों पर इस तरह का सियासी बवाल खड़ा कर चुके हैं। आइए, इस रिपोर्ट में उनके द्वारा किए गए कुछ ऐसे सियासी बवालों पर एक नजर डालते हैं।
सिद्धू के सियासी बवाल पर एक नजर…!
करीब 19 साल हो गए सिद्धू को राजनीति का जायका चखते-चखते। इन 19 सालों के दौरान सबस खास बात यह रही है कि सभी राजनीतिक दलों ने उन पर सहज ही विश्वास किया, लेकिन अफसोस इन 19 सालों में आज तक सिद्धू किसी के भी विश्वास को महफूज नहीं रख पाए। हर बार उनकी वाकपटुता उनके लिए मुसीबत ही पैदा करती हुई आई। जब उन्होंने बीजेपी का दामन थामा तो अकाली दल से भिड़ गए। इतना भी नहीं सोचा कि जिस अकाली दल से वे भिड़ने जा रहे हैं, वो बीजेपी की मित्र दल है। हालांकि, अब ये अलग बात है कि कृषि कानूनों के मसले पर मत विभिन्नता होने की वजह से अकाली दल अब बीजेपी से अलग राह अख्तियार कर चुकी है।
बीजेपी ने सिद्धू को तीन मर्तबा अमृतसर से चुनाव में उतारा और वो तीनों ही बार अपना विजयी पताका फहराने में सफल रहे, लेकिन अकाली दल के खिलाफ मोर्चा खोलने की वजह से उन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में लोकसभा टिकट से हाथ धोना पड़ा। अकाली दल के एतराज की वजह से उन्हें अमृतसर से चुनाव में टिकट नहीं मिला। नतीजा यह हुआ कि उनकी जगह बीजेपी ने अरुण जेटली को वहां से खड़ा किया। बीजेपी के इस फैसले से सिद्धू इस कदर खफा हो गए कि उन्होंने बीजेपी से रूखसत होकर साल 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का दामन थाम लिया। वहीं, सियासी आलिमों का मानना है कि अगर बीजेपी ने अकाली दल के खिलाफ यूं मोर्चा न खोला होता है, तो पार्टी उन्हें आगे चलकर कोई बड़ा मौका देती, लेकिन सिद्धू कहां मानने वाले थे।बीजेपी में बवाल काटने के बाद वे काग्रेस की शरण में पहुंच गए। कांग्रेस में एंट्री लेते ही उन्होंने कई मौकों पर कई ऐसे धमाके किए, जिसका
जवाब देना पार्टी को भारी पड़ गया। साल 2018 में सिद्धू जब एक दोस्त की हैसियत से इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे और वहां के सेनाध्यक्ष कमर बाजवा से जिस आत्मीयता भरे अंदाज में गले मिले, उससे देश में बवाल मच गया। जहां बीजेपी ने सिद्धू की वजह से कांग्रेस को देश विरोधी पार्टी बताया तो वहीं देशभर में सिद्धू का भी जमकर विरोध हुआ। वहीं, अब ऐसे वक्त में जब पंजाब विधानसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस को चुनावी रणनीतियों पर ध्यान देना चाहिए। ऐसे में पार्टी खुद के कलह से जूझ रही है और यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि इन सबके जिम्मेदार सिद्धू ही हैं। खैर, अब आगे सिद्धू का यह बवाल क्या रूख अख्तियार करता है। यह तो फिलहाल आने वाला वक्त ही बताएगा।