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Supreme Court : महाराष्ट्र में औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदलने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी, याचिका की खारिज

Maharashtra: उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी (MVA) सरकार ने 29 जून, 2021 को कैबिनेट बैठक में औरंगाबाद और उस्मानाबाद दोनों शहरों का नाम बदलने का फैसला किया था। औरंगाबाद शहर और राजस्व मंडल का नाम बदलकर छत्रपति संभाजीनगर कर दिया गया, जबकि उस्मानाबाद का नाम बदलकर धाराशिव किया गया।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार के उस फैसले को हरी झंडी दी जिसमें राज्य के दो प्रमुख शहरों के नाम बदलने का निर्णय लिया गया था। महाराष्ट्र सरकार ने औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजीनगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव करने का निर्णय लिया था। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी जिसे अदालत ने खारिज कर दिया। याचिकाकर्ताओं ने पहले बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसने राज्य सरकार के फैसले में किसी तरह की वैधानिक चुनौती नहीं देखी और उसे सही ठहराया। इसके बाद याचिकाकर्ता हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। उन्हें उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला उनके पक्ष में आएगा। हालांकि, ऐसा नहीं हुआ और अदालत ने इस याचिका को खारिज कर महाराष्ट्र सरकार के फैसले को हरी झंडी दिखा दी।

Supreme court

 

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले की न्यायिक समीक्षा को लेकर क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नाम बदलना सरकार का अधिकार होता है और इसकी न्यायिक समीक्षा की जरूरत नहीं होती है। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की बात सुनकर ही विस्तृत आदेश दिया था। अदालत ने कहा, “हम उसमें दखल नहीं देंगे।” इससे पहले 8 मई को हाईकोर्ट ने औरंगाबाद का नाम बदल कर छत्रपति संभाजीनगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव करने के राज्य सरकार के फैसले को सही ठहराया था। कोर्ट ने कहा था कि यह फैसला कानूनी रूप से सही है। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी उस पर मुहर लगा दी है।

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नाम बदलने को लेकर क्या है पूरा विवाद?

उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी (MVA) सरकार ने 29 जून, 2021 को कैबिनेट बैठक में औरंगाबाद और उस्मानाबाद दोनों शहरों का नाम बदलने का फैसला किया था। औरंगाबाद शहर और राजस्व मंडल का नाम बदलकर छत्रपति संभाजीनगर कर दिया गया, जबकि उस्मानाबाद का नाम बदलकर धाराशिव किया गया। फिर 16 जुलाई, 2022 को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली अगली सरकार ने एमवीए सरकार के फैसले को बरकरार रखा।

इसके बाद हाईकोर्ट में सरकार के फैसले के खिलाफ याचिकाएं की गईं। इसमें कहा गया कि सरकार ने औरंगाबाद का नाम बदलने का फैसला 2001 में ही वापस ले लिया था। उद्धव सरकार ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए नाम बदला था। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह निर्णय संविधान के प्रावधानों की पूरी तरह अवहेलना है। कहा गया कि इस फैसले से दो धार्मिक समूहों के बीच दरार पैदा हो सकती है और यह फैसला भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के बिल्कुल उलट है।