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Pegasus Snooping: अब तक के फर्जीवाड़ों का बाप निकला जासूसी मामला, दागदार संस्था ने की जांच, फिर भी नहीं मिला सबूत

Pegasus Snooping: दावा किया गया कि इन फोन नंबरों का इस्तेमाल, मंत्रियों, सरकारी अधिकारियों, पत्रकारों, वैज्ञानिकों, विपक्षी नेताओं, व्यापारियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं समेत अन्य कर रहे थे। अब इस सवाल का जवाब सबसे अहम है कि आखिर जासूसी हुई, तो इसका सबूत क्या है ?

नई दिल्ली। विदेशी मीडिया के जरिए तैयार किए गए इजरायली साफ्टवेयर पेगासस के जरिए जासूसी का गुब्बारा फूलने से पहले ही फुस्स हो गया। इस कथित जासूसी का एक भी सुराग नहीं मिला। दावा किया गया था कि इजरायली कंपनी एनएसओ के पेगासस सॉफ्टवेयर से भारत में कथित तौर पर 300 से ज्यादा हस्तियों के फोन हैक किए गए और उनके निजी डेटा लीक किए गए। संसद के सत्र के ठीक एक दिन पहले हवा में छोड़े गए इस गुब्बारे के जरिए मोदी सरकार को बदनाम करने का अंतराष्ट्रीय ताना-बाना बुना गया था। बावजूद इसके ये फिल्म अपने प्रीमियर में ही फ्लॉप हो गई। अहम बात यह भी है कि ऐसे कथित जासूसी वाले मोबाइल फोनों की जांच का जिम्मा जिस संस्था को दिया गया था, उसका अपना इतिहास ही बेहद दागदार और कलंकित है।

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दावा किया गया कि इन फोन नंबरों का इस्तेमाल, मंत्रियों, सरकारी अधिकारियों, पत्रकारों, वैज्ञानिकों, विपक्षी नेताओं, व्यापारियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं समेत अन्य कर रहे थे। अब इस सवाल का जवाब सबसे अहम है कि आखिर जासूसी हुई, तो इसका सबूत क्या है ? एक बार फिर से दावा किया गया कि इन नंबरों से संबंधित कुछ फोन की फॉरेंसिक जांच में साफ संकेत मिले कि 37 फोन पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिए निशाना बनाए गए। इनमें से 10 भारतीय थे। यानी सबूत के तौर पर उन मोबाइल फोनों की एक कथित जांच का हवाला दिया गया। खास बात यह है कि ये जांच एक ऐसी एजेंसी के जरिए कराई गई जिसका खुद का चरित्र बेहद संदिग्ध और दागदार है।

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आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि ऐसे मोबाइल फोनों की जांच का ठेका एमनेस्टी इंटरनेशनल नाम की संस्था को दिया गया। एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक, उसकी सिक्योरिटी लैब ने दुनिया भर के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के कई मोबाइल उपकरणों का गहन फॉरेंसिक विश्लेषण किया है। इस शोध में यह पाया गया कि एनएसओ ग्रुप ने पेगासस स्पाइवेयर के जरिए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की लगातार, व्यापक, लगातार और गैरकानूनी तरीके से निगरानी की है। अब जरा एमनेस्टी इंटरनेशनल (इंडिया) का इतिहास जान लीजिए। ये संस्था गले तक विवादों में डूबी हुई है।

इस पर भारत सरकार का विरोध करने और अवैध तरीके से अंतरराष्ट्रीय फंडिंग करने का आरोप लगता रहा है। हालात यहां तक आ गए कि साल 2020 में इस संस्था ने केंद्र सरकार पर बदले की भावना से काम करने का आरोप लगाकर अपना कामकाज रोक दिया था। संगठन का आरोप था कि पिछले साल फरवरी में दिल्ली दंगों को लेकर पुलिस पर और जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन पर केंद्र से सवाल पूछने पर उसके साथ बदले की भावना से व्यवहार किया गया। उसके बैंक अकाउंट्स को पूरी तरह फ्रीज कर दिया गया, जिससे उसे भारत में काम बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

पेगासस वाले कथित मोबाइल फोनों की जांच करने वाली संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल पर सीधा आरोप है कि यह विदेशों से पैसा लेकर वित्तीय अनियमितताओं कर रही है। इस आरोप की ईडी जांच कर रही है। गृह मंत्रालय के मुताबिक, संस्था को एफडीआई के जरिए फंड मिला, जिसकी गैर सरकारी संगठनों को इजाजत नहीं है। ईडी ने 25 अक्तूबर 2018 को बेंगलुरु स्थित दफ्तर पर छापेमारी की थी। एक अहम बात यह भी है कि भारत में 13 आईफोन की जांच की गई, जिनमें नौ मोबाइल फोन को निशाना बनाने की बात सामने आई। इनमें से सात आईफोन में पेगासस सॉफ्टवेयर पाया गया। हालांकि ये रिपोर्ट खुद इस बारे में स्पष्ट नही है कि इन फोनों की जासूसी की गई या नहीं।