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ब्लैक और व्हाइट फंगस का इलाज मौजूद , लेकिन सावधानी रखना जरूरी : विशेषज्ञ

Black and White Fungus: स्टेराइड सही मात्रा में सही समय दिए जाने ब्लैक फंगस का कोई खतरा नहीं है। ब्लैक फंगस में 50 से 80 प्रतिशत मृत्युदर के चांस है।

नई दिल्ली। कोरोना संक्रमण के बीच ब्लैक और व्हाइट फंगस की दस्तक लोगों को बेचैन कर रही है। इस बीमारी से आम लोग परेशानी और चिंता में आ गये हैं। डाक्टरों की मानें तो ब्लैक फंगस दिल, नाक और आंख को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। फेफड़ों पर भी इसका असर है। जबकि व्हाइट फंगस फेफड़ों को इसके मुकाबले ज्यादा नुकसान देता है। हालांकि एक्सपर्ट्स का मानना है कि ब्लैक और व्हाइट फंगस का इलाज पूरी तरह से मौजूद है। बस इसमें सर्तक रहने की जरूरत है। पूर्वांचल के मऊ इलाके में व्हाइट फंगस के केस मिलने से लोगों में चिंता है। इसे लेकर हर जगह के स्वास्थ्य विभाग को अलर्ट किया गया है। यह कोरोना से मिलते-जुलते लक्षणों के वाली बीमारी बताई जा रही है। व्हाइट फंगस फेफड़ों को संक्रमित कर उसे डैमेज कर देता है और सांस फूलने की वजह से मरीज कोरोना की जांच कराता रह जाता है। छाती की एचआरसीटी और बलगम के कल्चर से इस बीमारी का पता चलता है।

Black Fungus eyes

केजीएमयू की रेस्पेटरी मेडिसिन विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डा. ज्योति बाजपेई ने बताया, ” फंगस सिर्फ फंगस होता है। न तो वह सफेद होता न ही काला होता है। म्यूकरमाइकिस एक फंगल इन्फेक्शन है। यह काला दिखाई पड़ने के कारण इसका नाम ब्लैक फंगस दे दिया गया है। काला चकत्ता पड़ने इसका नाम ब्लैक फंगस पड़ जाता है। मेडिकल लिटरेचर में व्हाइट और ब्लैक फंगस कुछ नहीं है। यह अलग क्लास होती है। यह लोगों को समझने के लिए ब्लैक एंड व्हाइट का नाम दिया गया है। व्हाइट फंगस कैडेंडियासिस (कैंडिडा) आंख, नांक, गला को कम प्रभावित करता है। यह सीधे फेफड़ो को प्रभावित करता है।”

छाती की एचआरसीटी और बलगम के कल्चर से इस बीमारी का पता चलता है। लंग्स में कोरोना की तरह धब्बे मिलते हैं। पहली लहर में इन दोंनों का कोई खासा प्रभाव नहीं दिखा है। दूसरी लहर में वायरस का वैरिएंट बदला है। इस बार की लहर के चपेट में खासकर युवा आए। यह कम दिनों में बहुत तीव्र गति से बढ़ा है। इसके कारण लोगों को लंबे समय तक अस्पतालों में रहना पड़ा है। इसके अलावा स्टेरॉयड का काफी इस्तेमाल करना पड़ा है। शुगर के रोगी भी ज्यादा इसकी चपेट में आए हैं।

Black Fungus mucormycosis

उन्होंने बताया, ” आक्सीजन की पाइपलाइन व ह्यूमिडीफायर साफ हो। शुगर नियंत्रित रखें। फेफड़ों में पहुंचने वाली आक्सीजन शुद्ध व फंगसमुक्त हो। इसे लेकर सर्तक रहें बल्कि पेनिक नहीं होना चाहिए। ब्लैक फंगल इंफेक्शन से वे लोग संक्रमित हो रहे हैं, जिनकी इम्यूनिटी कमजोर है, जो पहले से किसी गंभीर बीमारी के शिकार हैं, जैसे डायबिटीज या फिर स्टेरॉयड्स का इस्तेमाल किया है। जिन लोगों को उच्च ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत पड़ी, इनमें भी इस बीमारी का जोखिम बढ़ जाता है। चलता फिरता मरीज ब्लैक फंगस से पीड़ित नहीं होता है। स्टेराइड सही मात्रा में सही समय दिए जाने ब्लैक फंगस का कोई खतरा नहीं है। ब्लैक फंगस में 50 से 80 प्रतिशत मृत्युदर के चांस है। व्हाइट फंगस का अभी कोई मृत्युदर का रिकार्ड नहीं है। ब्लैक फंगस इम्युनिटी कम होंने पर तुरंत फैल जाता है। ब्लैक फंगस नई बीमारी नहीं है। इसका इलाज मौजूद है। एंटी फंगल दवांए इसमें प्रयोग हो रही है। इसमें मेडिकल और सर्जिकल दोंनों थेरेपी में इसका इलाज संभव है।