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स्कूली किताबों में शामिल हों वेद और प्राचीन ग्रंथ, संसदीय समिति ने सरकार से की सिफारिश

उधर विपक्ष ने सरकार से किसी भी विचारधारा को छात्रों पर न थोपने की अपील की है। समिति के सदस्य और कांग्रेस नेता अखिलेश प्रसाद सिंह ने एक टीवी चैनल से कहा कि बच्चों को इतिहास पढ़ना चाहिए, लेकिन किसी विचारधारा को थोपना ठीक नहीं है।

नई दिल्ली। शिक्षा मंत्रालय की संसद की स्थायी समिति ने मोदी सरकार से सिफारिश की है कि स्कूली किताबों में वेदों और अन्य प्राचीन ग्रन्थों को भी शामिल किया जाए। समिति ने सरकार से लोगों पर खास विचारधारा न थोपे जाने की अपील की है। स्थायी समिति ने स्कूली किताबों की विषयवस्तु में सुधार को लेकर एक रिपोर्ट संसद में पेश की। समिति ने इस रिपोर्ट में स्कूली पाठ्यक्रम में बदलाव करने की सिफ़ारिश की है। समिति ने सिफ़ारिश की है कि एनसीईआरटी और एससीइआरटी को स्कूलों के पाठ्यक्रम में वेदों और अन्य प्राचीन ग्रन्थों में निहित जीवन और समाज से जुड़ी शिक्षा और ज्ञान को शामिल करना चाहिए। उधर विपक्ष ने सरकार से किसी भी विचारधारा को छात्रों पर न थोपने की अपील की है। समिति के सदस्य और कांग्रेस नेता अखिलेश प्रसाद सिंह ने एक टीवी चैनल से कहा कि बच्चों को इतिहास पढ़ना चाहिए, लेकिन किसी विचारधारा को थोपना ठीक नहीं है। उनका कहना था कि आधुनिक शिक्षा की ज़रूरत का भी ध्यान रखकर ही पाठ्यक्रम तय होना चाहिए।

बता दें कि प्राचीन भारत में ज्ञान के तमाम केंद्र थे। नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों में प्राचीन ज्ञान की शिक्षा दी जाती थी, लेकिन समय के साथ ज्ञान के ये सारे केंद्र या तो नष्ट हो गए या बंद कर दिए गए। संसद की कमेटी का कहना है कि विज्ञान, गणित और चिकित्सा जैसे विषयों में प्राचीन भारत के योगदान को भी स्कूली पाठ्यक्रम में उचित स्थान मिलना चाहिए और उसे एनसीईआरटी किताबों में आधुनिक विज्ञान से जोड़कर पेश किया जाना चाहिए।

कमेटी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बारे में संतुलित और न्यायपूर्ण अवधारणा तैयार करने पर बल दिया है ताकि उन स्वतंत्रता सेनानियों को भी पाठ्य पुस्तकों में जगह मिल सके जिन्हें अभी तक उचित स्थान नहीं मिल सका है। इसके लिए समिति ने देश के अग्रणी इतिहासकारों के साथ उस प्रक्रिया की समीक्षा करने की ज़रूरत बताई है जिससे भारत के अलग-अलग हिस्सों से स्वतंत्रता सेनानी पाठ्य पुस्तकों में जगह पाते हैं।