
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ 8 नवंबर को रिटायर होने जा रहे हैं। अपने रिटायरमेंट से पहले जस्टिस चंद्रचूड़ ने केंद्र सरकार से अहम सिफारिश की है। जस्टिस चंद्रचूड़ की सिफारिश है कि उनके बाद सुप्रीम कोर्ट से सबसे वरिष्ठ जज जस्टिस संजीव खन्ना को चीफ जस्टिस बनाया जाए। आमतौर पर चीफ जस्टिस पद के लिए निवर्तमान चीफ जस्टिस की सिफारिश को ही केंद्र सरकार मानती है। ऐसे में तय है कि संजीव खन्ना अब सुप्रीम कोर्ट के 51वें चीफ जस्टिस बनेंगे। हालांकि, वो 13 मई 2025 तक यानी 6 महीने ही इस पद पर रहेंगे।
जस्टिस संजीव खन्ना का जन्म 14 मई 1960 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता देवराज खन्ना भी दिल्ली हाईकोर्ट में जज रहे। जस्टिस संजीव खन्ना के चाचा हंसराज खन्ना सुप्रीम कोर्ट में जज थे। एडीएम जबलपुर बनाम शिवाकांत शुक्ला मामले में जस्टिस हंसराज खन्ना ने बहुमत से अलग फैसला दिया था और चर्चा में आए थे। जस्टिस संजीव खन्ना ने स्कूल की शिक्षा दिल्ली के मॉडर्न स्कूल से ली। फिर 1980 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने कैंपस लॉ सेंटर से वकालत की पढ़ाई की। जस्टिस संजीव खन्ना ने बतौर वकील 1983 से काम शुरू किया था। जस्टिस संजीव खन्ना को पब्लिक लॉ, टैक्स कानूनों का विशेषज्ञ माना जाता है। वो दिल्ली सरकार के वकील रहे और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के स्टैंडिंग काउंसिल का पद भी संभाला।
जस्टिस संजीव खन्ना 24 जून 2005 को दिल्ली हाईकोर्ट में एडिशनल जज बने थे। 20 फरवरी 2006 को वो स्थायी जज बन गए। साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस संजीव खन्ना को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने की सिफारिश की। 18 जनवरी 2019 से संजीव खन्ना सुप्रीम कोर्ट के जज हैं। खास बात ये कि जस्टिस संजीव खन्ना किसी भी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रहे बिना सुप्रीम कोर्ट में आए। जस्टिस संजीव खन्ना सुप्रीम कोर्ट की उस बेंच में भी रहे, जिसने इलेक्टोरल बॉण्ड को असंवैधानिक बताया था। इसके अलावा जस्टिस संजीव खन्ना ने जस्टिस बेला त्रिवेदी के साथ बेंच में ईडी की गिरफ्तारी से संबंधित कई अहम मामले भी सुने। जस्टिस संजीव खन्ना ने अनुच्छेद 370 को संप्रभुता का संकेत नहीं माना था और कहा था कि इसको हटाने से संघीय ढांचे पर कोई असर नहीं पड़ेगा। जस्टिस संजीव खन्ना ने वोटों और वीवीपैट की 100 फीसदी पर्चियों के सत्यापन की याचिका भी खारिज की थी। उन्होंने 2023 में एक केस में बहुमत की राय में लिखा था कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को तलाक देने का अधिकार है। जस्टिस संजीव खन्ना ने समलैंगिक विवाह मामले की याचिकाओं की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।