नई दिल्ली। 24 सितंबर से कांग्रेस के नए अध्यक्ष के चुनाव के लिए पर्चा भरने का काम शुरू हो जाएगा। अगर चुनाव की नौबत आई तो 19 अक्टूबर को नए कांग्रेस अध्यक्ष के नाम का ऐलान भी हो जाएगा। अभी तक की खबरों के अनुसार, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ना एकदम तय माना जा रहा है। संकेत ये भी मिल रहे है कि अशोक गहलोत का अध्यक्ष चुना जाना भी लगभग तय है। सीएम गहलोत अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए कमर भी कस ली है। शुक्रवार को उन्होंने महाराष्ट्र के शिरडी में जाकर साई बाबा आर्शीवाद भी लिया। इस दौरान अशोक गहलोत ने ये भी साफ कर दिया गया कि पार्टी के नियमों का पालन करते हुए राजस्थान के सीएम पद से इस्तीफा दे देंगे। लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि गहलोत के लिए कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी किसी कांटों के ताज से कम नहीं है।
ऐसे इसलिए कहा जा रहा है कि क्योंकि पार्टी की इस वक्त दुर्दशा से बहुत खराब है कि 17 राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में कांग्रेस का एक भी लोकसभा सांसद नहीं है। 11 राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में सिर्फ एक-एक सांसद इस वक्त है। इसके अलावा पांच राज्य ऐसे है जहां कांग्रेस का कोई विधायक नहीं है। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के 2 विधायक है। सिर्फ दो राज्यों में कांग्रेस के मुख्यमंत्री है, जबकि 3 राज्यों में गठबंधन की सरकार है।
ऐसे में अगर अशोक गहलोत कांग्रेस के अध्यक्ष बन भी जाते है तो उनका मुकाबला देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है। वो नरेंद्र मोदी जो हिंदुस्तान के सबसे बड़े नेता होने के साथ-साथ दुनिया के बड़े नेताओं में भी गिन जा रहे है। जिनकी बात इंडिया ही नहीं बल्कि वैश्विक मंच पर धमक दिखाई और सुनाई पड़ रही है।
लेकिन सवाल ये है कि कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद अशोक गहलोत जादू चला पाएंगे। प्रश्न ये भी है कि गांधी फैमली ने अध्यक्ष पद के चुनाव से दूरी क्यों बनाई है? क्या ये फैसला परिवारवाद से बचने के लिए गांधी परिवार ने लिया है? क्या गांधी परिवार के बाहर का अध्यक्ष रिमोट कंट्रोल की तरह काम नहीं करेगा? सवाल ये भी कि देशभर के कांग्रेस नेताओं को अशोक गहलोत कबूल होंगे? इसके अलावा गांधी परिवार के बाहर का अध्यक्ष होने के बाद भी राहुल गांधी ही चेहरा होंगे?