नई दिल्ली। इलाहबाद हाईकोर्ट द्वारा बिना ओबीसी आरक्षण के ही नगर निकाय चुनाव संपन्न कराए जाने के आदेश के विरोध में उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। जिस पर आगामी 2 जनवरी को अदालत खुलने के बाद सुनवाई हो सकती है। बता दें कि इससे पहले कोर्ट ने योगी सरकार को बिना ओबीसी आरक्षण के ही नगर निकाय चुनाव कराने के आदेश दिए थे, जिसके खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही थी। वहीं आज कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी गई है। अब ऐसे में सुनवाई के उपरांत क्या कुछ फैसला लिया जाता है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।
जानें पूरा मामला
आपको बता दें कि गत पांच दिसंबर को उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से नगर निकाय चुनाव के संदर्भ में अधिसूचना जारी की गई थी। जिसमें एससी एसटी और ओबीसी को आरक्षण देने के साथ निकाय चुनाव कराए जाने का प्रावधान था। बाद में इसके विरोध में इलाहबाद कोर्ट में याचिका दाखिल की गई जिसमें कहा गया कि आरक्षण देने के दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रावधान किए गए ट्रिपल टेस्ट का पालन नहीं किया गया है, जिस पर सुनवाई करते हुए गत दिनों हाईकोर्ट ने बिना ओबीसी आरक्षण के निकाय चुनाव कराए जाने के निर्देश दिए थे।
राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए अधिसूचना को भी रद कर दिया गया था। उधर, प्रदेश सरकार निकाय चुनाव में ओबीसी वर्ग को आरक्षण देने के पक्ष में है। जिसे देखते हुए गत दिनों एक आयोग का गठन किया गया था। जिसका अध्य़क्ष जस्टिस राम अवतार को बनाया गया है। अब ऐसी स्थिति में इस पूरे मसले पर सुप्रीम कोर्ट का आगामी दिनों में कैसा रुख रहता है। यह देखने वाली बात होगी।
कैसा है प्रदेश का जातिगत समीकरण
ध्यान रहे कि नगर निकाय चुनाव के लिहाज से प्रदेश का ओवीसी वोट बैंक बहुत मयाने रखता है, जिसे देखते हुए प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। बता दें कि फीसदी, कुशवाहा-मौर्या-शाक्य-सैनी 6 फीसदी, लोध 4 फीसदी, गड़रिया-पाल 3 फीसदी, निषाद-मल्लाह-बिंद-कश्यप-केवट 4 फीसदी, तेली-शाहू-जायसवाल 4, जाट 3 फीसदी, कुम्हार/प्रजापति-चौहान 3 फीसदी, कहार-नाई- चौरसिया 3 फीसदी, राजभर-गुर्जर 2-2 फीसदी हैं। यह सभी ओबीसी वर्ग में ही शामिल होते हैं। ऐसे में किसी भी चुनाव में ओबीसी वर्ग का अहम किरदार है, जिसे देखते हुए प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।