नई दिल्ली। असम विधानसभा ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए शुक्रवार को दो घंटे के जुम्मा ब्रेक को खत्म कर दिया है। यह ब्रेक शुक्रवार को जुम्मा की नमाज़ के लिए दिया जाता था और 1937 में मुस्लिम लीग के सैयद सादुल्ला द्वारा इसे शुरू किया गया था। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इस फैसले का स्वागत किया और इसे असम विधानसभा की उत्पादकता को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। मुख्यमंत्री सरमा ने स्पीकर बिस्वजीत दैमारी और विधायकों की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने दक्षता और प्रगति को प्राथमिकता दी है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “2 घंटे के जुम्मा ब्रेक को खत्म करके, असम विधानसभा ने उत्पादकता को प्राथमिकता दी है और औपनिवेशिक बोझ के एक और निशान को हटा दिया है।”
WATCH | अब जुम्मे की नमाज के लिए नहीं मिलेगा ब्रेक, असम सरकार ने खत्म की पुरानी प्रथा
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— ABP News (@ABPNews) August 30, 2024
उन्होंने आगे कहा, “यह प्रथा मुस्लिम लीग के सैयद सादुल्ला ने 1937 में शुरू की थी। इस ऐतिहासिक निर्णय के लिए मैं स्पीकर बिस्वजीत दैमारी और हमारे विधायकों का आभार व्यक्त करता हूं।” इससे पहले गुरुवार को असम विधानसभा ने मुस्लिम विवाह और तलाक के पंजीकरण से संबंधित कानून को निरस्त करने के लिए एक विधेयक भी पारित किया था। राजस्व और आपदा प्रबंधन मंत्री जोगेन मोहन ने 22 अगस्त को असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम, 1935 और असम निरसन अध्यादेश 2024 को खत्म करने के लिए असम निरसन विधेयक, 2024 पेश किया था।
असम विधानसभा की उत्पादकता को बढ़ाने के उद्देश्य से राज्य के औपनिवेशिक बोझ को हटाने के लिए, प्रति शुक्रवार सदन को जुम्मे के लिए 2 घंटे तक स्थगित करने के नियम को रद्द किया गया।
यह प्रथा 1937 में मुस्लिम लीग के सैयद सादुल्लाह ने शुरू की थी।
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मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, “हमारा उद्देश्य न केवल बाल विवाह को खत्म करना है, बल्कि काजी प्रथा को भी खत्म करना है। हम मुस्लिम विवाह और तलाक के पंजीकरण को सरकारी प्रणाली के तहत लाना चाहते हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि सभी शादियों का रजिस्ट्रेशन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार किया जाना है, लेकिन राज्य इस उद्देश्य के लिए काजी जैसी निजी संस्था का समर्थन नहीं कर सकता। यह कदम असम में विधायिका और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। मुख्यमंत्री के इस बयान से यह स्पष्ट है कि राज्य सरकार धार्मिक प्रथाओं और प्रक्रियाओं को अधिक से अधिक सरकारी नियंत्रण में लाने का प्रयास कर रही है, जिससे कानून का पालन सुनिश्चित किया जा सके।