बिहार की सियासत में डेढ़ साल बाद फिर बदलाव की बयार है, लेकिन सीएम तो नीतीशे कुमार हैं । नीतीश कुमार अपने सियासी करियर में तीसरी बार NDA का सहयोगी बनने जा रहे हैं । अपना नफा-नुकसान देखते हुए नीतीश कुमार अलग अलग वक्त पर NDA से आते-जाते रहे हैं । राजनीतिक विश्लेषक इस बार नीतीश के पलटी मारने की वजह आगामी लोकसभा चुनाव में हार का डर बता रहे हैं । इंडी गठबंधन का आइडिया नीतीश कुमार ने ही दिया था और वो उसमें संयोजक बनने के प्रबल दावेदार भी थे लेकिन वहां तवज्जो ना मिलने से नीतीश का मन गठबंधन से ठिठकने लगा था । वैसे भी इस बात का तो इतिहास गवाह है कि जब जब नीतीश NDA से अलग रहकर लोकसभा चुनाव लड़ा है तब तब उनका नुकसान हुआ है । मगर अब सवाल पूछा जा रहा है कि लालू से दूरी, नीतीश का दांव है या मजबूरी । नीतीश कुमार 2009 के लोकसभा चुनाव में NDA के साथ थे । तब JDU को 40 में से 20 सीटें मिली थीं, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश NDA से अलग हो गए थे । उस साल जेडीयू को सिर्फ 2 सीट ही मिली थीं । इसके बाद 2019 में जब नीतीश NDA के साथ थे तो उनकी पार्टी 17 सीटें जीती थीं । अब इस बार के लोकसभा चुनाव में कहीं फिर JDU इकाई अंक में न सिमट जाए, ये डर भी नीतीश कुमार के मन में हो सकता है । नीतीश कुमार के पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए बीजेपी भी इस बार शर्तों के साथ नीतीश कुमार को साथ ला रही है । इसमें सबसे बड़ी शर्त यही है कि वो NDA के दूसरे सहयोगियों का ध्यान रखेंगे । पशुपति पारस, चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी, नीतीश कुमार के विरोधी रहे हैं । ऐसे में उनके सम्मान की भी शर्त बीजेपी जरूर रहेगी । लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे पर कोई विवाद न हो इसके लिए भी बातचीत जरूर हुई होगी । चिराग पासवान ने भी खुद गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर नीतीश से विवाद की पुरानी कहानी याद दिलाई । जाहिर है नीतीश कुमार राजनीति के मौसम वैज्ञानिक हैं और हवा के रुख को भांपते हुए ही कोई फैसला लेते हैं । तीसरी बार NDA में शामिल होने का कदम उन्होंने अपना सियासी मुनाफा देखने के बाद ही उठाया होगा । नीतीश कुमार की ये पलटी उनका वो एक तीर है जिससे उन्होंने कई निशाने साधे हैं । मसलन, विधानसभा में कम सीटें होने के बावजूद नीतीश कुमार सीएम बने रहेंगे । जेडीयू की संभावित टूट का खतरा भी टल जाएगा । लोकसभा चुनाव के साथ-साथ विधानसभा चुनाव में भी मोदी के चेहरे का फायदा उनकी पार्टी को मिलेगा । जब समय का पहिया बदलता है तो दुश्मन भी दोस्त नजर आते हैं और दोस्त भी दुश्मन जैसे दिखने लगते हैं । बिहार की राजनीति को समझना बड़े-बड़े राजनीतिक पंडितों के लिए भी आसान नहीं है । बिहार में कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता । आज का दिन बिहार की इस सियासत में फिर से इतिहास लिखने वाला है, जिसका असर आगामी लोकसभा चुनाव पर पड़ना तय है ।