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Gorkha Scaled Mount Everest: नेपाल से ताल्लुक, नौकरी ब्रिटिश आर्मी में, अफगानिस्तान में खोए दोनों पैर और जीत लिया माउंट एवेरेस्ट, कहानी ‘बहादुर’ गोरखा की

Gorkha Scaled Mount Everest: हरि बुद्ध मागर शुक्रवार को नेपाल के समयानुसार शाम करीब 3 बजे सागरमाथा चोटी पर पहुंचे। सागरमाथा नेपाली में माउंट एवेरस्ट को ही बोलते है, महान हिमालय की चोटी को पार करके वे जब अपने कैंप में वापस लौटे तो हर कोई हैरान था। हर किसी के मन में उनके हिम्मत और जज्बे को लेकर एक गर्व की भावना थी। बता दें कि आज (सोमवार) वो काठमांडू कैंप पहुंच सकते हैं।

नई दिल्ली। ‘कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीअ’त से उछालो यारो’ ये कहावत उन हौंसलों के लिए है जो मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों से लड़कर, जूझकर, हिम्मत ना हार कर, अपना सबकुछ खोने के बाद भी सबकुछ हासिल करने की सनक वाले लोगों के दिल और दिमाग में चल रहे होते हैं। ऐसा ही कुछ कारनामा करके दिखाया ब्रिटिश आर्मी के पूर्व गोरखा सैनिक ने, पहले नेपाल से निकलकर ब्रिटिश आर्मी ज्वाइन की, फिर अफगानिस्तान युद्ध में देश की सेवा करते हुए भाग लिया, 2010 में आतंकियों द्वारा बिछाए गए बारूदी सुरंग में अपने दोनों पैर युद्ध के दौरान एक विस्फोट में खो दिए, फिर लोहे के पैरों पर चलकर फतह कर दी दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवेरेस्ट।

लोहे के पैरों पर फौलादी इरादों की कहानी

ये सब किसी फ़िल्मी कहानी सा लग रहा है ना, लेकिन ये सब एकदम सच है। ये कहानी है नेपाल के गोरखा हरि बुद्ध नागर की, जिन्होंने हिमलाय की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ने के साथ ही पहले डबल-टू-नाइट एंप्टी बनने की उल्लेखनीय उपलब्धि प्राप्त की है। ये वाकई अनोखी बात है, उनकी कहानी प्रेरणा देती है। लोहे के पैरों पर चलने वाले हरि बुद्ध ने 2006 में न्यू जोसेन्डर मार्क इंग्लिस और 2018 में चीन के जिया बोयू पर्वत को फतह किया था। ये भी कोई छोटे मोटे पहाड़ नहीं हैं इनकी ऊंचाई भी खूब है। दुनिया लोहे के पैर के साथ माउंट एवेरेस्ट फतह करने वाले इस गोरखा को इसी लिए सलाम कर रही है। जो जिजीविषा, जो उत्साह, जो हिम्मत, जो लगन, जो लक्ष्य भेदने की सनक थी वही उनके लिए आज दोनों पैरों को खोने के बाद भी इतनी बड़ी कामयाबी हासिल करने की वजह बनी।

2018 में सपने को मिली एक नई मंजिल

हिम बिस्ता ने बताया कि हरि बुद्ध मागर शुक्रवार को नेपाल के समयानुसार शाम करीब 3 बजे सागरमाथा चोटी पर पहुंचे। सागरमाथा नेपाली में माउंट एवेरस्ट को ही बोलते है, महान हिमालय की चोटी को पार करके वे जब अपने कैंप में वापस लौटे तो हर कोई हैरान था। हर किसी के मन में उनके हिम्मत और जज्बे को लेकर एक गर्व की भावना थी। बता दें कि आज (सोमवार) वो काठमांडू कैंप पहुंच सकते हैं। 43 साल के हो चुके हरि बुद्ध 2010 से ही हिमालय की महान चोटी को चढ़ने का सपना देख रहे थे लेकिन नेपाल के कानून के अनुसार तब तक पर्वतों पर अंधों, दोनों पैरों से अपंग लोगों को चढ़ने पर रोक थी, लेकिन 2018 में नेपाल की सरकार ने इसपर से प्रतिबंध हटाया था। इसके बाद से ही वो एक बार फिर तैयारियों में जुट गए थे।