नई दिल्ली। भारत से लद्दाख में तनाव के बीच साउथ चाइना सी में भी कई देशों के निशाने पर आ चुके चीन को खुद पर अमेरिकी हमले का डर सता रहा है। चीन अपनी नापाक हरकतों की वजह से दोस्त कम बल्कि दुश्मन ज्यादा बना लिए हैं। लद्दाख में भारत के साथ तनाव तो बना ही हुआ है लेकिन साथ अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के निशाने पर चीन अक्सर आता रहता है। अब चीन को डर सता रहा है कि अमेरिका उसपर हमला कर सकता है। इसको लेकर चीन के सरकार अखबार ग्लोबल टाइम्स के एडिटर ने ट्वीट कर कहा है कि ट्रंप प्रशासन साउथ चाइना सी में चीन के द्वीप पर हमला कर सकता है। ग्लोबल टाइम्स के एडिटर Hu Xijin ने ट्वीट में कहा, “मुझे मिली जानकारी के अनुसार, अमेरिकी चुनाव में दोबारा जीत हासिल करने के लिए अमेरिका का ट्रंप प्रशासन साउथ चाइना सी में MQ-9 Reaper drones के जरिए चीन के द्वीप पर हमला कर सकता है। अगर ऐसा होता है तो चीनी PLA निश्चित रूप से जमकर लड़ाई लड़ेगी और युद्ध शुरू करने वालों को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।”
Based on information I learned, Trump govt could take the risk to attack China’s islands in the South China Sea with MQ-9 Reaper drones to aid his reelection campaign. If it happens, the PLA will definitely fight back fiercely and let those who start the war pay a heavy price.
— Hu Xijin 胡锡进 (@HuXijin_GT) September 28, 2020
बता दें कि चीन और अमेरिका के बीच तल्खी तब और बढ़ गई जब बीजिंग ने वाशिंगटन के इन आरोपों को लेकर पलटवार किया कि वह वैश्विक पर्यावरण क्षति का एक प्रमुख कारण है और वह दक्षिण चीन सागर का सैन्यीकरण नहीं करने के अपने वादे पर पलट गया है। चीन ने अमेरिका को ‘‘अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सहयोग का सबसे बड़ा विध्वंसक’’ करार देते हुए सवाल किया कि अमेरिका जलवायु परिवर्तन को लेकर पेरिस समझौते से क्यों पीछे हट रहा है।
उल्लेखनीय है कि अमेरिका के विदेश विभाग ने पिछले सप्ताह एक दस्तावेज जारी किया था जिसमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से वायु, जल और मृदा के प्रदूषण, अवैध कटाई और वन्यजीवों की तस्करी के मुद्दों पर चीन के रिकॉर्ड का हवाला दिया गया था। दस्तावेज में कहा गया है, ‘‘चीनी लोगों ने इन कार्रवाइयों के सबसे खराब पर्यावरणीय प्रभावों का सामना किया है। साथ ही बीजिंग ने वैश्विक संसाधनों का लगातार दोहन करके और पर्यावरण के लिए अपनी इच्छाशक्ति की अवहेलना करके वैश्विक अर्थव्यवस्था और वैश्विक स्वास्थ्य को भी खतरे में डाला है।’’