नई दिल्ली। दुनिया के सामने अपनी धमक जमाने की हवस में तालिबान ने एक ऐसी गलती कर दी है जो उसके वजूद की दुश्मन बन गई है। तालिबान ने जिस तरह से काबुल पर कब्जा किया, वह अमेरिकी प्लान से कोसों दूर था। इस कब्जे से पहले दोहा में तालिबान के साथ अमेरिकी की लंबी बातचीत चली थी। अमेरिकी की ओर से इस मामले में विशेष दूत जलमय खालिदजाद ने भरोसा दिलाया था कि तालिबान अमेरिकी प्लान के मुताबिक ही आगे बढ़ेगा। इसी लिहाज से अमेरिका ने 31 अगस्त की डेडलाइन तय की थी जब उसे अपने सैनिक अफगानिस्तान से वापिस बुलाने थे। इस बीच तालिबान और अफगानिस्तान की पूर्व सरकार के बीच ‘डील’ की कोशिशें भी की जा रहीं थीं। मगर तालिबान के आतंक की भूख ने न सिर्फ अमेरिका के किए कराए पर पानी फेर दिया बल्कि उसे पूरी दुनिया और खासकर अपने नागरिकों के नजरों में शर्मसार कर दिया।
आलम यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन अपनी रेटिंग के सबसे निचले तल पर हैं और उन्हें अमेरिका का सबसे कमजोर राष्ट्रपति मानने और उनका इस्तीफा मांगने वालों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। तालिबान के आतंक के चलते अमेरिका को वियतनाम के साइगान की तरह ही हेलीकॉप्टर के ज़रिए अपने दूतावास के कर्मचारियों को बाहर निकालना पड़ा। इसने पूरी दुनिया में अमेरिका की बदनामी करा दी।
अमेरिकी की फजीहत का ये आलम है कि ताइवान जैसे देश जो अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका पर आश्रित हैं, की सुरक्षा पर अब सवाल उठने लगे हैं। चीन के आधिपत्य के आगे अमेरिका बौना साबित दीखने लगा है। उधर चीन और रूस तालिबान के साथ अच्छे रिश्तों के संकेत देकर अमेरिका के जले पर नमक छिड़कने में लगे हुए हैं। अमेरिका अफगानिस्तान में करीब तीन ट्रिलियन डॉलर फूंक चुका है मगर उसके हाथ कुछ नही आया। उल्टे बड़ी तादाद में अमेरिकी हथियार, असाल्ट राइफलें, नाइट विजन डिवाइस और यहां तक कि अमरिकी लड़ाकू हेलीकॉप्टर भी तालिबान के कब्जे में आ चुके हैं जिन्हें दिखाकर वह लगातार अमेरिका को चिढ़ा रहा है।
तालिबान की इन हरकतों ने अमेरिका को बड़ा कदम उठाने पर मजबूर कर दिया है। ऐसी खबरें आ रही हैं कि अमेरिका ने तालिबान को भीषण चोट देने का फूलप्रूफ प्लान तैयार कर लिया है। ये चोट उसे मिलेट्री और आर्थिक दोनो ही मोर्चों पर दी जाएगी। अमेरिका तालिबान पर भीषण प्रतिबंध लगा सकता है और साथ ही आतंक के ठिकानों पर बम भी बरसा सकता है। इस लड़ाई में ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी भी अमेरिका के साथ खड़े हैं। अमेरिका अब तालिबान के साथ टकराव का साफ संकेत दे रहा है। जानकारी इस बात की भी है कि दुनिया के 7 सुपर पावर देशों की मीटिंग (G-7) के बाद बाइडेन कभी भी अफगानिस्तान से अमेरिका के निकलने की समय सीमा बढ़ाने का ऐलान कर सकते हैं।
अमेरिका के मित्र देश कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली भी उस पर दवाब बढ़ा रहे हैं कि वो काबुल से निकलने की अपनी समय सीमा बढ़ाए। अगर ऐसा हुआ हो अमेरिका और तालिबान के बीच चिंगारी भड़कने की पूरी आशंका है। उधर तालिबान ने अमेरिका को धमकी भी दे दी है। उसने साफ चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका ने 31 अगस्त तक तालिबान से अपनी फौजें नहीं हटाईं तो बहुत बुरा हो सकता है। जवाब में बाइडन ने भी साफ कर दिया है। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में 6 हजार अमेरिकी सैनिक ग्राउंड पर हैं, अगर हम पर हमला हुआ तो हम जवाब देंगे। अमेरिका और तालिबान के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। सामरिक क्षेत्र के विशेषज्ञों के मुताबिक ये तनाव कभी भी तालिबान पर भीषण अमेरिकी हमले का सबब बन सकता है।