नई दिल्ली। यूं तो सालभर में कई एकादशी मनाई जाती है लेकन आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस साल देवशयनी एकादशी 20 जुलाई यानी मंगलवार के दिन पड़ रही है। कहा जाता है कि इसी तिथि से चातुर्मास का आरंभ भी हो जाता है। देवशयनी एकादशी को कई राज्यों में अगल-अलग नाम से भी जाना जाता है। कहीं पर इसे हरिशयनी एकादशी और आषाढ़ी एकादशी के भी कहते हैं। हर एकादशी के दिन का अपना अलग महत्व होता है। वहीं इस दिन विधान से व्रत करने पर हर मनोकामना पूरी होती है। एकादशी के व्रत को समाप्त करने को ही पारण कहा जाता है।
देवशयनी एकादशी व्रत का महत्व
देवशयनी एकादशी का व्रत रखने से न केवल व्यक्ति को अच्छे परिणाम मिलते हैं, साथ ही उसे कई हज़ार यज्ञ के समान फलों की प्राप्ति भी होती है। इस दिन विधि-विधान के अनुसार व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। व्यक्ति अपने सभी पापों से मुक्ति भी पा लेता है, शास्त्रों की मानें तो, ये दिन विशेषरूप से भगवान विष्णु को समर्पित है.
कहा जाता है कि जिस तिथि पर सूर्य देव मिथुन राशि में अपना स्थान ग्रहण करते हैं उसी दिन की रात्रि से भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हुए निंद्रा में चले जाते हैं। यही कारण है कि भगवान श्री हरि के इस शयन काल को चातुर्मास के प्रारंभ के रूप में देखा जाता है। लगभग चार महीने के बाद जब सूर्य देव तुला में विराजमान होते है तो भगवान विष्णु को परंपरागत तरीके से अपने शयनकाल से जगाना पड़ता है। जिसे हिन्दू धर्म में देवोत्थान एकादशी कहा गया है।
एकादशी का पौराणिक महत्व
देवशयनी एकादशी को लेकर पौराणिक शास्त्रों में कई उल्लेख देखे जाते हैं। इन कथाओं के अनुसार भगवान श्री विष्णु अगले चार मास की अवधि तक पाताल लोक में शयन करते है। इस वजह से इन चार महीनों में कोई भी धार्मिक या मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। माना जाता है कि इस अवधि में किया गया कोई भी शुभ कार्य फलित नहीं होता।