नई दिल्ली। हिंदू धर्म में हर माह दो एकादशी पड़ती हैं, जिसे ‘कृष्ण पक्ष की एकादशी’ और ‘शुक्ल पक्ष की एकदशी’ के नाम से जाना जाता है, लेकिन फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘रंगभरी एकादशी’ के नाम से जाना जाता है। भगवान विष्णु को समर्पित इस एकादशी में भगवान शंकर की पूजा की जाती है। इस दिन काशी के विश्वनाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग का श्रृंगार किया जाता है। कहा जाता है इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती शादी के बाद पहली बार काशी आए थे, इसलिए बाबा विश्वनाथ को दूल्हे की तरह सजाया जाता है। इसे विवाह पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसी वजह से काशी में होली से पहले जश्न शुरू हो जाता है, जो 6 दिनों तक चलता है। इस दिन बाबा विश्वनाथ का श्रृंगार कर उन्हें शहर भर में घुमाया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए स्वयं अवतरित होते हैं और उनके साथ जश्न में शामिल होते हैं। इसी दिन से काशी में होली की शुरूआत हो जाती है। लोग एक-दूसरे को रंग- गुलाल लगाकर हर-हर महादेव के जयकारे लगाते हैं, साथ ही शिव-पार्वती से जुड़े कार्यक्रम करते हैं। बाबा विश्वानाथ का भव्य श्रृंगार साल में दो बार ‘रंगभरी एकादशी’ और ‘महाशिवरात्रि’ के दौरान किया जाता है। इसके अलावा ये भी माना जाता है कि रंगभरी एकादशी से शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है, साथ ही जिन लोगों के घरों में सूतक लगा होता है और सूतक की वजह से अच्छे काम या त्योहार रुके होते हैं, इस एकादशी के बाद उन त्योहारों और शुभ कार्यों को किया जा सकता है।
रंगभरी एकादशी की पूजन विधि
रंगभरी एकादशी को ‘आमलकी एकादशी’ भी कहा जाता है। इस दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद पूजा-व्रत का संकल्प लेना चाहिए, फिर भगवान शंकर के मंदिर जाकर शिवलिंग पर जल, चंदन और बेलपत्र आदि अर्पित करने के बाद अबीर और गुलाल लगाकर भगवान शिव को प्रणाम करना चाहिए।
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