नई दिल्ली। पूरे देश में दिवाली का त्योहार (Diwali Festival) इस साल 14 नवंबर को मनाया जा रहा है। इस दिन कार्तिक मास (Kartik Month) के कृष्ण पक्ष (Krishna Paksha) की अमावस्या तिथि (New Moon Day) की मध्यरात्रि को मां काली की पूजा (Maa Kali Ki Puja) की जाती है। काली पूजा मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में की जाती है।
यहां के लोगों का मानना है कि इस दिन मां काली की पूजा करने से विशेष सिद्धियों की प्राप्ति होती है और मां काली की आशीर्वाद सदा के लिए बना रहता है। हम आपको काली पूजा का महत्व और शुभ मुहूर्त बताते हैं।
काली पूजा तिथि
14 नवंबर
काली पूजा का शुभ मुहूर्त
काली पूजा निशिता काल – रात 11 बजकर 39 मिनट से रात 12 बजकर 32 मिनट तक
अमावस्या तिथि प्रारम्भ – दोपहर 02 बजकर 17 मिनट से (14 नवम्बर 2020)
अमावस्या तिथि समाप्त – अगले दिन सुबह 10 बजकर 36 मिनट तक ( 15 नवम्बर 2020)
काली पूजा का महत्व
दिवाली के दिन जहां एक तरफ भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है तो वहीं दूसरी और पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में मां काली की पूजा की जाती है। दिवाली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा प्रदोष काल में करना शुभ माना जाता है तो वहीं मां काली की पूजा इस दिन मध्यरात्रि में की जाती है। माना जाता है कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मां काली की पूजा करने से विशेष सिद्धि प्राप्त होती है। इसी कारण से इस दिन लोग अपने मनोरथ को सिद्ध करने के लिए इस दिन मां काली की पूजा करते हैं।
मां काली की इस पूजा को श्यामा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम के लोगों के लिए तो यह दिन काफी खास होता है। क्योंकि इस दिन यहां के लोग मां काली की विशेष पूजा करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। हिंदू शास्त्रों के अनुसार दिवाली की रात को सिद्धि की रात्रि माना जाता है। इसलिए इस दिन कई तांत्रिक भी मां काली को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा करते हैं।