नई दिल्ली। हिंदू धर्म में पूरे साल कई प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं। उन्हीं त्योहारों में से एक है ‘कजरी तीज’। वैसे तो तीज का पर्व तीन प्रकार से मनाया जाता है, जिसमें पहली सावन में ‘हरयाली तीज’ के नाम से, दूसरी ‘हरतालिका तीज’ और तीसरी ‘कजरी तीज’ होती है। लेकिन आज यानी 14 अगस्त को कजरी तीज का पर्व है तो अभी हम इसी की बात करेंगे। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं और भगवान शिव और माता पार्वती की पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करती हैं। ये त्योहार हर वर्ष कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। उत्तर भारत में इस पर्व का विशेष महत्व होता है। कजरी तीज का व्रत हर साल रक्षा बंधन के तीन दिन बाद और जन्माष्टमी से ठीक पांच दिन पहले मनाया जाता है। इस बार ये त्योहार आज रविवार यानी 14 अगस्त के दिन पड़ रहा है। कजरी तीज के व्रत का शुभारंभ दोपहर 12 बजकर 53 मिनट से हो जाएगा, जो रात के 10 बजकर 35 मिनट तक जारी रहेगा। इस बार कजरी तीज पर कई शुभ योग भी बन रहे हैं। 11 अगस्त को दोपहर 12 बजकर 8 मिनट से 12 बजकर 59 मिनट तक अभिजित मुहूर्त लगेगा। उसके बाद सर्वार्थ सिद्धि योग लग जाएगा, जो रात 9 बजकर 56 मिनट से 15 अगस्त की सुबह 6 बजकर 9 मिनट तक जारी रहेगा।
कजरी तीज की व्रत कथा
प्रचलित कथा के अनुसार, किसी गांव में एक गरीब ब्राह्मण निवास करता था। एक दिन भाद्रपद के महीने की कजरी तीज का व्रत पड़ा और उसकी पत्नी ने तीज माता का व्रत रखा। ब्राम्हणी ने अपने पति से कहा, स्वामी आज मेरा तीज का व्रत है। कृपया मेरे लिए कहीं से चने का सत्तू ले आइए। लेकिन ब्राह्मण ने परेशान होकर सत्तू लाने से मना कर दिया। इस ब्राह्मणी अपनी जिद पर अड़ गई। आखिरकार, रात के समय ही ब्राह्मण घर से सत्तू लाने के लिए निकल पड़ा और चुपचाप एक साहूकार की दुकान में जाकर उसने चने की दाल, घी, शक्कर आदि मिलाकर सवा किलो सत्तू बनाकर अपनी पोटली में बांध लिए। तभी साहूकार के नौकरों के कानों में खटपट की आवाज पड़ी और वो जाग गए। इसके बाद उन्होंने चोर-चोर चिल्लाना शुरू कर दिया और ब्राम्हण को पकड़ लिया। शोर सुनकर साहूकार भी वहां पहुंच गया। पूछने पर उसने बताया कि मैं बहुत गरीब हूं और मेरी पत्नी ने आज तीज का व्रत रखा है, इसलिए मैंने आपकी दुकान से केवल सवा किलो का सत्तू लिया है। तलाशी लेने पर ब्राम्हण की बात सही निकली।
ब्राह्मणी घर पर इंतजार कर रही थी और उधर चांद भी निकल आया था। ब्राह्मण की बात सुनने के बाद साहूकार को उस पर दया आ गई और उसने कहा, ‘आज से तुम्हारी पत्नी को मेरी बहन है।’ इतना कहने के बाद उसने ब्राह्मण को सत्तू, गहने, रुपये, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर पूरे सम्मान के साथ विदा किया और फिर सबने मिलकर कजली माता की पूजा पूरे विधि-विधान से की।