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Datta Purnima: दत्त पूर्णिमा जानें किस भगवान की होती है पूजा, जरूर पढ़ें कथा

Datta Purnima: आज 18 दिसंबर को दत्त पूर्णिमा मनाई जा रही है। दत्त पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय पूर्णिमा या दत्ता पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है जो कि मार्गशीर्ष माहीने की पूर्णिमा तिथि पर मनाई जाती है।

नई दिल्ली। आज 18 दिसंबर को दत्त पूर्णिमा मनाई जा रही है। दत्त पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय पूर्णिमा या दत्ता पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है जो कि मार्गशीर्ष माहीने की पूर्णिमा तिथि पर मनाई जाती है। इस पूर्णिमा पर जिन दत्तात्रेय की पूजा-अर्चना की जाती है वो कोई और नहीं बल्कि त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अवतार माने जाते हैं। तीन सिर और छह भुजाओं वाले भगवान दत्तात्रेय का जन्म ऋषि अत्रि और उनकी पत्नी, देवी अनसूया से हुआ था। तो चलिए इस लेख में आपको बताते हैं दत्त पूर्णिमा पर क्या है इसकी कथा…

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भगवान दत्तात्रेय की कथा

कथा के मुताबिक, जब महर्षि अत्रि मुनि की पत्नी अनसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने ने के लिए त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश पृथ्वी लोक पहुंचते हैं तो वो मां अनसूया से भोजन के लिए इच्छा प्रकट करते हैं। जिसके बाद जब मां भोजन लाती हैं तो त्रिदेव माता से शर्त रखते हैं कि वो उन्हें निर्वस्त्र होकर भोजन कराएं। ऐसे में माता पहले तो थोड़ा संशय में पड़ जाती है और बाद में अपनी दिव्य दृष्टि से उन्हें पता चलता है कि वे ऋषि कोई और नहीं बल्कि स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। जब माता अनसूया को ये पता चलता है तो वो अत्रिमुनि के कमंडल से जल निकालकर तीनों साधुओं पर छिड़क देती है। ऐसा करते ही ऋषि छह माह के शिशु बन जाते हैं इसके बाद माता अनसूया तीनों को भोजन कराती है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेवों के शिशु बनने के बाद तीनों देवियां (पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी) पृथ्वी लोक में पहुंचती हैं और माता अनसूया से क्षमा याचना करती हैं। तीनों देव भी अपनी गलती को स्वीकारते हैं और माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह करते हैं। बाद में यहीं त्रिदेव माता अनसूया की कोख से दत्तात्रेय के रूप में जन्म लेते हैं और तभी से ही माता अनसूया की पुत्रदायिनी के रूप में पूजा की जाती है।

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विष्णु के 24 अवतारों में से एक हैं दत्तात्रेय

भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक भगवान दत्तात्रेय को ऐसे ऋषि हैं जिन्होंने बिना गुरु के ज्ञान प्राप्त किया। भगवान दत्तात्रेय की पूजा खासकर महाराष्ट्र, गोवा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना और गुजरात और मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में की जाती है। इस विशेष पूजा-अर्चना की जाती है साथ ही एक दिन का उपवास भी रखा जाता है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, दत्तात्रेय के तीन सिर तीन गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं- जो हैं सत्त्व, रजस और तमस और उनके छह हाथ यम (नियंत्रण), नियम (नियम), साम (समानता), दम (शक्ति), दया का प्रतिनिधित्व करते हैं।