नई दिल्ली। हिंदू धर्म में सावन के महीने का खास महत्व होता है। इस महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। माना जाता है सावन का महीना भगवान भोलेनाथ को सबसे प्रिय होता है ऐसे में जो भी भक्त इस महीने में भोले भंडारी की पूजा और वर्त करता है उसे भगवान शकंर की असीम कृपा मिलती है। साथ ही उसके सभी काम बनने लगते हैं। तो चलिए आपको बताते हैं कब से हो रही है सावन के महीने की शुरूआत, सावन महीने के कितने होंगे सोमवार…
कब से हो रही है सावन के महीने की शुरुआत
आषाढ़ का महीना 24 जुलाई को खत्म हो जाएगा जिसके बाद अगले दिन यानी 25 जुलाई, रविवार के दिन से सावन का महीना शुरू हो जाएगा। ऐसे में 26 जुलाई को सावन का पहला सोमवार पड़ेगा ये पूरा ही महीना भगवान शिव को समर्पित माना जाता है।
कितने होंगे सावन महीने में सोमवार
सावन के महीने में सोमवार का दिन का खास होता है। इस बार भोले भंडारी के सावन महीने में चार सोमवार व्रत पड़ रहे हैं। सावन के पहले सोमवार का व्रत 26 जुलाई को रखा जाएगा जबकि इसका आखिरी सोमवार 16 अगस्त को पड़ेगा। सावन के हर सोमवार में बेल पत्र से भगवान भोलेनाथ की पूजा की जाती है जिससे व्यक्ति को प्रभू की असीम कृपा मिलती है।
सावन व्रत और शिव पूजा की विधि
सावन के पहले सोमवार के दिन आपको सूर्योदय से पहले जाग कर स्नान करना चाहिए इसके बाद साफ कपड़े पहनने चाहिए। इसके बाद पूजा स्थल को अच्छे साफ कर यहां वेदी स्थापित करें। इस दिन शिवलिंग पर दूध चढ़ाकर आप महादेव के व्रत का संकल्प लें। इसके अलावा आपको सुबह-शाम भगवान शिव की अराधना करनी चाहिए। पूजा के लिए आपको तिल के तेल का दीया जलाना चाहिए साथ ही भगवान को फूल भी अर्पण करें। मंत्रोच्चार करने के बाद शिव को सुपारी, पंच अमृत, नारियल और बेल की पत्तियां भी चढ़ाएं। अगर आपने व्रत रखा है तो सावन व्रत कथा का पाठ जरूर करें।
सावन का महत्व
हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन माह प्रिय होने का कारण पूछा तो महादेव भगवान शिव ने बताया था कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।