नई दिल्ली। वैसे तो पूरे साल ही प्रकृति में बदलाव होते रहते हैं कभी पतझड़ तो कभी बसंत। लेकिन फाल्गुन माह में होली से आठ दिन पूर्व प्रकृति में होने वाले बदलाव का ज्योतिष शास्त्र में विशेष महत्व है। होली से आठ दिन पूर्व होने बदलाव के इस काल को ‘होलाष्टक’ कहा जाता है। इसका प्रभाव मनुष्य के व्यवहार में प्रत्यक्ष रुप से दिखाई देता है। बसंत ऋतु का भी यही समय होता है। वैसे भी बदलाव प्रकृति का नियम है फिर वो चाहें कोई भी क्षेत्र हो। प्रकृति में होने वाले किसी भी प्रकार का मानव जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ता है। कहा जाता है कि होली से पहले आठ दिन तक प्रकृति कुछ विशेष नकारात्मक किरणों से भरी होती है। इसका मुख्य कारण ये है कि मीन राशि में सूर्य का संक्रमण ‘मलमास’ का निर्माण करता है।
मलमास के साथ-साथ होलाष्टक भी पृथ्वी पर नकारात्मक ऊर्जा की उत्पत्ति कर देते हैं। इसीलिए इस समय किसी भी शुभ कार्य का करना अच्छा नहीं माना जाता है। इस दौरान विवाह, सगाई, गृह प्रवेश और नींव पूजन जैसे शुभ कामों को करने से बचना चाहिए। हालांकि बालक के जन्म, किसी की मृत्यु अर्थात सूतक और पातक के सभी कार्य किए जा सकते हैं। इस अवधि में भगवान विष्णु की पूजा करना काफी अच्छा माना जाता है। इस साल होलिका दहन 17 मार्च को की जाएगी। इसके अलावा धार्मिक मान्यता भी है कि इस दौरान हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए इन आठ दिनों में विभिन्न प्रयास किए थे। यही कारण है कि इन आठों दिन किसी भी शुभ कार्य के लिए अच्छे नहीं माने जाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार नवविवाहिताएं अपनी पहली होली ससुराल में नहीं मनाती हैं। होलाष्टक लगने से पहले ही वो अपने मायके चली जाती हैं और होली दहन के बाद या ‘शीतला माता पूजा’ (बसौडा) के बाद ही अपनी ससुराल वापस लौटती हैं। कहा जाता है कि ऐसा करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है साथ ही संतान और वंश की वृद्धि के योग भी बनते हैं।
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