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Karva Chauth 2022: पहली बार किसने रखा था करवा चौथ का व्रत, जानिए कैसे शुरू हुई ये परंपरा?

Karva Chauth 2022: इस त्योहार की शुरुआत पंजाबी परंपरा से हुई थी। बाद में धीरे-धीरे ये पूरे देश में फैल गया। लेकिन क्या आप जानते हैं करवाचौथ का व्रत सबसे पहले किसने रखा था। तो आइए आपको  जानते हैं कि इस व्रत की शुरूआत पूरे ब्रह्मांड में सबसे पहले की थी…

नई दिल्ली। हिंदू धर्म में मनाए जाने वाले कई प्रमुख त्योहारों में से एक करवा चौथ का व्रत इसी हफ्ते मनाया जाएगा। सबसे कठिन व्रतों में गिने जाने वाले इस व्रत में भारतीय महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला उपवास रखती हैं। कहा जाता है कि इस त्योहार की शुरुआत पंजाबी परंपरा से हुई थी। बाद में धीरे-धीरे ये पूरे देश में फैल गया। लेकिन क्या आप जानते हैं करवाचौथ का व्रत सबसे पहले किसने रखा था। तो आइए आपको  जानते हैं कि इस व्रत की शुरूआत पूरे ब्रह्मांड में सबसे पहले की थी… प्राचीन समय में करवा नामक एक पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे बसे एक गांव में रहा करती थी। उसके पति की उम्र काफी अधिक थी। एक दिन जब उसका पति नदी में स्नान करने गया तो एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया और उसके पानी में खींचने लगा। इस पर वो अपनी पत्नी का नाम लेकर ‘करवा करवा’ चिल्लाते हुए सहायता के लिए बुलाने लगा। पतिव्रता करवा के सतीत्व में बहुत अधिक बल था। पति की पुकार सुनते ही करवा दौड़कर अपने पति के पास गई और उन्हें मगरमच्छ के मुंह में पति का पैर देख कर घबरा गई। लेकिन फिर उसने अपनी सूती साड़ी से एक धागा निकालकर अपने तपोबल की शपथ लेते हुए मगरमच्छ को कच्चे धागे से वहीं बांध दिया। इसके बाद करवा अपने पति की रक्षा के लिए यमराज के पास पहुंच गई। उस समय चित्रगुप्त के अपने खाते देख रहे थे। करवा अपने साथ सात सींकें लेकर गई थी, उन्हें उनके सामने ही झाड़ने लगी।

उसके ऐसा करते ही सारे खाते इधर-उधर बिखर गए। तब उनका ध्यान करवा पर गया और यमराज ने उससे यमलोक आने की मंशा पूछी। इस पर करवा ने यमराज को सारी बात बताते हुए कहा कि उस अधर्मी मगरमच्छ को आप अपनी शक्ति से मृत्युदंड देखकर नरक लोक में डाल दो। इस पर यमराज ने कहा कि अभी मगरमच्छ की मृत्यु का समय नहीं आया है। उसे मैं मृत्यु दंड नहीं दे सकता। इस पर करवा ने क्रोधित होते हुए कहा ‘अगर आप मगरमच्छ को मारकर, मेरे पति को चिरायु होने का वरदान नहीं देगें तो मैं अपने तपोबल की शक्ति से आपको नष्ट होने का शाप दे दूंगी।’ करवा की ये बात सुनते ही चित्रगुप्त और यमराज चिंता में पड़ गए। क्योंकि वो करवा के सतीत्व की शक्ति के बल से परिचित थे। इसके बाद उन्हें मगरमच्छ को असमय ही यमलोक भेजना पड़ा। इसके बाद यमराज ने करवा के पति को चिरायु का वरदान दिया। साथ ही करवा को सुखी और समृद्ध होने का आशीर्वाद देते हुए कहा कि हे करवा! आज तपोबल से तुमने अपने पति के प्राणों की रक्षा की है। इससे प्रसन्न होकर मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि इस तिथि पर जो भी महिला पूर्ण विश्वास और आस्था से व्रत और पूजन करेगी, मैं उसके सुहाग और सौभाग्य की रक्षा करूंगा।

ये तिथि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (चौथ) तिथि थी। करवा और चतुर्थी तिथि के कारण इस व्रत का नाम करवा चौथ पड़ गया। तो ये कहा जा सकता है कि मां करवा वह पहली स्त्री हैं, जिन्होंने अपने सुहाग की रक्षा के लिए इस व्रत को किया था। तब से इस प्रथा का आरंभ हो गया। करवाचौथ के व्रत में शाम को पूजा करते समय माता करवा की इस कथा को पढ़ना अत्यंत आवश्यक है। इसके अलावा वराह पुराण के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण की सलाह पर द्रौपदी द्वारा अर्जुन के लिए करवाचौथ का व्रत रखने का भी उल्लेख मिलता है।