नई दिल्ली। हिंदू धर्म में पूजे जाने वाले 33 करोड़ देवी देवताओं में से एक भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत आज यानी 07 अक्टूबर को रखा जाएगा। प्रदोष व्रत की सबसे खास बात ये है कि ये व्रत तिथि जिस भी दिन पड़ती है उसे उसी के नाम से जाना जाता है। इस बार ये तिथि शुक्रवार को पड़ रही है इसलिए इसे ‘शुक्र प्रदोष’ व्रत कहा जाएगा। हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रदोष व्रत का खास महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस पर्व पर भोलेनाथ के साथ माता पार्वती की पूजा करने से मनवांछित फल प्राप्त होते हैं। किसी भी व्रत में शुभ-मुहूर्त और तिथि का काफी महत्व होता है, ऐसे में आइए जानते हैं प्रदोष व्रत की तिथि, शुभ मुहूर्त, और उसकी पूजा विधि के बारे में…
शुभ-मुहूर्त
प्रदोष व्रत प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। इस बार ये तिथि 07 अक्टूबर, शुक्रवार को सुबह 7 बजकर 26 मिनट पर पड़ रही है, जिसकी समाप्ति 08 अक्टूबर की सुबह 5 बजकर 24 मिनट पर होगी। इसकी पूजा का शुभ-मुहूर्त 07 अक्टूबर की शाम 6 बजे से लेकर रात 8 बजकर 28 मिनट तक बताया जा रहा है।
पूजा-विधि
1.शुक्र प्रदोष व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2.इसके बाद भगवान शिव के सामने दीपक प्रज्वलित कर प्रदोष व्रत करने का संकल्प लें।
3.शाम के समय शुभ-मुहूर्त में पूजा करना आरंभ करें।
4.पूजा के दौरान गाय के दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल आदि से शिवलिंग का अभिषेक करें।
5.अब शिवलिंग पर सफेद चंदन लगाकर बेलपत्र, मदार, पुष्प, भांग, आदि वस्तुएं अर्पित करें।
6.इसके बाद विधिपूर्वक पूजा कर भगवान की आरती करें।
प्रदोष व्रत का महत्व
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, प्रदोष व्रत में प्रदोष काल का समय शुभ माना जाता है। इस समय व्रती द्वारा की गईं सभी प्रार्थनाएं और पूजा सार्थक रूप से सफल होती हैं। इसके अलावा, इस व्रत को करने से रोग, ग्रह दोष, कष्ट, पाप आदि से कष्टों से भी छुटकारा मिलता है। ऐसी मान्यता है कि पूरी श्रद्धा भाव के साथ इस व्रत को करने पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।