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West Bengal: ‘बंगाल की हिंसा उसकी शांतिप्रिय सांस्कृतिक विरासत के अनुकूल नहीं’

Bengal’s Violence: ‘बंगाल एक महिला द्वारा शासित राज्य होने के बावजूद भी जिस तरह महिला विरोधी हिंसक प्रवृति बंगाल में देखने को मिल रही है, वह इसी बात का संकेत है की काला और क्रूर आक्रांताओ का इतिहास दोहराया जाने का प्रयास किया जा रहा है।’

बंगाल वो धरा है जहाँ अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों  व समाज सुधारकों ने जन्म लिया जिन्होंने बंगाल को अपना केंद्र बना कर क्रूर विदेशी शासकों से लड़े और अपने प्राण न्योछावर किए। ऐसे वीर योद्धाओं के हृदय में भारत भूमि की स्वतंत्रता मुख्य रूप से अहम थी इसलिए नही की वो सत्ता का सुख भोगे अपितु इसलिए की भारत में रहने वाला जन जन सुख भोग सके और स्वतंत्रता के साथ जीवन यापन कर सके। किसी भी देश या राज्य का केंद्र वहाँ रहने वाली जनता है और इसी जनता को संविधान द्वारा अपने उत्तरदायी चुनने की ताक़त दी गयी है। आज इस संविधान की अवहेलना का केंद्र बंगाल की वही भूमि है जहाँ से स्वतंत्रता हेतु आवाज़ें मुखर रूप से उठी थी। इस बार तृणमूल कांग्रेस के पुनः बहुमत हासिल किए जाने पर एक भयावह दृश्य सामने आया जिसने इस देश में रहने वाले हर व्यक्ति को झकझोर कर रख दिया।

TMC

एक लोकतांत्रिक देश की नीव ना सिर्फ़ विभिन्न विचारधाराओं के ज़िंदा रहने पर टिकी है बल्कि विभिन्न विचार रखने वाले लोगों के सम्मान में भी है। हर मत का अपना अधिकार है, हर विचार का स्वागत है, हर विषय पर चर्चा करने का अधिकार है,आख़िर यही भारत का लोकतंत्र है। भारत के लोकतंत्र पर प्रहार किस तरह किया जाता है ,इसका एक उधाहरण मुग़ल इतिहास की याद दिलाता है। जिस तरह बंगाल में सत्ताधारी पार्टी द्वारा विपक्षी दलों से जुड़े लोगों का नरसंहार किया जा रहा है, उनकी संपत्ति को नष्ट किया जा रहा है, बंगाल पर शासन करने वाली महिला केंद्रित पार्टी द्वारा महिलाओं की सरेआम इज़्ज़त लूटी जा रही है, विपक्षी दलों के स्थानीय समर्थकों के घरों को जलाया जा रहा है, परिवार सहित यह लोग अपने घरों से पलायन कर रहे है, यह सभी उस बंगाल में हो रहा है जहाँ से भारत के क्रांतिकारी वर्ग ने क्रूरता के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल कर, आक्रांताओ को बाहर का रास्ता दिखाकर, भारत में शांति स्थापना की नीव रखने का प्रण लिया था।

जिस तरह क्रूर आक्रांता मोहम्मद गोरी के अमानवीय कृत्यों का इतिहास किताब मीरा चरिता में लिखा है ,उससे यह पता चलता है की जब भी गोरी भारत से पुनः अफ़ग़ानिस्तान लौटता तों भारतीय महिलाओं को दासी और सेक्स वर्कर बना कर अपने साथ ले जाता। यह भी इतिहास में कई जगह बताया गया है कि किस तरह मुग़ल शासक जंग जीतने के उपरांत, हारे हुए साम्राज्य की महिलाओं का शोषण करते एवं अत्याचार किया करते थे जिसका एक उधाहरण पृथ्वीराज चौहान को धोके से हराने के बाद मोहम्मद गौरी द्वारा उसकी रानी संयोगिता को ना सिर्फ़ दासी बना कर अपमानित किया जाना है बल्कि शारीरिक शोषण भी है।इस बात की पुष्टि किताब मीरा चरिता में भी हुई है।

Bengal Violence

वर्तमान में बंगाल एक महिला द्वारा शासित राज्य होने के बावजूद भी जिस तरह महिला विरोधी हिंसक प्रवृति बंगाल में देखने को मिल रही है, वह इसी बात का संकेत है की काला और क्रूर आक्रांताओ का इतिहास दोहराया जाने का प्रयास किया जा रहा है, जिसमें मुख्य रूप से मानवता शर्मसार हो रही है। इस लोकतंत्र पर आधारित देश भारत में कई सालो से निस्पक्ष चुनाव होते आए है और जनमानस के फ़ैसलों को सर माथे रखना हर राजनीतिक दल का कर्तव्य है। इस कर्तव्य की अवहेलना जिस तरह बंगाल में देखने को मिलती है उससे यह पता चलता है कि आज भी बंगाल में मुग़ल रूपी अत्याचारी शासन आम जन मानस की राय को मौन करने हेतु शारीरिक हिंसा पर उतारू है, जो बंगाल की शांतिप्रिय सांस्कृतिक विरासत के अनुकूल नही है।

अतः बंगाल की धरा पर जन्मे, नोबेल पुरस्कार विजेता रबिंद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित गितांजलि वर्तमान बंगाल में हो रही हिंसा एवं नरसंहार के ख़िलाफ़ एक सीख देती है, जिसका तात्पर्य मानवता को बचाना है, जिसका उद्देश्य हर व्यक्ति में ईश्वर की उपस्तिथि की अनुभूति है। बंगाल की संस्कृति भी प्रेम और शांति की सीख देती है, जिसे वर्तमान सत्ताधारी को अपने राजनीतिक मनसूबे के चलते उखाड़ फेंकना रबिंद्रनाथ टैगोर, श्री अरविंद घोष, स्वामी विवेकानंद, कादम्बिनी गांगुली जैसे अनेक महान व्यक्तित्वों का अपमान है।