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सांस्कृतिक गुलामी से मुक्त होता भारत, अयोध्या तो झांकी है मथुरा, काशी बाकी है

जितने भी भारत में बड़े आस्था और सांस्कृतिक केंद्र थे वहां पर मंदिरों को तोड़ा गया और वहां मस्जिदों का निर्माण किया गया अयोध्या में भी ऐसा ही हुआ 1558 के क़रीब मुस्लिम अक्रांता ने अयोध्या में प्रभु राम का मंदिर तोड़ वहां पर मस्जिद का निर्माण कराया।

भारत के इतिहास का अविस्मरणीय एवं सुखद क्षण का आग़ाज़ 5 अगस्त 2020 को हुआ जिसकी प्रतीक्षा देश को 500 वर्षों से थी अयोध्या में प्रभु राम के मंदिर को भव्य रूप देने हेतु भूमि पूजन हुआ, जिसमें देश भर के संत-महात्मा एवं सभी धर्म,जाति,सम्प्रदाय के लोग शामिल हुए वही इस पूजन में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत भी रहे। अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास केवल एक मंदिर निर्माण का मामला नहीं था बल्कि ये भारत के उस पुरातन तत्व की पुनः प्राण प्रतिष्ठित करना है जिसे भारत की वर्षों की ग़ुलामी ने देश के आवाम के चित से उस प्रकार विस्मरित कर दिया था जैसे भक्त हनुमान को अपनी शक्तियों का विस्मरण हो गया था। किसी शासन और सत्ता में परिवर्तन और सांस्कृतिक परिवर्तन में भारी अंतर है ग़ुलामी से स्वशासन आ जाना लेकिन उसका देशज तत्वों पर संचालन होना भी नितांत आवश्यक है।

kashi vishwanath temple

कोई भी राष्ट्र अपने पुरातन इतिहास से जुड़ कर प्रेरणा लेता है और इसी इतिहास में संस्कृति के तत्व भी निहित होते है, ये सांस्कृतिक तत्व ही राष्ट्र की पहचान भी बनते है इसलिए प्रभु राम भारत की पहचान ही तो है लेकिन इस्लामिक अक्रांताओं ने इस इतिहास को मिटाने का भरसक प्रयास किया अपितु जहां भी भारत की सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़े प्रेरणा पुंज थे उन्हें नष्ट करने का निर्मम कार्य किया। यही कारण था की जितने भी भारत में बड़े आस्था और सांस्कृतिक केंद्र थे वहां पर मंदिरों को तोड़ा गया और वहां मस्जिदों का निर्माण किया गया अयोध्या में भी ऐसा ही हुआ 1558 के क़रीब मुस्लिम अक्रांता ने अयोध्या में प्रभु राम का मंदिर तोड़ वहां पर मस्जिद का निर्माण कराया जिसने ना की एक  मंदिर तोड़ा बल्कि उस सारे विचार,उस सारे आदर्श को मारने  का प्रयास किया जिस का अनुसरण भारत वर्षों से करता आ रहा था । राम का स्मरण होते ही उनके उस काल का स्मरण हो जाता है जहाँ पर राजा और प्रजा में कोई भेद नहीं है , दोनो ही एक साथ गुरुकुल में शिक्षा लेते है निषाद और राम वही सामाजिक अश्पृश्यता का कही नाम नहीं था , राजा को धर्म का पालन करना,उसका अपना सुख जन सुख में ही निहित है।  ये ही तो हमारा दर्शन है इसी से विमुख करने हेतु और साथ ही इस्लाम के प्रति जन आकर्षण बढ़े इस हेतु अयोध्या में राम मंदिर को तोड़ा गया । इतना ही नहीं भगवान कृष्ण जन्म स्थान मथुरा में भी मस्जिद का निर्माण किया गया वही बनारस में भगवान शिव के मंदिर परिसर में मस्जिद का निर्माण ये सब क्या है? क्या ये इस्लामिक अक्रांताओं द्वारा भारत की संस्कृति को नष्ट करना नहीं था अपितु ये था क्या ?

Kashi Mathura

इसलिए जो लोग मंदिर निर्माण को लेकर अनर्गल बात करते है उन्हें या तो अपने देश की  संस्कृति पर गर्व होना चाहिए अपितु जिस संस्कृति पर उन्हें गर्व है उसी देश चले जाना चाहिए । ये सच है की सभी राष्ट्र अपनी सांस्कृतिक विरासत पाने के लिए संघर्ष करते है,  उदाहरण के तौर पर यहूदियों को देखे उनका देश इजराइल है,जहां पर उनके धर्म का जन्म हुआ उनको वहा से निकल दिया तथा बाद पूरी दुनिया में उनको प्रताड़ित किया सिर्फ भारत को छोड़कर वे  लगभग 2000 साल तक दर-बदर घूमते रहे फिर भी उन्होंने अपनी सांस्कृतिक विरासत को पाने की जिद नही छोड़ी ऐसा नहीं था की दूसरे विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजो ने उन्हें केन्या में जमीन देने और बसाने का विचार था लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया, यही होता है हजारों साल बाद अपनी मातृभूमि पाने का सुख, कई बार कुछ कट्टरपंथी नेताओं के द्वारा भी ऐसा किया जाता है जैसा कि हाल ही में तुर्की में वहां के राष्ट्रपति अनुदान ने हाजिया सोफिया नाम के म्यूजियम को जो पहले कभी चर्च हुआ करती थी उसको मस्जिद में बदल दिया,ऐसा ही मिडिल ईस्ट और अफगानिस्तान और ईरान में महात्मा बुद्ध  की प्रतिमा को उठाया गया ।

Mathura Vrindavan

पाकिस्तान में हिंदू एवं अल्पसंख्यकों को दयनीय स्थिति है, ये अब्रह्मिक रेलिजनो की समस्या है की वो अन्य किसी को बर्दाश्त ही नहीं कर सकते , जम्मू कश्मीर में मुस्लिम आबादी के बढ़ते ही कश्मीर घाटी से कैसे हिंदू आबादी को भगाया गया ये किस से छुपा  है। विनायक दामोदर सावरकर ने पुस्तक  हिंदुत्व में लिखा है कि हिंदुओं को अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए लड़ना होगा। इसलिए भारत के जन मानस ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के आंदोलन का हिस्सा लिया क्यूंकि ये हमारी संस्कृति के साथ जुड़ा था ।

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अंबेडकर जी ने अपनी पुस्तक पाकिस्तान का विभाजन में भारत में कई मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाई गई इस बात को स्वीकारा गया,महात्मा गांधी जी भी रामराज्य की कल्पना में यह बातें कहते हैं तिलक और अरविंदो ने भी अपने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में प्राचीन हिंदू गौरव को प्राप्त करने की बात कही है। आईए अब बात करते है मथुरा और काशी मंदिर के विवाद पर अयोध्या के राम मंदिर की तरह ही काशी और मथुरा के मदिरो का भी विवाद काफी पुराना है। कृष्ण जन्मभूमि मंदिर जो कि मथुरा में है उसके बिल्कुल ठीक बगल में एक मस्जिद है जिसका नाम शाही मस्जिद ईदगाह है। बहुत सारे इतिहासकारों का यह मानना है की 17वीं शताब्दी में मुगल बादशाह औरंगजेब ने इस मंदिर के बगल में जो मस्जिद है उसे बनाने के लिए उपस्थित मंदिर को तोड़कर ही यह मस्जिद बनाई थी।

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इसी प्रकार बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर में पवित्र शिवलिंग से लगती हुई मस्जिद की दीवार क्या ये नहीं बताती की शिव की नगरी में भी इस्लामिक कट्टरता ने वही कुकृत्य को ही दोहरया है । आज जब भारत की मिट्टी में जब सभी मत संप्रदय एक रूप हो गाए है तो उन बर्बर अक्रांताओं के नाम कुछ भी क्यूं रहे,जब आज बाबर का कोई नहीं रहा ना उसका राज तो वहां  उस अक्रांता का इतिहास भी क्यूं होना चाहिए । क्या मुस्लिम समाज किसी अक्रांता  को अपने से जोड़ेगा,अपना प्रतीक मानेगा मुझे ऐसा नहीं लगता । जब इस देश में अंग्रेजो के जाने के बाद पार्कों , चौराहों से अंग्रेज़ी ग़ुलामी के प्रतीकों को हटा दिया गया, दिल्ली के इर्विन अस्पताल का नाम बदल कर जयप्रकाश कर दिया गया वही मिण्टो ब्रिज को शिवाजी के नाम में रूपांतरित कर दिया तो आज भी हम मथुरा में भगवान कृष्ण जन्म स्थान एवं काशी में भगवान शिव के मंदिर के साथ लगी ग़ुलामी की निशानियों को  क्यूं नहीं मिटा सकते।

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अयोध्या में रामलाल के जन्मस्थान पर मंदिर को भव्यता आज 500 वर्षों बाद हमें मिल रही है, वही अब काशी और मथुरा भी हमारे बाट जोह रही है लेकिन इस विषय पर चर्चा करने से पहले हमे 1991 के पूजा स्थल विशेष प्रावधान के कानून को बारीकी से समझना पड़ेगा पूजा के स्थान एक्ट (रिलिजियस प्लेसिज एक्ट)1991 के सेक्शन 4 को लेकर उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है, पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम 1991 कानून की धारा 4  यह प्रावधान करती हैं कि “किसी भी धर्म के पूजा स्थल को एक आस्था से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने और किसी स्मारक के धार्मिक आधार पर रखरखाव पर रोक लगाता है। पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम 1991 के अनुसार देश में 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस संप्रदाय का था वह आज और भविष्य में भी उसी का रहेगा यह कानून 18 सितंबर 1991 को पारित किया गया था”। अब जल्द ही संसद में इस मुद्दे को लाकर इसका निराकरण करना होगा और काशी एवं मथुरा को भी ग़ुलामी की संस्कृतिक पहचानों से मुक्त करना होगा।

इस लेख में व्यक्त विचार लेख के निजी हैं। इसके लेखक हैं डॉ.प्रवेश कुमार।