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चुनावी वादा करने की स्थिति में भी नहीं है विपक्ष, खो चुका है भरोसा

लोकसभा चुनावों में विपक्ष के लिए जो सबसे बड़ी समस्या है वह है जनता का इरादा। जनता अपना इरादा छिपा नहीं रही है। आप अलग—अलग टीवी चैनलों द्वारा चुनाव पूर्व किए किए सर्वे देखें उसमें लोगों की राय स्पष्ट बता रही है कि वे क्या चाहते हैं।

चुनावी रणभेरी बज चुकी है। चुनाव आयोग ने चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है। इसी के साथ देशभर में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को होगा। कुल सात चरणों में चुनाव होगा। 2019 के लोकसभा चुनाव भी सात चरणों में ही हुए थे। हालांकि इस बार नतीजे देर से आएंगे। पिछली बार मई में नतीजे आ गए थे लेकिन इस बार 4 जून को मतों की गणना होगी और इसके बाद नतीजे आएंगे। इन लोकसभा चुनावों के साथ राज्यों के विधानसभा चुनाव भी होने हैं। इनमें उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, सिक्कम और अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं। वहीं जम्मू—कश्मीर में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के बाद ही होंगे।बहरहाल हम 2024 लोकसभा चुनावों की बात कर रहेे हैं। यूं तो चुनाव हर पांच साल में होते हैं, लेकिन 2024 का चुनाव पिछले सारे लोकसभा चुनावों से काफी अलग है। 1977 से हम बात करें जब आपातकाल के बाद चुनाव हुए थे तो जनता पार्टी की आंधी थी। इसके बाद 1980 में कांग्रेस फिर से सत्ता पाने में कामयाब रही थी।

1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में कांग्रेस के लिए सहानुभूति की लहर थी और इस लहर में कांग्रेस ने अभूतपूर्व जनमत प्राप्त किया था। 514 में से 404 सीट कांग्रेस जीती थी और राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने थे। इन तीन चुनावों के अलावा बाद में भी देश में चुनाव हुए लेकिन किसी भी चुनाव में यह देखने को नहीं मिला कि विपक्षी दल के नेता चुनाव लड़ने से भाग रहे हों, विपक्ष हमेशा मजबूती से खड़ा रहा। लेकिन इस बार यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यह पहला ऐसा चुनाव है जिसमें चुनाव के नतीजे पहले से ही नजर आ रहे हैं। इसमें किसी एक्जिट पोल की जरूरत ही नहीं रह गई है। एक तरह से विपक्ष बैकपुट पर है।

भाजपा फिर से सत्ता में आएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार फिर से प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे, यह भाजपाई तो मानते ही हैं लेकिन उनके विरोधी भी यह मानकर चल रहे हैं कि ऐसा ही होगा। बहस यहां चुनावों में जीत की नहीं है बल्कि बहस यह है कि पीएम मोदी ने जो दावा किया है कि भाजपा 370 पार और एनडीए 400 पार। इस दावे को एनडीए पूरा कर पाएगा या नहीं ? क्या विपक्ष एनडीए को इस संख्या तक पहुंच पाने से रोक पाएगा ? इन लोकसभा चुनावों में सारी बहस इसी के इर्द— गिर्द सिमटी हुई है। कांग्रेस जिसे पिछले लोकसभा चुनावों में 543 में से 53 सीटें मिली थीं क्या वो उस सीमा तक पहुंच पाएगी ? इस बारे में भी बात नहीं हो रही। क्या कांग्रेस 2024 लोकसभा गठन के बाद कांग्रेस का नेता प्रतिपक्ष में कोई होगा ? ये सवाल कोई पूछ ही नहीं रहा है। कोई भी राजनीतिक दल यह दावा नहीं कर रहा है कि हम या जो भी हमारे साथी दल हैं उनकी सरकार बनने की संभावना है। सारी बहस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दावे को लेकर ही हो रही है।

चुनाव में तीन चीजें चलती हैं पहला दावा, दूसरा वादा और तीसरा इरादा। इस बार 404 पार का दावा तो पीएम मोदी अपनी सरकार की दस साल की उपलब्धियां गिनाने के साथ दिन रात कर ही रहे हैं।सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इन चुनावों में विपक्ष कोई दावा करने की स्थिति में तो है ही नहीं और रही उसके वायदे की बात तो उस पर कोई भरोसा ही करना नहीं चाहता। विपक्ष के वायदों पर कोई विश्वास करना तो दूर उसको सुनना भी नहीं चाह रहा।

विपक्षी दलों के पास एक ही चीज होती है वह होता है वायदा। जिसके आधार पर वह जनता के बीच जाते हैं और वोट मांगते हैं। वायदे के जरिए ही वह बताते हैं कि हम यदि सत्ता में आएंगे तो वर्तमान सत्तासीन सरकार से अलग जनहित के लिए हमारी यह नीतियां होंगी। हम जनता के लिए ये काम करेंगे। जनता को इस तरीके से फायदा पहुंचाएंगे आदि। लेकिन यहां स्थिति ही अलग है लोग आखिर क्यों विपक्ष के वायदों पर विश्वास नहीं कर रहे हैं। इसके लिए थोड़ा पीछे जाने की जरूरत है। देश में 1952 से अभी तक जितने भी चुनाव हुए हैं फिर चाहे वह लोकसभा चुनाव हों या फिर विधानसभा के। सभी चुनावों को आप देखें तो विपक्ष में जितनी भी पार्टियां हैं लगभग सभी सत्ता में रह चुकी हैं, पूर्ण बहुमत से कांग्रेस और बाकी सभी पार्टियां गठबंधन सरकार में शामिल होकर। इसके अलावा बाकी पार्टियां भी विभिन्न राज्यों में कभी न कभी सत्ता में रह ही चुकी हैं। ऐसे में किसी पास यह कहने के लिए नहीं है कि हम कभी सत्ता में आए ही नहीं हैं, हम अवसर दें। यदि हम सत्ता में आएंगे तो ऐसा करेंगे, वैसा करेंगे।

ऐसे में विपक्ष के पास ऐसा कुछ नहीं बचता जिस पर विश्वास कर जनता उसे वोट करे। विपक्ष के पास जो सबसे बड़ी कमी है वह है विश्वसनीयता की। इसलिए विपक्ष के वायदे पर कोई विश्वास करने के लिए तैयार नहीं है। यहां तो वायदा भी सत्तासीन दल कर रहा है। अभी हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए। जहां पर भी कांग्रेस पार्टी की सरकार थी वहां पर कांग्रेस ने दावे और वायदे दोनों किए, लेकिन लोगों ने उन पर भरोसा नहीं किया। छत्तीसगढ़, राजस्थान की बात करें तो जहां भाजपा विपक्ष में थी। इन दोनों राज्यों में भाजपा ने जो वायदे किए उस पर लोगों ने भरोसा किया और कांग्रेस से सत्ता छीन कर भाजपा को सौंप दी। सबसे बड़ा उदाहरण छत्तीसगढ़ में महतारी वंदन योजना है, जिसमें विवाहित महिलाओं को हर वर्ष 12 हजार रुपए वित्तीय सहायता देने का वादा भाजपा ने किया। लोगों ने भरोसा किया और बड़ी संख्या में खासकर महिलाओं ने भाजपा को वोट दिया। मध्यप्रदेश में लाडली बहना योजना पर लोगों ने भरोसा किया

लोकसभा चुनावों में विपक्ष के लिए जो सबसे बड़ी समस्या है वह है जनता का इरादा। जनता अपना इरादा छिपा नहीं रही है। आप अलग—अलग टीवी चैनलों द्वारा चुनाव पूर्व किए किए सर्वे देखें उसमें लोगों की राय स्पष्ट बता रही है कि वे क्या चाहते हैं। सोशल मीडिया पर भी चुनावों पर लोग खूब लिख रहे हैं। 4 जून 2024 को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनावी नतीजे आएंगे। वर्तमान स्थितियों को देखें तो नतीजे स्पष्ट हैं कि भाजपा फिर से केंद्र में सरकार बनाएगी। बस देखना यह है कि इस बार 400 पार के अभूतपूर्व जनमत तक एनडीए पहुंच पाएगा या नहीं।