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संविधान बचाने की दुहाई देने वाले ही संविधान की धज्जियां उड़ा रहे हैं

लोकसभा चुनाव के दौरान संविधान की प्रति लहराते हुए जो संविधान बचाने की लड़ाई लड़ने का दम भर रहे थे वे खुद ही संविधान को तार-तार करने पर तुले हुए हैं।

केरल सरकार एक महिला आईएएस अधिकारी के. वासुकी को बाहरी सहयोग से संबंधित मामलों की देखरेख के लिए ”विदेश सचिव” नियुक्त करती है। बांग्लादेश में आरक्षण के मामले पर भड़की हिंसा को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बयान देती हैं कि वह बांग्लादेश के लोगों को शरण देने के लिए राज्य के दरवाजे खुले रखेंगी। यहीं नहीं वह कहती हैं कि यदि वह हमारे दरवाजे पर आए तो वे उन्हें शरण जरूर देंगी। देश में एक संविधान हैं जो सभी पर लागू होता है, किसी भी राज्य के लिए न तो अलग संविधान है न ही अलग विधान है।

लोकसभा चुनावों से लगातार संविधान बचाने का हल्ला करे विपक्षी दलों के नेता खुद ही संविधान की धज्जियां उड़ाने में लगे हैं, जो वह कर रहे हैं उन्हें न तो इसका अधिकार है और न ही कोई ऐसा नियम और कानून है जो उन्हें ऐसी बयानबाजी करने और मनमानी नियुक्ति करने का अधिकार देता है। किसको शरण देनी है और किसको नहीं देनी है यह पूरी तरह से केंद्र सरकार को ही निर्णय करने का अधिकार है। आव्रजन और नागरिकता विशेष रूप से केंद्र के अधिकार क्षेत्र में है। राज्यों के पास ऐसे मामलों में कोई भी अधिकार नहीं है। बावजूद इसके ममता बनर्जी कोलकाता की रैली में बोलती हैं कि वह पड़ोसी देश से संकट में फंसे लोगों के लिए अपने राज्य के दरवाजे खुले रखेंगी और उन्हें आश्रय देंगी।

पिनराई विजयन

जब उन्हें यह अधिकार नहीं तो वह किस आधार पर इस तरह की बयानबाजी कर रही हैं? उनकी मंशा यहां पर सिर्फ मुस्लिम तुष्टीकरण की और अपने वोट बैंक को बचाने की है। जो संवैधानिक है ही नहीं वह करने की बात ममता बनर्जी बोल रही हैं जो उनकी मानसिकता दर्शाता है कि वह सिर्फ संविधान बचाने की बात बोलकर वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहती हैं भले ही इसके लिए राज्य की आम जनता को कोई भी कीमत चुकानी पड़े।

केरल में वामपंथी सरकार है। इसके मुखिया हैं पिनराई विजयन। केरल सरकार ने के. वासुकी नाम की महिला अधिकारी को विदेश सचिव नियुक्त करने की घोषणा की है। केरल क्या देश से अलग कोई अलग देश है जिसके लिए इस तरह की नियुक्ति की घोषणा की गई है। किसी भी राज्य सरकार को यह अधिकार प्राप्त नहीं है।

संविधान की सातवीं अनुसूची में संघ की सूची के बारे में बताया गया है। इस अनुसूची में राष्ट्रीय महत्व के विषय शामिल किए गए हैं। इस अनुसूची में शामिल विषयों पर केवल केंद्र सरकार को ही कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन केरल सरकार और पश्चिम बंगाल की सरकारें जो कर रही हैं वह कतई संवैधानिक नहीं है। विदेश मामले भी इसी अनुसूची के अंतर्गत आते हैं।

विदेश सचिव देश का एक बड़ा राजनयिक होता है और विदेश मंत्रालय का प्रशासनिक प्रमुख भी वही होता है। इसके अलावा वह विदेश मंत्री के प्रमुख सलाहकार की भूमिका निभाता है। अमूमन यह पद भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी पास ही होता है, हालांकि सरकार आईएएस अधिकारी को भी यह जिम्मेदारी दे सकती है।

ममता बनर्जी इससे पहले भी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर विवादित बयान दे चुकी हैं। 2019 में ममता बनर्जी ने बंगाल के झाड़ग्राम में कहा था कि वे नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री नहीं मानतीं, वे किसी भी मामले में देश के अगले प्रधानमंत्री से बात करेंगी। दरअसल तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोदी चक्रवात ‘फानी’ से प्रभावित राज्यों में समीक्षा बैठक करना चाहते थे। उन्होंने ओडिशा के तत्कालीन सीएम नवीन पटनायक के साथ बैठक की थी। तब ममता बनर्जी ने उनसे मिलने से मना कर दिया था, जबकि प्रोटोकॉल के तहत किसी भी राज्य का मुख्यमंत्री ऐसा नहीं कर सकती।

सीएए और एनआरसी को लेकर भी ममता बनर्जी बोल चुकी हैं कि वह इसे पश्चिम बंगाल में लागू नहीं होने देंगी, जबकि संविधान के अनुसार यह अधिकार केवल केंद्र सरकार के अधीन हैं। बावजूद इसके ममता बनर्जी वोट की राजनीति के लिए ऐसे बयान लगातार देती रहती हैं।

दरअसल देश के कानून और संविधान को दरकिनार कर इस तरह की राजनीति करना इस समय तमाम विपक्षी दलों का शगल बन गया है। ये बात इस तरह की बयान देने वाली नेता भी जानते हैं कि जो वह बोल रहे हैं वह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर की बात है लेकिन वोट बैंक की राजनीति करने के लिए वह संविधान की धज्जियां उड़ाने से भी नहीं चूकते हैं।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।