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Shamshera Review: क्या केजीएफ़ से भी बेहतरीन है शमशेरा, या मनोरंजन करने में रणबीर हुए फेल

Shamshera Review: क्या केजीएफ़ से भी बेहतरीन है शमशेरा, या मनोरंजन करने में रणबीर हुए फेल फिल्म पूर्णतः मनोरंजन पर केंद्रित है जो दर्शकों को बांध कर रखती है दूसरा फिल्म का टेक्निकल काम इतना ऊंचे स्तर का है कि वो फिल्म को फीका होने से बचा लेता है और तीसरा फिल्म में मौजूद किरदारों को ऐसा लिखा और दिखाया गया है कि वो आपके सामने जीवंत लगते हैं।

नई दिल्ली। सिनेमाघर में शमशेरा फिल्म को रिलीज़ कर दिया गया है। कई दिनों से लगातार इस फिल्म के प्रमोशन चल रहे हैं और पूरी स्टार कास्ट और डायरेक्टर जहां से बन पा रहा है, फिल्म को प्रमोट कर रहे हैं। अब जब फिल्म रिलीज़ हो गई है तब ज्यादातर दर्शकों ने फिल्म को पसंद किया है कुछ ने नापसंद भी किया है। अगर व्यक्तिगत बात करें तो कुछ जगह पर फिल्म थोड़ी सी फीकी लगती जरूर है पर कई जगह पर इतनी आकर्षक लगती है कि इस हफ्ते के दौरान फिल्म देखना आपकी पहली पसंद बन जाती है। चलिए आगे हम जानते हैं, आखिर कैसी है रणबीर कपूर की फिल्म- शमशेरा और आपको इसे देखने का जोखिम उठाना चाहिए या नही।

फिल्म की कहानी

अगर फिल्म की कहानी के बारे में बात करें तो कहानी में नया कुछ नहीं है वही है जो आपने पहले कई फिल्मों में देखा है। कैसे अंग्रेज़ भारतीयों पर जुल्म करते हैं और फिर जुल्म सह रहे लोगों में से एक सरदार निकलता है जो अपने जाति के लोगों और अपने लोगों की रक्षा करता है। यहां जुल्म करने के लिए अंग्रेज़ों का साथ खुद एक भारतीय दे रहा है जिसे अपने फायदे के आगे कुछ दिखता नहीं है और वो अत्यंत क्रुद्ध और निर्दयी व्यक्तित्व का आदमी है। कहानी में रणबीर कपूर के दो रोल हैं जिसमें वो लोगों के सरदार बनकर लोगों की रक्षा करते हैं और विरोधियों को लूटते भी हैं। फिल्म में एक किले को दिखाया गया है और लगभग पूरी फिल्म उसी के इर्द-गिर्द घूमकर खत्म हो जाती है लेकिन आश्चर्यजनक यह है कि ये सारे दृश्य आपको बांधे रखते हैं। कहानी में लड़ाई और एक्शन देखने को मिलता है। इसके अलावा कई गीत सुनने को मिलते हैं। रणबीर कपूर फिल्म में अपनी बाप की मौत का बदला भी लेना चाहते हैं।

कैसी है फिल्म देखें या नही (फिल्म रिव्यू)

यह तो तय है कि यह एक मास एंटरटेनर फिल्म है। इसके वीएफएक्स और टेक्निकल डिपार्टमेंट बेहतरीन है पर कहानी वही पुराने कांसेप्ट पर आधारित है। जिस तरह से रणबीर कपूर ने किरदार को निभाया है और डायरेक्टर ने उसे शूट किया है वो दर्शकों का मनोरंजन तो करता ही है और उसे देखकर दर्शक भी तालियां पीटने पर मजबूर हो जाते हैं। कुल मिलाकर डायरेक्टर करण मल्होत्रा के डायरेक्शन की भी तारीफ बनती है, लेकिन उनकी कहानी नयी नहीं है। अगर गीतों की बात करें तो कुछ को छोड़ कर अन्य गीत ज्यादा आकर्षक नही लगते हैं पर वहीं बैकग्राउंड म्यूजिक शानदार है। संजय दत्त ने एक बार फिर से समा लूट लिया है और जिस तरह से उन्होंने कॉमेडी किया है वो देखकर आपको पक्का हंसी आ जाएगी। रणबीर कपूर की एक्टिंग भी आपके होश उड़ाने के लिए काफी है। इन सबके अलावा एक और किरदार दिखने वाला है वो है सौरभ शुक्ला का जो समय-समय पर आपको फिल्म का मज़ा देते रहते हैं। फिल्म का निष्कर्ष यह है कि – फिल्म पूर्णतः मनोरंजन पर केंद्रित है जो दर्शकों को बांध कर रखती है दूसरा फिल्म का टेक्निकल काम इतना ऊंचे स्तर का है कि वो फिल्म को फीका होने से बचा लेता है और तीसरा फिल्म में मौजूद किरदारों को ऐसा लिखा और दिखाया गया है कि वो आपके सामने जीवंत लगते हैं। फिल्म के कुछ संवाद आपको याद रह जाते हैं और किरदारों का अभिनय भी आप घर साथ लेकर आते हैं मुख्यतः संजय दत्त का किरदार शुद्ध सिंह जिन्होंने अंत में सबको चौंका दिया है। हालांकि इन सबके बावजूद कहानी में नया प्रयोग किया जा सकता था और फिल्म के गीत भी, कुछ और अच्छे हो सकते थे।