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Sahir Ludhianvi B’Day: जानिए, अपनी कलम का जादू चलाने वाले साहिर आखिर कैसे छूटे डाकू मान सिंह के चुंगल से?

Sahir Ludhianvi B’Day: लुधियाना के ‘खालसा हाई स्कूल’ से पढ़ाई करने वाले साहिर कॉलेज के दिनों में ही वे अपने शेर और शायरियों के लिए मशहूर हो गए थे। कॉलेज के दिनों में ही मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम से प्यार हो गया था। लेकिन मुस्लिम होने के चलते उनकी शादी नहीं हो सकी।

नई दिल्ली। ‘साहिर’ एक उर्दू शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है ‘जादू करने वाला’। सच ही है साहिर ने अपनी कलम का जादू ऐसा चलाया कि लोगों पर उनके गानों का प्रभाव आज भी बरकरार है। कलम के इस जादूगर का जन्म 8 मार्च 1921 पंजाब के एक जागीरदार घराने में हुआ था। उनका असली नाम ‘अब्दुल हई’ था, लेकिन लुधियाना से ताल्लुक रखने और लिखने के कारण उन्होंने अपना नाम ‘साहिर लुधियानवी’ रख लिया। लुधियाना के ‘खालसा हाई स्कूल’ से पढ़ाई करने वाले साहिर कॉलेज के दिनों में ही वे अपने शेर और शायरियों के लिए मशहूर हो गए थे। कॉलेज के दिनों में ही मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम से प्यार हो गया था, लेकिन मुस्लिम होने के चलते उनकी शादी नहीं हो सकी। दोनों के इश्क की आज भी चर्चा होती है। प्रेमी-प्रेमिकाएं साहिर के शेर और अमृता की कविताओं के जरिए अपने प्रेम का इजहार करते हैं।  कहा जाता है, उनके धर्म, उनकी गरीबी और अमृता के साथ रिश्ते के चलते अमृता के पिता ने उन्हें स्कूल से निकलवा दिया था। इसके बाद वो छोटी-मोटी नौकरियां करने लगे थे। 1943 में हुए विभाजन के बाद वो ‘लाहौर’ आ गये, जहां उनकी पहली कविता संग्रह ‘तल्खियां’ प्रकाशित हुई। इसके बाद उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी।

साहिर की साम्यवादी विचाराधारा के चलते पाकिस्तान सरकार ने उनके खिलाफ वारंट जारी कर दिया, जिसके बाद 1949 में दिल्ली आकर लिखने लगे। इसके बाद इसी साल मुंबई जाकर फिल्म ‘आजादी की राह के लिए’ पहली बार गीत लिखे। हालांकि उन्हें इस फिल्म में असफलता का सामना करना पड़ा। इसके बाद साल 1951 में आई फिल्म ‘नौजवान’ के गीत ‘ठंडी हवाएं लहरा के आए’ से उन्हें काफी लोकप्रियता हासिल हुई। गुरुदत्त की फिल्म ‘प्यासा’ साहिर के करियर की एक महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुई। बताया जाता है कि मुंबई के ‘मिनर्वा टॉकीज’ में जब ये फिल्म प्रदर्शित की गई और जैसे ही ‘जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं’ गाना बजाया गया। हॉल में बैठे सभी दर्शक अपनी सीट से उठकर खड़े हो गए और गाना खत्म होने तक ताली बजाते रहे। कहा जाता है कि साहिर की लोकप्रियता उस जमाने में भी किसी स्टार से कम नहीं थी, वो अपने गानों के लिए लता मंगेशकर को मिलने वाले चार्ज से एक रुपया अधिक लेते थे। साहिर को फिल्म फेयर अवार्ड तो मिले ही उन्हें ‘पद्मश्री’ से भी सम्मानित किया गया था।

उनके बारे में एक दिलचस्प किस्सा भी मशहूर है। कहते हैं कि एक बार साहिर कार से मशहूर उपन्यासकार कृश्न चंदर के साथ लुधियाना जा रहे थे। मध्यप्रदेश में शिवपुरी के पास उस वक्त के नामी डाकू ‘मान सिंह’ ने लूटने के इरादे से उनकी कार रोक ली और उसमें सवार सभी लोगों को बंदी बना लिया। इसके बाद जब साहिर ने उन्हें बताया कि उन्होंने डाकुओं की जिंदगी पर बनी फ़िल्म ‘मुझे जीने दो’ के गाने लिखे थे, तो डाकुओं ने उन्हें सम्मान से जाने दिया। लगभग तीन दशकों तक हिंदी फिल्मों को अपने रुमानी गीतों से सजाने वाले साहिर लुधियानवी 59 वर्ष की उम्र में 25 अक्टूबर 1980 को इस दुनिया को अलविदा कह गये।