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The Kashmir Files Review: कश्मीरी पंडितों पर बनी फिल्म देख आपके भी निकल आएंगे आंसू, जानिए कितनी मिली रेटिंग

The Kashmir Files Review: विवेक अग्निहोत्री ने सालों रिसर्च कर इस फिल्म की कहानी पर काम किया है जो स्क्रीन पर साफ नजर आता है। कश्मीरी पंडितों के विस्थापन और नरसंहार की इस कहानी में निर्देशक ने तमाम बिंदु उठाए हैं। जैसे कि कई लोग हैं जो मानते हैं कि कोई पलायन नहीं हुआ था, कोई नरसंहार नहीं हुआ था।

नई दिल्ली। विवेक रंजन अग्निहोत्री एक राष्ट्रवादी भारतीय फिल्म निर्देशक है। जिन्हें सर्वश्रेष्ठ कहानियों के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से नवाजा जा चुका हैं। उन्होंने हिंदी फ़िल्म इंडसट्री में एंट्री बतौर निर्देशक चॉकलेट नामक फ़िल्म से की थी, जिसके बाद उन्होंने कई और फिल्में बनाई, जिनमें द ताशकंद फाइल्स और आने वाली फिल्म द कश्मीर फ़ाइल्स जैसी फिल्में शामिल हैं। सच्ची घटनाओं पर आधारित उनकी फिल्म द कश्मीर फ़ाइल्स 90 के दशक में कश्मीरी पंडितो के साथ हुए अन्याय पर बेस्ड हैं। फिल्म की कहानी एक सच्ची त्रासदी पर आधारित, भावनात्मक रूप से आपको हिला देने वाली यह फिल्म 1990 में कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा को दिखाती है, जिन्हें इस्लामिक आतंकियों द्वारा अपने घरों से भागने के लिए मजबूर किया गया था। फिल्म बताती है कि वह सिर्फ एक पलायन नहीं था, बल्कि नरसंहार था।

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2 घंटे 40 मिनट की इस फिल्म में निर्देशक विवेक अग्निहोत्री भारत के एक प्रमुख शैक्षणिक संस्थान और मीडिया पर निशाना साधा हैं। वह अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से लेकर कश्मीर के प्राचीन इतिहास और पौराणिक कथाओं पर बात करते हैं। लगभग 30 सालों के बाद आज भी कश्मीरी पंडित न्याय की उम्मीद करते हैं। ये फिल्म उनकी पीड़ा, उनकी आवाज को सामने रखती है। यह दिखाती है कि किस तरह राजनीतिक कारणों से कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को सालों साल दबा दिया गया।

कहानी

फिल्म 1990 से शुरु होती है और मौजूदा साल तक पहुंचती है। दिल्ली में पढ़ रहा कृष्णा अपने दादाजी पुष्कर नाथ पंडित की आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए श्रीनगर आया है। कश्मीर के अतीत से बेखबर वह अपने परिवार से जुड़ी सच्चाई की खोज में लग जाता है। श्रीनगर में उसकी मुलाकात दादाजी के चार दोस्तों से होती है। उनके बीच धीरे धीरे कश्मीरी पंडितों के पलायन और नरसंहार की चर्चा शुरु होती है और कहानी पहुंचती है साल 1990 में। फिल्म में आगे दिखाया जाता है कि किस तरह कश्मीर की गलियों में आतंकी बंदूकें लेकर चारों ओर घूम रहे हैं और कश्मीरी पंडितों को ढूंढ ढूंढ कर मार रहे हैं, उनके घर जला रहे हैं। ना महिलाओं को बख्शा जा रहा है, ना बच्चों को। गली गली में ‘रालिव, चालिव या गालिव’ के नारे गूंज रहे हैं, जिसका अर्थ है ” या तो धर्म बदलो, या भागो या मर जाओ..”।

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निर्देशन

विवेक अग्निहोत्री ने सालों रिसर्च कर इस फिल्म की कहानी पर काम किया है जो स्क्रीन पर साफ नजर आता है। कश्मीरी पंडितों के विस्थापन और नरसंहार की इस कहानी में निर्देशक ने तमाम बिंदु उठाए हैं। जैसे कि कई लोग हैं जो मानते हैं कि कोई पलायन नहीं हुआ था, कोई नरसंहार नहीं हुआ था। कुछ मानते हैं कि कश्मीरी हिंदुओं को उनके घरों से बाहर नहीं निकाला गया था, बल्कि वे अपनी मर्जी से चले गए थे। फिल्म में इसका जवाब दिया गया है। निर्देशक ने खासतौर पर तीन किरदारों के जरिए कश्मीरी पंडितों की पीड़ा दिखाने की कोशिश की है। हालांकि भावनात्मक पक्ष से ऊपर उठें तो फिल्म में थोड़ी कमियां भी दिखती हैं। कहानी में कई बार चीजों को दोहराया भी गया है, जो आपको थोड़ा अटपटा लग सकता है। फिल्म में इतने सारे मुद्दे एक के बाद एक सामने आते हैं कि आपको एक या दो किरदारों को छोड़, किसी से जुड़ने का मौका ही नहीं मिलता है।

अभिनय

एक्टिंग की बात करें तो फिल्म की स्टारकास्ट बेहद दमदार है। पुष्कर नाथ पंडित के किरदार में अनुपम खेर ने जबरजस्त काम किया है। उनका रोल आपको अंदर से झंझोर देगा और आपकी आंखे नम कर देगा। कश्मीरी पंडितों के दर्द, निराशा और उम्मीद को उनके हर हाव भाव में देखा जा सकता है। वहीं, मिथुन चक्रवर्ती ने शानदार काम किया है। इनके अलावा फिल्म में दर्शन कुमार, पल्लवी जोशी, प्रकाश बेलावड़ी, पुनीत इस्सर, अतुल श्रीवास्तव, चिन्मय मांडलेकर, भाषा सुंबली भी अहम किरदार में नजर आए हैं।


देंखे या ना देंखे

यह फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ तथ्यों पर आधारित है। राजनीतिक नजरों से हटकर देंखे.. तो इस फिल्म में कश्मीरी पंडितों पर हुए असहनीय अत्याचारों को देखना, मानवता और न्याय व्यवस्था को घुटने टेकते देखना दिल तोड़ देने वाला है। फिल्मीबीट की ओर से फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ को साढ़े तीन स्टार मिले है।

फिल्‍म रिव्‍यू: द कश्मीर फाइल्स

प्रमुख कलाकार: अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती, दर्शन कुमार, पल्लवी जोशी, प्रकाश बेलावड़ी और पुनीत इस्सर

निर्देशक: विवेक अग्निहोत्री

स्‍टार: साढ़े तीन