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Sheikh Hasina: बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना 15 दिनों में दूसरी बार भारत आईं, द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने पर होगी चर्चा

Sheikh Hasina: पीएम हसीना जुलाई में चीन की यात्रा करने की योजना बना रही हैं। इससे ठीक पहले उनकी भारत यात्रा दोनों प्रमुख शक्तियों के साथ बांग्लादेश के संबंधों को संतुलित करने के प्रयास को दर्शाती है। भारत और चीन दोनों के साथ जुड़कर, शेख हसीना का लक्ष्य बांग्लादेश की विदेश नीति में रणनीतिक संतुलन बनाए रखना है।

नई दिल्ली। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना नई दिल्ली पहुंच गई हैं। यह महज 15 दिनों के अंतराल में उनकी दूसरी भारत यात्रा है। राजधानी में भारतीय अधिकारियों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। इससे पहले, उन्होंने 9 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लिया था, जिसके बाद वे बांग्लादेश लौट गईं। उनके भारत लौटने पर खास तौर पर चीन का ध्यान आकर्षित हुआ है। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, शेख हसीना दो दिवसीय भारत यात्रा पर हैं। इस दौरान उनका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मिलने का कार्यक्रम है। वे उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से भी विशेष मुलाकात करेंगी। चीन इस यात्रा पर करीबी नजर रख रहा है, क्योंकि इससे क्षेत्रीय भू-राजनीति पर खासा असर पड़ सकता है, खासकर भारत-बांग्लादेश के बढ़ते रिश्ते पर, जिससे चीन और पाकिस्तान दोनों ही चिंतित हो सकते हैं।

चर्चा के लिए क्या होंगे मुख्य मुद्दे

पीएम मोदी और शेख हसीना के बीच द्विपक्षीय वार्ता में कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा होने की उम्मीद है। चर्चा में सीमा पार संपर्क, तीस्ता जल-बंटवारा समझौता, म्यांमार में सुरक्षा स्थिति, साथ ही आर्थिक और व्यापार मुद्दे शामिल होंगे।


भारत और चीन के साथ संबंधों को संतुलित करना चाहती हैं हसीना

पीएम हसीना जुलाई में चीन की यात्रा करने की योजना बना रही हैं। इससे ठीक पहले उनकी भारत यात्रा दोनों प्रमुख शक्तियों के साथ बांग्लादेश के संबंधों को संतुलित करने के प्रयास को दर्शाती है। भारत और चीन दोनों के साथ जुड़कर, शेख हसीना का लक्ष्य बांग्लादेश की विदेश नीति में रणनीतिक संतुलन बनाए रखना है। इस कूटनीतिक संतुलन पर बीजिंग की कड़ी नज़र है, खासकर आगामी भारत-बांग्लादेश द्विपक्षीय वार्ता के मद्देनजर। भारत और बांग्लादेश के बीच संबंधों को गहरा करना एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है जो क्षेत्रीय दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित कर सकता है।