
नई दिल्ली। बिहार में पिछले दिनों हुए हाईवोल्टेज सियासी ड्रामे के बाद अब नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो चुके हैं। दरअसल, मुख्यमंत्री तो वे पहले से ही थे, लेकिन उन्होंने एनडीए के साथ अपने सियासी संबंधों को स्वाहा करने के बाद यूपीए के साथ नए सिरे सियासी संबंधों को स्थापित कर बिहार में सरकार बनाई है। हालांकि, इससे पहले भी राजद के साथ उन्होंने 2015 में सरकार बनाई थी, लेकिन फिर साल 2017 में उन्होंने बीजेपी के साथ जाने का ऐलान कर बिहार की राजनीति में तूफान ला दिया था, जिसके बाद राजद के तमाम नेता उन्हें धोखेबाज बता रहे थे और अब जब उन्होंने फिर से राजद के पाले में जाकर सरकार बनाई है, तो बीजेपी नेता उन्हें दगाबाज बता रहे हैं। कह रहे हैं कि नीतीश कुमार ने बिहार की जनता के साथ धोखा किया है। उनको ठगा है। उनके जनादेश का अपमान किया है। लेकिन, नीतीश कुमार पर बीजेपी द्वारा किए जा रहे हमलों का कोई असर नहीं पड़ रहा है, वो तो बस अब बिहार में सरकार बनाने की दिशा में आगे की रूपरेखा को जीवंत करने की दिशा में जुट चुके हैं, लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि नीतीश कुमार की गठबंधन वाली सरकार कितनी लंबी पारी खेल पाएगी, क्योंकि सरकार के संपूर्ण गठन से पूर्व जिस तरह की स्थिति महागठबंधन में देखने को मिल रही है, उसे देखकर ऐसा लगता नहीं है कि यह सरकार सियासी पिच पर लंबी पारी खेल पाने में सफल रहेगी।
बता दें कि महागठबंधन सराकर में कांग्रेस, राजद, हम, जदयू और वामदल शामिल हैं। सभी दलों की अपनी-अपनी आकांक्षाएं हैं। अब सवाल यह है कि आखिर इकलौते सुशासन बाबू कितनों की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में सफल रहेंगे। सवाल यह भी है कि आखिर अगर किसी की महत्वाकांक्षा अधूरी रह जाती हैं, तो बिहार की राजनीति में तूफान भी देखने को मिल सकता है। बीते दिनों हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतराम मांझी ने नीतीश कुमार से अपने विधायकों के लिए दो मंत्री पद की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि हमने स्वेच्छा से नीतीश कुमार का समर्थन किया था। इससे पहले महागठबंधन में हमारे एक विधायक को मंत्री पद दिया गया था, लेकिन इस बार हमारे विधायकों की संख्या ज्यादा है, तो हमारी आकांक्षा है कि कम से मेरे दो विधायकों को मंत्री पद दिया जाए।
इधर, कुछ ऐसी ही मांग कांग्रेस ने भी कर दी है। कांग्रेस ने महागठबंधन से मंत्रिमंडल में सम्मानजनक हिस्सेदारी की मांग की है। हालांकि, अभी तक महागठबंधन में कैबिनेट के स्वरूप को लेकर किसी भी प्रकार की चर्चा नहीं हो पाई है। किसे कौन-सा मंत्रालय आवंटित किया जाएगा। इस बारे में अभी तक कोई विचार-विमर्श नहीं हो पाया है। लेकिन, मौजूदा वक्त में जिस तरह सभी दलों की तरफ से नीतीश कुमार के समक्ष अपनी मांगों का पिटारा खोला जा रहा है, उस स्थिति में अब सुशासन बाबू कैसे तालमेल बैठा पाते हैं। यह देखने वाली बात होगी, लेकिन यह भी साफ है कि अगर नीतीश कुमार महागठबंधन के घटक दलों के बीच तालमेल बैठा पाने में नाकाम रहे, तो उन्हें निकट भविष्य में बीजेपी के कहर का शिकार होने से कोई नहीं रोक सकता है।
ध्यान रहे कि जिस तरह नीतीश कुमार ने बीजेपी से अपनी राहें जुदा कर ली हैं, उसे लेकर अब वे अपने आलोचकों के निशाने पर आ चुके हैं। बीते दिनों बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्य़क्ष संजय जायसवाल ने कहा था कि नीतीश कुमार ने बिहार की जनता के जानादेश का अपमान किया है। लेकिन, नीतीश कुमार ने अपने इस फैसले के संदर्भ में कहा कि जदयू विधायकों की सहमति के उपरांत यह कदम उठाया गया था, लेकिन वर्तमान में जिस तरह महागठबंधन में दलों के बीच दरार देखने को मिल रही है, उसे ध्यान में रखते हुए आगामी दिनों में बिहार की राजनीति में क्या कुछ परिस्थितियां देखने को मिलती हैं। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी। तब तक के लिए आप देश-दुनिया की तमाम बड़ी खबरों से रूबरू होने के लिए पढ़ते रहिए। न्यूज रूम पोस्ट.कॉम