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‘Beating The Retreat’ समारोह से पहले सताई शशि थरूर को ‘Abide With Me’ धुन की याद, ट्वीट कर बयां किया दर्द

बता दें कि ‘Abide With Me’ नामक यह धुन प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान खूब प्रसिद्ध हुई थी। भारत में इस धुन को लोकप्रिय बनाने का श्रेय महात्मा गांधी को जाता है। गांधी जी ने अपने कार्यक्रमों में इसे कई जगह बजवाया था। यही वजह रही कि जब भारत में भी ‘बीटिंग द रिट्रीट’ समारोह शुरू किया गया।

नई दिल्ली। दिल्ली का ऐतिहासिक विजय चौक प्रत्येक 29 जनवरी को एक खास समारोह का गवाह बनता है। उस समारोह का नाम ‘बीटिंग द रिट्रीट’ (Beating The Retreat) है। इस दिन राष्ट्रपति तीनों सेनाओं को अपनी बैरकों में वापस लौटने का आदेश देते हैं। बता दें कि इस समारोह में महात्मा गांधी का एक प्रिय धुन ‘Abide With Me’ बजा करता था, लेकिन इस बार यह धुन नदारद रहेगी। इसी धुन को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने ट्वीट किया है। उन्होंने लिखा कि- ‘बीटिंग द रिट्रीट’ में क्या हम उस धुन को आज मिस करेंगे, ये थोड़ा मुश्किल है।’

गांधी जी को खूब पसंद थी यह धुन

बता दें कि ‘Abide With Me’ नामक यह धुन प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान खूब प्रसिद्ध हुई थी। भारत में इस धुन को लोकप्रिय बनाने का श्रेय महात्मा गांधी को जाता है। गांधी जी ने अपने कार्यक्रमों में इसे कई जगह बजवाया था। यही वजह रही कि जब भारत में भी ‘बीटिंग द रिट्रीट’ समारोह शुरू किया गया, तो इस धुन ने भी अपनी जगह बनाई, लेकिन 1952 से लगातार बजती आ रही यह धुन अब समारोह का हिस्सा नहीं होगी।

mahatma gandhi

शशि थरूर का ट्विट

आज शनिवार को ‘बीटिंग द रिट्रीट’ समारोह शुरू होने के पहले वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर ने ट्विट किया। उनके ट्विट से लग रहा था कि वे इस धुन के हटने से दुखी हैं। गौरतलब है कि इस धुन को 1847 में स्कॉटिश एंग्लिकन कवि और भजन विज्ञानी हेनरी फ्रांसिस लिटे द्वारा लिखा गया था। हालांकि, उनके ट्विट के बाद लोगों ने ट्विटर पर ‘Abide With Me’ के हिंदी संस्करण ‘तुम मेरे पास रहो’ के नाम से शेयर करना शुरू कर दिया, जिससे खुश होकर उन्होंने फिर से ट्विट किया। उन्होंने लिखा कि मैं यह देखकर खुश हूं कि ‘Abide With Me’ का संदेश व्यापक भारतीय श्रोताओं तक पहुंच सकता है।


‘बीटिंग द रिट्रीट’ समारोह का इतिहास

ऐसा माना जाता है कि 17वीं सदी में इंग्लैंड में इसकी शुरुआत हुई थी। उस समय के इंगलैंड के शासक जेम्स II ने शाम को जंग खत्म होने के बाद अपने सैनिकों को ड्रम बजाने, झंडा झुकाने और परेड करने का आदेश दिया था। उस वक्त इस समारोह को वॉच सेटिंग कहा जाता था। बाद में यह परंपरा अन्य देशों में भी फैली। भारत में पहली बार इसकी शुरूआत 1952 में हुई थी। तब इसके दो कार्यक्रम हुए थे। पहला कार्यक्रम दिल्ली में रीगल मैदान के सामने और दूसरा लालकिले में हुआ था।