नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन और केरल के सीएम पिनरई विजयन ने एलान किया है कि वे अपने राज्य में सीएए को लागू नहीं होने देंगे। केरल की वाममोर्चा सरकार ने तो सीएए के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव भी पास कराया था, लेकिन क्या ये तीनों राज्य वाकई इतने अधिकार संपन्न हैं कि केंद्र सरकार के पास कराए सीएए को लागू न होने दें? इस सवाल का जवाब है कि नहीं, हर राज्य की तरह पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल में भी सीएए लागू हो गया है और इन राज्यों की बीजेपी विरोधी सरकारें इसे किसी सूरत में रोक नहीं सकतीं। आखिर राज्य सीएए को लागू होने से क्यों नहीं रोक सकते, ये हम आपको बता रहे हैं।
संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत केंद्र सरकार को नागरिकता संबंधी नियम बनाने और किसी को नागरिकता देने का अधिकार है। पुराने नागरिकता कानून में व्यवस्था है कि किसी विदेशी को नागरिकता देने के लिए संबंधित जिले के प्रशासन से आख्या मंगाई जाती है, लेकिन सीएए में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। जिस तरह से बीजेपी विरोधी पार्टियों के शासित राज्यों ने पहले से ही ये कहना शुरू किया कि वे अपने यहां सीएए लागू नहीं होने देंगे, उसे देखते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने सीएए के तहत नागरिकता देने के लिए अलग व्यवस्था की है।
केंद्र सरकार ने सीएए के तहत नागरिकता देने में राज्यों का हाथ नहीं के बराबर रखा है। सीएए के तहत हर जिले और प्रदेश में एम्पावर्ड कमेटी होगी। जिला स्तर की एम्पावर्ड कमेटी ही नागरिकता देगी। इस कमेटी में जिला प्रशासन का एक छोटा अफसर ही सदस्य होगा। कमेटी के अध्यक्ष और अन्य सदस्य केंद्र सरकार के होंगे। ऐसे में राज्य चाहकर भी किसी को नागरिकता हासिल करने में रोड़ा अटकाने में सफल नहीं रहने वाले। बस व्यक्ति को खुद से संबंधित पुख्ता दस्तावेज देने होंगे और उसे नागरिकता मिल जाएगी। सीएए के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से 31 दिसंबर 2014 तक आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है।