
नई दिल्ली। कोरोनावायरस के संक्रमण से जहां पूरी दुनिया त्राहिमाम कर रही है वहीं इसको लेकर कई और दावे किए जा रहे हैं। कोई कह रहा है कि यह वायरस चीन के लैब से फैला तो कोई कह रहा है कि इसके फैलने में सबसे बड़ा हाथ चीन के मांस के बाजार का है तो वहीं कई वैज्ञानिक इस बात का भी दावा कर रहे हैं कि इसका फैलाव प्रकृति प्रदत्त है। अब इस सब में किस दावे को ज्यादा सही माना जाए यह सवाल है। ऐसे में एक सवाल और उठता है कि क्या ऐसे दावों के बीच जब पूरी मानव जाति इस महामारी की चपेट में है क्या इसकी कोई दवा या वैक्सीन खोजी जा सकेगी।
इस बीमारी को पैदा हुए छह महीने का समय हो गया है, लेकिन अभी तक कोई भी यह नहीं जानता कि यह बीमारी कहां से और कैसे आई। इस मामले में हमारे पास कई मत या थ्योरी हैं। इनमें से दो ज्यादा प्रचलित हैं। एक मतानुसार कोरोना वायरस का उत्पत्ति प्राकृतिक तरीके से हुई और दूसरे मत के मुताबिक यह वुहान के लैब में बनाया गया और वहीं से फैलना शुरू हुआ। शुरू से इस बारे में शोध चल रहे हैं कि यह बीमारी कैसे पैदा हुई लेकिन अभी तक कुछ भी प्रमाणिक तौर पर नहीं मिल सकता है।
प्राकृतिक उत्पत्ति के मत के हिसाब से, नोवल कोरोना वायरस या सार्स कोव-2 इंसानों में चमगादड़ों से आया है। इस बात के पर्याप्त सबूत हैं जो बताते हैं कि सार्स कोव-2 एक हॉर्सशू चमगादड़ से इंसानों में आया था। इस मत से जुड़ा एक हिस्सा यह भी है कि यह वायरस इंसानों में सीधे चमगादड़ों से नहीं आया, बल्कि पहले चमगादड़ से वह किसी दूसरे जानवर में आया और फिर उससे इंसानों में आया। ऐसा किस जानवर के जरिए हुआ यह अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है। हालांकि यह भी कहा गया है कि यह जानवर पेंगुलिन हो सकता है। लेकिन इसके प्रमाण नहीं मिल सके हैं।
दूसरा मत ज्यादा प्रचलित है जिसके मुताबिक यह कहा जा रहा है कि सार्स कोव-2 इंसान के द्वारा पैदा किया गया है। यह एक जेनिटिकली मॉडिफाइड (जीन्स में बदलाव करने के बाद) उत्पाद है। यह वायरस वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरलॉजी से निकला है। चीन ने इस दावे का पुरजोर खंडन किया है, लेकिन इस दावे के समर्थन में कई लोग हैं जिसमें अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी शामिल हैं। कुछ लोग तो सार्स कोव-2 को चाइना वायरस, वुहान वायरस, या कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना वायरस तक कह रहे हैं। अभी तक इस बात के भी प्रमाण नहीं मिले हैं जिससे यह साबित हो सके कि सार्स कोव-2 वायरस लैब में बनाया गया होगा। या वुहान लैब से लीक हुआ हुआ है। लेकिन इसे खारिज करने के प्रमाण भी उपलब्ध नहीं हैं।
इस दावे में कि कोरना वायरस वुहान लैब से नहीं निकला है, चीन का कहना है कि उनके सुरक्षा मानक वुहान लैब में बहुत उच्च स्तर के हैं। वुहान का सुरक्षा रिकॉर्ड साफ है, लेकिन साल 2004 में बीजिंग की लैब से ही इस तरह का सुरक्षा गड़बड़ी हुई थी और यह मूल कोरोना वायरस यानि सार्स के फैलने के दो साल के भीतर ही हुई थी। उससे समय एक शोधकर्ता इस वायरस के संपर्क में आया था और बताया जाता है कि उस शोधकर्ता की मां भी सार्स संक्रमण से मारी गई थी। लेकिन इस फैलाव को जल्दी रोककर नियंत्रित कर लिया गया।
कोविड-19 महामारी के पैदा होने से संबंधी किसी भी मत को सही या गलत प्रमाणित करने के लिए वैज्ञानिक पड़ताल की जरूरत है। प्राकृतिक उत्पत्ति के लिए वैज्ञानिकों को वुहान और उसके आसपास के सभी संभावित जानवरों जैविक आंकड़े जमा करने होगें जो चमगादड़ से इंसानों तक वायरस पहुंचा सकते हैं। इस तरह का शोध बहुत लंबी प्रक्रिया है। 2002 में फैली सार्स बीमारी को स्रोत सुनिश्चित करने में 15 साल का समय लग गया था।
अगर इस वैज्ञानिक अन्वेषण का काम अंतरराष्ट्रीय टीम ने भी किया तो इसके नतीजे में आने में भी काफी समय लग जाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन की वर्ल्ड हेस्थ एसेंबली ने एक प्रस्ताव पारित किया है जिसके मुताबिक एक स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय टीम इस बात की पड़ताल करेगी कि यह वायरस आखिर पैदा कैसे हुआ। चीन आखिरकार इस पर राजी हो गया है। आज के वैश्विक राजनैतिक हालात फिर भी इसे एक मुश्किल काम बनाते दिख रहे हैं।
दूसरी तरफ वुहान लैब की भूमिका को प्रमाणित करना भी उतना ही मुश्किल होगा। ऐसा लगता है कि कोरोना वायरस की इस महामारी का सबसे बड़ा रहस्य कभी नहीं सुलझ सकेगा।