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तंगी के कारण दलित छात्रा नहीं ले पाई IIT BHU में दाखिला, मुंबई के डॉक्टर ने उठाया पढ़ाई का खर्चा; इलाहाबाद HC ने भी की मदद

12वीं के बाद उसने सोचा कि वो इंजीनियर बनेगी और इसके लिए उसने आईआईटी की परीक्षा भी दी और उसने यह परीक्षा पास भी कर लिया…वो भी 1469 रेंक के साथ…उसकी तो खुशी के मारे पैरों तले जमीन ही खिसक गई।

नई दिल्ली। वो दलित थी..किसी गरीब की बेटी थी…वो पढ़ना चाहती थी…कुछ करना चाहती थी…कुछ बनना चाहती थी…वो अपने माता-पिता देश और समाज का नाम रोशन करना चाहती थी…वो इतिहास रचना चाहती थी…अपनी जैसी दूसरी लड़कियों को कुछ करने के लिए प्रेरित करना चाहती थी…वो दूसरे के लिए एक मिसाल कायम करना चाहती थी..लक्ष्यबद्ध हो चुकी वो बेटी अपने लक्ष्य को पाने के लिए दिन रात कड़ी मेहनत कर रही थी। उसने खूब मेहनत भी की। 10वीं की परीक्षा में तो उसने कमाल ही कर दिया था। पूरे 95 फीसद अंक आए थे उसके। फिर जब 12वीं में गई, तो उसने एक और कमाल कर दिया। पूरे 94 फीसद अंकों के साथ उसने 12वीं कक्षा उत्रीर्ण कर ली थी…उसे लगा कि अब वो इतिहास रच ही जाएगी…कुछ कमाल कर दिखाएगी। वैश्विक पटल पर देश दुनिया का नाम रोशन करेगी। दलित की बेटी यह सोचकर खुशी के मारे फूले नहीं समा रही थी कि अब उसका ख्वाब भी मुकम्मल होगा। लेकिन अफसोस अभी मुश्किलें सीना ताने उसकी राहों पर खड़ी थी।

HIGH COURT

12वीं के बाद उसने सोचा कि वो इंजीनियर बनेगी और इसके लिए उसने आईआईटी की परीक्षा भी दी और उसने यह परीक्षा पास भी कर लिया…वो भी 1469 रेंक के साथ…दाखिले के लिए उसका नाम बीएचयू में चयनित भी हो चुका था..उसकी तो खुशी के मारे पैरों तले जमीन ही खिसक गई। खुशी के मारे उसकी आंखों में अश्कों का दरिया बहना शुरू हो गया। मां-बाप भी खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। उसे ऐसा लगने लगा कि भगवान ने सारी खुशियां उसकी झोली में डाल दी है। माता- पिता, आसपड़ोस, भाई बहन और तमाम लोग उसे टोकरी भर के बधाई दे रहे थे। लेकिन इन बधाइयों के बीच उस बिटियां के दिल में कसक थी कि आखिर अब उसे कॉलेज में दाखिला कैसे मिलेगा? दाखिले के लिए पैसे कहां से आएंगे?

12वीं भी पास कर ली। आईआईटी का एगजाम भी क्लियर कर लिया। कॉलेय भी चयनित हो चुका है। लेकिन कॉलेज में दाखिला लेने के लिए अब पैसे कहां से आएंगे। यह चिंता उसे अंदर से खाई जा रही थी। कॉलेज में फीस जमा करने की आखिरी तारीख मुकर्रर हो चुकी थी। ऐसा नहीं है कि उस बिटिया ने पैसों का इंतजाम करने के लिए जहमत नहीं उठाई। उसने तो एड़ी चोटी का जोड़ लगा दिया। दिन रात एक कर दिया। सभी दरवाजे खटखटा लिए। उसके मां बाप ने भाई, बहन, रिश्तेदारों सभी के आगे हाथ फैला लिए, लेकिन मदद के नाम पर मिली सिर्फ और सिर्फ निराशा। एक ऐसी निराशा जिसने उसे अवसादग्रस्त कर दिया। एक ऐसी निराशा जिसने उसे अंदर से तोड़ दिया। अब ऐसे में दाखिले के लिए कॉलेज की मुकर्रर की गई तारीख नजदीक आ रही थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। वो बिटियां अपनी ही आंखों के सामने अपने ख्वाब को टूटते हुए नहीं देखना चाहती थी।

वो नहीं देखना चाहती थी अपने उस ख्वाब को टूटते हुए जो वर्षों पहले उसने देखा था। नहीं देखना चाहती थी वो उस ख्वाब को टूटते हुए जो पिछले कई वर्षों से उसके आंखों में पल रहे थे। इंजीनियर बनना केवल उसका ख्वाब नहीं, बल्कि वो उसका आत्मसम्मान था और अपने आत्मसम्मान को बेआबरू होते देखना उसे गवारा नहीं था। लिहाजा उसने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उसके कदम थम गए, क्या करती बेचारी, कंबख्त इस दुनिया में पैसों के बिना कुछ होता भी तो नहीं है, तो कोर्ट में कौन से उसके हिमायती बैठे हैं, जो मुफ्त में उसकी पैरोकारी करते हैं, वो भी मुंह खोलकर ही पैसा मांगते और वैसे भी अगर उसके पास होता ही, तो भला उसे कोर्ट जाने की नौबत ही क्यों आती ?

COURT

खैर, वो वाली कहावत तो आपने सुनी ही होगी ना, कि जिसका कोई नहीं होता, उसका भगवान होता है, इस कहावत को आपने महज सुना होगा, पढ़ा होगा या लिखा होगा, लेकिन इस दलित बिटिया के जिंदगी में यह कहावत स्वत: चरितार्थ हुई। जी हां…जब उसके पास कोर्ट में अपना पक्ष रखने के लिए पैसे नहीं थे, तो बच्ची की पढ़ाई के प्रति चाहत को ध्यान में रखते हुए अधिवक्ता सर्वेश दुबे ने बिटिया का पक्ष मुफ्त में पैरवी करने का फैसला किया। वहीं, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज दिनेश कुमार सिंह जब इस पूरे माजरे को अधिवक्ता के मुख से सुन रहे थे, तो उनकी आंखें भर आई। उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने उस दलित बिटिया की पढ़ाई का खर्च अपने कंधे पर उठाने का फैसला कर लिया और भरी अदालत में यह ऐलान कर दिया कि इस बिटिया की पढ़ाई में आने वाला खर्च वो वहन करेंगे।

वहीं, जैसे ही जज ने यह फैसला सुनाया, तो कोर्ट में हाजिर सभी लोगों की आंखें नम हो गई और उनके फैसले की जमकर सराहना की जाने लगी। खुशी की बात ये रही कि दाखिले की आखिरी तारीख से पहले जज ने उस बच्ची की फीस भरने का फैसला सुनाया। बच्ची के परिजनों की आर्थिक बदहाली का अंदाजा आप महज इसी से लगा सकते हैं कि उसके पिता डायलिसिस पर हैं, बच्ची के परिजन बताते हैं कि उन्होंने तो ये भी नहीं सोचा था कि उनकी बच्ची कभी 12वीं भी पास कर पाएगी। लेकिन आज वो कॉलेज में दाखिला लेने जा रही है, यह उनके लिए बहुत बड़ी बात है। बहरहाल, बच्ची की प्रतिभा से हर कोई प्रभावित हो रहा है, लेकिन यह सोचकर बेहद तकलीफ होती है कि आज भी आजादी के सात दशकों के बाद कई ऐसे लोग हैं, जिनकी पढ़ाई महज इसलिए अवरुद्ध हो जाती है, क्योंकि उनके पास कभी दाखिले लेने के लिए पैसा नहीं होता है, तो कभी किताबें खरीदने के लिए। मजबूरन उन्हें पढ़ाई छोड़ने का फैसला करना पड़ता है और अंत में उनका भविष्य अंधकार के सैलाब में सराबोर हो जाता है।