नई दिल्ली। सत्ता में आए तो ये कहकर थे कि दिल्ली को लंदन बना देंगे, लेकिन अरविंद केजरीवाल के शासनकाल में दिल्ली मुसीबतों का पिटारा नहीं, संदूक बन गई है। पानी नहीं, बिजली नहीं और अब ट्रांसपोर्ट के लिए जिन डीटीसी बसों का इस्तेमाल लोग करते थे, उन्हें भी पूरी उम्र पार कर लेने वाला यानी कबाड़ घोषित कर दिया गया है। ऐसे में दिल्ली में अब हर कोई पूछ रहा है- केजरीवाल जी, तुसी कि कर दित्ता ! दिल्ली में ट्रांसपोर्ट के लिए 1971 में डीटीसी की स्थापना की गई थी। तब से लेकर पहली बार ऐसा हुआ है, जब उसकी ओर से बताया गया है कि सारी बसें अपनी उम्र पार कर चुकी हैं।
डीटीसी के पास 3760 बसे हैं। आम लोगों को कितने खतरे में रखकर केजरीवाल सरकार ट्रांसपोर्ट करा रही है, ये इसी से पता चलता है कि कुल बसों में से 99 फीसदी तकनीकी तौर पर सड़क पर चलने लायक नहीं है। डीटीसी आठ साल पुरानी बसों को इस श्रेणी में डालती है। जबकि जेएनएनयूआरएम के तहत लो फ्लोर सीएनजी बसों की उम्र 12 साल या 7 लाख 50 हजार किलोमीटर तय की गई है।
डीटीसी की सभी बसें ये समयसीमा पार कर चुकी हैं। दिल्ली सरकार का कहा है कि बीते दिनों नई बसों की खरीद के लिए काफी बातचीत हुई है। उनका कहना है कि सीएम केजरीवाल भी काफी गंभीर हैं, लेकिन सवाल ये उठता है कि केजरीवाल गंभीर हैं, तो नई बसें खरीदी क्यों नहीं गई और कबाड़ बन चुकी बसों में लोगों को ठूंसकर ले जाने का काम आखिर हो क्यों रहा है।
इस खबर के सामने आने के बाद दिल्ली सरकार का कहना है कि अगले छह महीने में वह 1700 नई बसें खरीदेगी। पिछली बार साल 2008 में डीटीसी ने नई बसें खरीदनी शुरू की थीं और साल 2011 के अक्टूबर महीने तक खरीदी थीं। पिछले साल 1000 लो फ्लोर बसें खरीदने का टेंडर दो कंपनियों को दिया गया था।
बसों की आयुसीमा पार होने के बाद उन्हें कबाड़ के तौर पर बेचा जाना चाहिए। केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय के नियमों के अनुसार भी लाइफ पूरी कर चुके वाहन सड़क पर नहीं चलाए जा सकते, लेकिन केजरीवाल सरकार लोगों की जान के लिए खतरा बनी बसों को चलवाती रही है।