नई दिल्ली। ‘सपने वो नहीं है जो आप नींद में देखे, सपने वो है जो आपको नींद ही नहीं आने दें’ ये फेमस लाइन किसे नहीं पता और इसे कहने वाले को भला कौन नहीं जानता है। भारत की महान हस्तियों में से एक हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, जिन्होनें इस लाइन को ना सिर्फ कहा था बल्कि इसे शत प्रतिशत सार्थक भी कर के दिखाया था। हम सभी जानते हैं कि कलाम साहब का जीवन कितना कठिन और चुनातिपूर्ण रहा। विषम परिस्थितियों में पढ़ाई से लेकर एक महान वैज्ञानिक के रूप में खुद को स्थापित करना और अंततः हमारे देश के सर्वोच्च नागरिक बनने तक की उनकी ये यात्रा तमाम उतर-चढ़ाव से परिपूर्ण रही। आज उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर चलिए आपको बताते हैं उनके जीवन के वो टर्निंग पॉइंट्स जिन्होंने अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम को डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम बनाया।
बचपन में मिला गुरु का मार्गदर्शन
कहते हैं माता-पिता के बाद एक गुरु ही ऐसा व्यक्ति है जो एक बच्चे का भविष्य गढ़ता है। कलाम साहब के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। वो बचपन से ही एक होनहार छात्र थे और बचपन में उन्हें अपने गुरु श्री शिवसुब्रमण्यम अय्यर के रूप में ऐसा मार्गदर्शन मिला जिसने उन्हें अपने सपनों की उड़ान भरने का हौसला दिया। एक वाकिये का जिक्र करते हुए कलाम साहब ने कहा था कि एक बार उनके गुरु जी उन्हें और बाकी बच्चों को समुद्र के तट पर ले गए और उड़ते हुए समुद्री पक्षियों को दिखाकर कहा ‘पक्षी उड़ते हैं तब देखो कैसे लगते हैं।’ ये दृश्य कलाम साहब के जेहन में ऐसा बैठा कि उन्होंने उसी क्षण ठान लिया कि वो भी अपनी उड़ान को रुकने नहीं देंगे।
जब कलाम IAF परीक्षा में हुए फेल
जब कलाम साहब भारतीय वायु सेना की परीक्षा में असफल हुए तो वो बेहद हताश हो गए और एक दिन वो स्वामी शिवानंद आश्रम पहुंचे, जहां स्वामी शिवानंद ने उन्हें सलाह दी कि वह अपने भाग्य को स्वीकार करे और जहां भाग्य ले जाए, वहीं चले। स्वामी जी कि इन बातों से वो इतने प्रभावित हुए कि ISRO के एक प्रभाग, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPER) में शामिल हो गए। इस तरह रॉकेट और मिसाइल प्रौद्योगिकी में उनका बहुप्रचारित करियर शुरू हुआ और भारत अपना ‘मिसाइल मैन’ मिला।
भारत के मिसाइल प्रोग्राम में कलाम की एंट्री
साल 1982 में भारत सरकार के मिसाइल कार्यक्रम में कलाम साहब की एंट्री हुई और यहां से कभी उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
जब बनें वैज्ञानिक सलाहकार
जुलाई 1992 में कलाम साहब ने अरुणाचलम से रक्षा मंत्रालय के वैज्ञानिक सलाहकार और रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग के सचिव का पदभार संभाला।
सफल परमाणु परीक्षण
कलाम द्वारा सफल परमाणु परीक्षण उनके जीवन काल का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण टर्निंग पॉइंट था। साल 1998 में कलाम साहब ने सफल परमाणु परीक्षण कर विश्व पटल पर महान वैज्ञानिकों की श्रेणी में खुद को स्थापित किया और इसी के साथ कलाम साहब के राजनीती में प्रवेश के द्वार भी खुलने लगे। हालांकि, शुरुआत में कलाम साहब ने इन प्रस्तावों को नजरअंदाज किया क्योंकि वो कभी राजनीती का हिस्सा नहीं बनना चाहते थे।
जब आया पीएम का फोन
10 जून 2002 का दिन कलाम साहब के लिए एक साधारण दिन की ही तरह था। हर रोज की तरह कलाम साहब यूनिवर्सिटी से लेक्चर लेकर लौट रहे थे कि तभी एक प्रोफ़ेसर उनके पास आए और कहा कि सुबह से आपके दफ्तर की घंटी बज रही है। कोई आपसे बात करना चाहता है। कलाम साहब ने दफ्तर पहुंचते ही फोन उठाया तो दूसरी ओर से आवाज आई – प्रधानमंत्री आपसे बात करना चाहते हैं।’ और इसी कॉल के बाद कलाम साहब की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई।
कलाम साहब के पास चंद्रबाबू नायडू का फोन आया और उन्होंने कहा – ‘प्रधानमंत्री जी का एक बहुत जरूरी फ़ोन आपके पास आने वाला है, प्लीज, ना मत कीजियेगा!’ इसके तुरंत बाद ही कलाम साहब को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल जी का फोन आया और उन्होंने कहा- ‘मैं एक पार्टी मीटिंग से लौट रहा हूं। जहां हम सभी ने मिलकर ये फैसला लिया है कि देश को एक राष्ट्रपति के रूप में आपकी जरूरत है। मुझे आज रात घोषणा करनी है और आपकी तरफ से सिर्फ एक हां या ना की आवश्यकता है।’ कलाम साहब ने बहुत सोचा और उन्हें समझ आया कि एक वैज्ञानिक के रूप में तो वो देश में अपना योगदान दे ही रहे हैं। मगर एक राष्ट्रपति के रूप में उन्हें उनका विजन देश के सामने रखने का मौका मिलेगा। इसके बाद उन्होंने अटल जी को अपनी स्वीकृति दे दी। इस तरह भारत देश ने एक ‘मिसाइल मैन’ को देश के सर्वोच्च पद पर काबिज होते देखा।