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Family Feud in Politics: कई और सियासी खानदानों में भी हुई वर्चस्व की जंग, हर जगह सुलह की कोशिशें रही नाकाम

Family Feud in Politics: मशहूर पत्रकार खुशवंत सिंह ने अपनी किताब ‘ट्रुथ, लव एंड ए लिटिल मैलिस’ में इस घटना का पूरा ब्योरा दिया है कि किस तरह मेनका और इंदिरा के बीच वर्चस्व की जंग चली और किस तरह इसका पटाक्षेप हुआ।

नई दिल्ली। आरजेडी के अध्यक्ष लालू यादव के दोनों बेटों तेजस्वी और तेजप्रताप यादव के बीच वर्चस्व की जंग तेज होती दिख रही है। हालांकि, ये पहला वाकया नहीं है, जब किसी सियासी परिवार में वर्चस्व की जंग हुई हो। बीते दिनों एलजेपी अध्यक्ष रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस ने अपने भतीजे चिराग पासवान को पार्टी से निकाल बाहर किया था। इसके अलावा भी कई ऐसे सियासी परिवार हैं, जहां वर्चस्व की जंग ने खानदान को बांट दिया।

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पासवान का परिवार बंटा

सबसे पहले बात करते हैं रामविलास पासवान के परिवार की। पासवान जब तक जीवित थे, सब कुछ ठीक था। उन्होंने अपने बेटे को पार्टी का अध्यक्ष बना दिया, लेकिन किसी ने चूं तक नहीं की थी, लेकिन 8 अक्टूबर 2020 को पासवान के निधन के साथ ही बिहार की सियासत का ये परिवार टूटकर बिखर गया। रामविलास पासवान के निधन को महज 8 महीने बीते कि इस साल जून में उनके भाई पशुपति पारस ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया। अचानक बुलंद हुए इस झंडे से चिराग पासवान हक्के-बक्के रह गए। पशुपति ने अंदरखाने पार्टी के पदाधिकारियों को मिला लिया था। चार सांसदों को साथ लेकर उन्होंने एलजेपी पर खुद का हक जता दिया और केंद्रीय मंत्री भी बन गए। चिराग को चाचा के हाथों पार्टी का अध्यक्ष पद गंवाना पड़ा।

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जब अखिलेश से हारे मुलायम

अब बात यूपी के नंबर वन सियासी खानदान यानी मुलायम सिंह यादव के परिवार की। 2016 का अक्टूबर का महीना था, जब समाजवादी पार्टी के एक प्रोग्राम के दौरान मुलायम के बेटे अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह के बीच लंबे अर्से से जारी खींचतान सार्वजनिक मंच पर आ गई। चाचा और भतीजे के बीच मुलायम के सामने ही तू-तू, मैं-मैं हुई। शाम होते-होते यह टकराव और तेज हो गया। मुलायम ने अखिलेश को सपा अध्यक्ष पद से हटा दिया, लेकिन अखिलेश ने पार्टी के तमाम नेताओं को साथ लाकर मुलायम को ठेंगा दिखा दिया। जंग तेज होती गई और इसके साथ ही आखिरकार मुलायम ने बेटे के सामने हथियार डाल दिए। भाई शिवपाल सिंह को सपा छोड़नी पड़ी और उन्होंने प्रसपा नाम से नई पार्टी बनाई। इस परिवार में अब भी एका नहीं हो सका है।

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बहू मेनका को इंदिरा ने निकाला

अब आपको ले चलते हैं 80 के दशक में। साल 1977 में इमरजेंसी खत्म हुई। इसके साथ ही इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी भी बेअसर हो गए। फिर 23 जून 1980 की तारीख आई। इस दिन एक विमान दुर्घटना में संजय गांधी का निधन हो गया। इसके साथ ही इंदिरा के परिवार में वर्चस्व की जंग खुलकर सामने आ गई। बताया जाता है कि इंदिरा ने कभी संजय की पत्नी मेनका को पसंद नहीं किया। फिर भी बेटे की वजह से वह कुछ बोलती नहीं थीं। फिर संजय जब नहीं रहे, तो इंदिरा ने एक दिन मेनका को बेटे वरुण समेत घर से बाहर निकाल दिया। मशहूर पत्रकार खुशवंत सिंह ने अपनी किताब ‘ट्रुथ, लव एंड ए लिटिल मैलिस’ में इस घटना का पूरा ब्योरा दिया है कि किस तरह मेनका और इंदिरा के बीच वर्चस्व की जंग चली और किस तरह इसका पटाक्षेप हुआ।