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Ratan Tata’s Last Rites Were Performed : अलविदा…भारत के ‘अनमोल रतन’ का राजकीय सम्मान के साथ किया गया अंतिम संस्कार

Ratan Tata’s Last Rites Were Performed : देश को सर्वोपरि रखते हुए हमेशा जनहित के काम करने वाले दिग्गज कारोबारी रतन टाटा आज पंचतत्व में विलीन हो गए। मुंबई के वर्ली स्थित श्मशान घाट पर कई वीवीआईपी समेत हजारों की संख्या में मौजूद लोगों ने रतन टाटा को नम आंखों से अंतिम विदाई दी।

नई दिल्ली। भारत के दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा जिन्होंने सदैव देश को सर्वोपरि रखते हुए हमेशा जनहित के काम किए आज पंचतत्व में विलीन हो गए। मुंबई के वर्ली स्थित श्मशान घाट में राजकीय सम्मान के साथ रतन टाटा का अंतिम संस्कार किया गया, जहां हजारों की संख्या में मौजूद लोगों ने ‘भारत के इस अनमोल रतन’ को नम आंखों से आखिरी विदाई दी। रतन टाटा का कल 9 अक्टूबर को देर रात मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया था। वह 86 वर्ष के थे।

इससे पहले आज सुबह रतन टाटा के पार्थिव शरीर को मुंबई के नारीमन रोड स्थित राष्ट्रीय कला केंद्र के नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स (एनसीपीए) ग्राउंड में अंतिम दर्शनों के लिए रखा गया था। देश के तमाम राजनीतिज्ञों से लेकर छोटे-बड़े कारोबारियों, फिल्म जगत से जुड़े लोगों समेत बहुत बड़ी संख्या में आम नागरिकों ने भी अपने चहेते रतन टाटा को वहां पहुंचकर श्रद्धांजलि अर्पित की। विदेश यात्रा के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी अंतिम यात्रा में शामिल नहीं को सके।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह रतन टाटा के अंतिम संस्कार के दौरान मौजूद रहे। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे, उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए। देश के सबसे अमीर बिजनेसमैन मुकेश अंबानी भी अपनी पत्नी नीता अंबानी के साथ रतन टाटा को श्रद्धांजलि देने पहुंचे। वर्ली श्मशान में इलेक्ट्रिक अग्निदाह के जरिए रतन टाटा के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया गया।

पारसी होने के बाद हिंदू रीति रिवाज से हुआ अंतिम संस्कार

रतन टाटा पारसी थे लेकिन उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति रिवाज के मुताबिक हुआ। उसके पीछे कारण यह है कि पारसी लोगों के शवों को टावर ऑफ साइलेंस में रखा जाता है। टावर ऑफ साइलेंस एक ऐसी जगह होती है जहां पारसी लोग अपने प्रियजनों की मौत के बाद उनके पार्थिव शरीर को प्रकृति के हवाले कर देते हैं, मतलब उनका शरीर गिद्धों के लिए छोड़ दिया जाता है। मगर अब शहरों में गिद्ध भी विलुप्त हो गए हैं ऐसे में धीरे-धीरे इस प्रक्रिया में भी बदलाव लाया जा रहा है। यही कारण है कि रतन टाटा का अंतिम संस्कार इस तरह से किया गया।