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Congress: 1970 के दशक में कांग्रेस ने खालिस्तानी मुद्दे को पैदा करने की रची साजिश: पूर्व रॉ अधिकारी का सनसनीखेज खुलासा

Congress: कुछ दिनों के बाद यह खींचतान तनाव में तब्दील हो गई। इस आंदोलन की शुरुआत 1978 के दशक में हुई थी। यह सबकुछ तत्कालीन सरकारों ने राजनीतिक हित को ध्यान में रखते हुए शुरू किया था। उन्होंने एएनआई से बातचीत के दौरान उन्होंने हिंदुओं को डराने के लिए यह साजिश रची थी,जिसमें उन्हें काफी हद तक सफलता  मिली थी।

नई दिल्ली। अमूमन, हिंदुस्तान की राजनीति में खालिस्तान को लेकर चर्चाओं का बाजार गुलजार रहता है। मुख्तलिफ सियासी दलों के बीच इस मुद्दों को लेकर रार बनी ही रहती है। बीते दिनों खालिस्तानी मुल्क की पैरोकारी करने वाले अमृतपाल सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार कर डिब्रूगढ़ स्थित जेल भेज दिया। अब इसी बीच RA&W के पूर्व स्पेशल सेक्रेटरी GBS सिद्धू ने ANI न्यूज एजेंसी से बातचीत के दौरान खालिस्तानी आंदोलन को लेकर कुछ ऐसे धमाकेदार खुलासे कर दिए हैं, जिसके बाद आगामी दिनों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच जुबानी जंग देखने को मिल सकती है। दरअसल, RA&W के पूर्व स्पेशल सेक्रेटरी GBS सिद्धू ने कहा कि ऑपरेशन भिंडरावाले की पटकथा ही तत्कालीन प्रधानमंत्री के कार्यालय से लिखी गई थी और हैरान करने वाली बात है कि इसमें एक या दो नेता नहीं, बल्कि कई नेता शामिल थे। जिसमें ज्ञानी जेल सिंह और पूर्व प्रधानमंत्री संजय गांधी ने अकाली दल और जनता पार्टी के बीच में खींचतान पैदा करने के मकसद से की थी।

कुछ दिनों बाद यह खींचतान तनाव में तब्दील हो गई। इस आंदोलन की शुरुआत 1978 के दशक में हुई थी। यह सबकुछ तत्कालीन सरकारों ने राजनीतिक हित को ध्यान में रखते हुए शुरू किया था। उन्होंने एएनआई से बातचीत के दौरान कहा कि हिंदुओं को डराने के लिए यह साजिश रची थी, जिसमें उन्हें काफी हद तक सफलता मिली थी। खालिस्तानी आंदोलन को एक सोची समझी साजिश के तहत जन्म दिया गया था, ताकि देश के लोग यह सोचने पर मजबूर हो सकें कि भारत की अखंडता अब खतरे में है। इतना ही नहीं, कांग्रेस नेता कमलनाथ ने उन्हें एक संत की उपमा दी थी। यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उस वक्त कई मर्तबा अपनी जान को खतरे में बता चुकी थीं, लेकिन उन्होंने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया था। दूसरे  शब्दों में कहें तो उन्होंने इस खतरे को कभी गंभीरता से लिया ही नहीं। जिसका नतीजा आज हम सबके सामने है।

जीएसबी सिद्धू ने बताया कि उन दिनों कुछ लोगों को कनाडा भी भेजा गया था, ताकि वहां खालिस्तानी आंदोलन की मौजूदा स्थिति के बारे में पता लगाया जा सकें। 1980 में रॉ के अधिकारी को कनाडा भेजने पर पता चला कि वहां सिर्फ और सिर्फ दो लोग की खालिस्तानी मुल्क की पैरोकारी करते हैं। इसके बाद संजय सिंह, ज्ञान जेल सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं ने खालिस्तानी आंदोलन  को व्यापक रूप प्रदान करने का बीड़ा अपने कांधों पर उठा लिया, जिसका नतीजा हुआ कि पंजाब से बड़ी संख्या में युवा इस आंदोलन में शामिल हुए। इसके बाद इस दिशा को मूर्त रूप देने के लिए इंदिरा गांधी ने 26 दौरे की वार्ता भी की। इसके बाद संजय गांधी ने इस मुद्दे को चुनाव में भुनाने की कोशिश की।


उन्होंने भिंडरावाला के नाम पर 1985 का चुनाव जीतने की योजना बनाई। इसके बाद किसी सूत्रों से यह जानकारी मिली की इंदिरा गांधी की जान खतरे में है। इसके बाद भिंडरावाले को स्वर्ण मंदिर में शिफ्ट किया गया, ताकि उसे गिरफ्तार किया जा सकें। हालांकि, उसे पकड़ना आसान नहीं था। बहरहाल, अब पूर्व रॉ प्रमुख के इस धमाकेदार खुलासे के बाद देश में सियासी बहस छिड़ सकती है। कांग्रेस और बीजेपी इस पूरे मसले को लेकर मोर्चा संभाल सकती हैं। अब ऐसे में आगामी दिनों में यह पूरा माजरा क्या रुख अख्तियार करता है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।