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Joshimath Sinking : क्या जल स्रोत के ठीक ऊपर बसा है जोशीमठ? पहाड़ों के दरकने पर चिंता में डालती है Experts की ये आशंका..

Joshimath Sinking : गृह मंत्रालय और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिकारियों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात की और क्षेत्र में भूमिगत जल जमाव के स्थान का पता लगाने की जरूरत पर जोर दिया है।

चमोली। उत्तराखंड के पहाड़ों में बसा जोशीमठ धंसक रहा है। कोई एनटीपीसी के निर्माण कार्य पर इसका ठीकरा फोड़ है तो कोई प्राकृतिक कारणों को इसका जिम्मेदार ठहरा रहा है। लेकिन एक बात सोलह आने सच है कि अति प्राचीन और एतिहासिक नगर जोशीमठ अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहा है। समुद्र तल से 6,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित इस नगर क्षेत्र में किए जा रहे अंधाधुंध और अवैज्ञानिक विकास के दुष्परिणामों को लेकर विशेषज्ञों ने काफी समय पहले ही आगाह किया था लेकिन किसी ने समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया। अब सरकारें कह रही हैं कि इस प्राचीन नगर को बचाने की हर मुमकिन कोशिश की जाएगी लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा करना बेहद खतरनाक होगा। आइए करते हैं उन कारकों की पड़ताल जिनकी वजह से देवभूमि का प्रवेश द्वार माना जाने वाला यह नगर मरणासन्न स्थिति में आकर खड़ा है।

JOSHIMATHआपको बता दें कि विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन का धंसना मुख्य रूप से एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना के कारण है। पर्यावरण के साथ हो रहे खिलवाड़ को लेकर यह एक गंभीर चेतावनी है। विशेषज्ञों ने आगाह किया कि यदि समय रहते कड़े उपाय नहीं किए गए तो पुरानी स्थिति को बहाल कर पाना मुश्किल होगा। हालांकि इसके बीच एक और बड़ी वजह सामने आने की आशंका जताई जा रही है। इसी के चलते गृह मंत्रालय और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिकारियों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात की और क्षेत्र में भूमिगत जल जमाव के स्थान का पता लगाने की जरूरत पर जोर दिया है।

joshimath land subsidence 2गौरतलब है कि समाचार एजेंसी यूनीवार्ता की रिपोर्ट के मुताबिक, चमोली के मुख्य विकास अधिकारी डॉ. ललित नारायण मित्र कहते हैं कि आठ अप्रैल 1976 को गढ़वाल के तत्कालीन मंडलायुक्त महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में तत्कालीन संयुक्त राज्य उत्तर प्रदेश सरकार ने एक कमेटी गठित की थी। इस कमेटी में लोक निर्माण विभाग, सिंचाई विभाग और तत्कालीन रुड़की इंजीनियरिंग कालेज के विशेषज्ञों, भूविज्ञानियों के अलावा, स्थानीय प्रबुद्धजनों को शामिल किया गया था। कमेटी ने जोशीमठ में पानी की निकासी यानी ड्रेनेज के पुख्ता इंतजाम करने को कहा था। साथ ही अलकनंदा नदी से भू-कटाव की रोकथाम करने के सुझाव दिए थे लेकिन इस ओर गंभीरता से बातचीत नहीं की गई।

प्राप्त जानकारी के अनुसार वैज्ञानिक ऐसा मानकर चल रहे हैं कि जमीन के नीचे पानी जहां जमा हुआ है वह इलाका जोशीमठ में है। हालांकि, अभी इस जल स्रोत का पता नहीं चल पाया है। अधिकारियों ने क्षेत्र का भी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण कराने की सलाह दी। समाचार एजेंसी पीटीआई भाषा की रिपोर्ट के मुताबिक, सन 1978 में एक कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा था कि जोशीमठ कस्बे के साथ नीती और माणा घाटियों में बड़े निर्माण कार्य नहीं किए जाने चाहिए लेकिन इस पर कोई बातचीत नहीं हो सकी।