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अयोध्या : जानें आखिर क्यों पीएम मोदी ने अपने संबोधन में ‘जय श्रीराम’ की जगह लगाया ‘जय सियाराम’ का नारा

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की भूमिपूजन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब लोगों को संबोधित किया तब उन्होंने राम मंदिर आंदोलन के परिचित नारे, ‘जय श्रीराम’ को त्यागकर ‘सियावर रामचंद्र की जय’ और ‘जय सियाराम’ का नारा ही बार-बार दोहराया।

अयोध्या। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की भूमिपूजन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब लोगों को संबोधित किया तब उन्होंने राम मंदिर आंदोलन के परिचित नारे, ‘जय श्रीराम’ को त्यागकर ‘सियावर रामचंद्र की जय’ और ‘जय सियाराम’ का नारा ही बार-बार दोहराया। ये मात्र इत्तेफाक नहीं है। लेकिन अब सवाल ये उठता है कि उन्होंने यह नारा क्यों लगाया?

PM Narendra Modi

दरअसल, जयश्रीराम से जयसियाराम पर वापसी के गहरे राजनीतिक और सामाजिक मायने हैं और इनमें भविष्य की राजनीति के नए बीज संरक्षित हैं। इसी नारे के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने राम के नाम पर राजनीति की दिशा को भी उसकी दूसरी यात्रा पर आगे बढ़ा दिया है। राजनीतिक दृष्टि से देखें तो जयश्रीराम का सफर यहां से खत्म होता है और जयसियाराम के साथ आगे की यात्रा प्रारंभ होती है।

jai shri raam flag

जानें ‘जयश्रीराम’ का इतिहास

बाबरी विध्वंस से लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक के सफर में जयश्रीराम के नारे से जो कुछ हासिल किया जा सकता था, वो किया गया। लेकिन अब आंदोलन की उग्रता का कारण और मकसद खत्म हो चुके हैं। मोदी दरअसल अपने भाषण में जयसियाराम के उच्चार के साथ अब वापस उसी राम पर लौटना चाहते हैं जो जनमानस की चेतना और व्यवहार का हिस्सा रहे हैं।

राम को अब आंदोलन के पोस्टर से उतारकर वापस सर्वसाधारण तक ले जाने की तैयारी की जाएगी। राम से जुड़े लोग दोनों तरफ हैं, भाजपा के समर्थन में भी और विरोध में भी। राजनीतिक भी और अराजनीतिक भी। आमजन भी और बहुजन भी। इसलिए अब एक ऐसे राम को आगे लेकर जाना है जो सबके हैं। मोदी ने अपने भाषण में जोर देकर कहा भी कि राम सबमें हैं और राम सबके हैं। मंदिर आंदोलन में योगदान से लेकर आगे के एक बड़ी और समावेशी राजनीति तक के रास्ते जयश्रीराम से नहीं, जय सियाराम से ही खोले जा सकते हैं। मोदी के भाषण की यह एक अहम बात है।

Narendra Modi Ayodhya

जय सियाराम का नारा राम को आंदोलन और पार्टी समर्थकों से निकालकर जन-जन तक ले जाने का काम करेगा। यह दूर रहे लोगों को भी जोड़ेगा। जातियों के बीच यह पुल का काम करेगा और समाजों को एकसाथ बैठाने का जरिया बनेगा। इस नारे से भाषण शुरू करके मोदी लगभग पूरे समय राम की व्यापकता, सुग्राह्यता और समावेशी छवि को ही विस्तार से बताते रहे। इससे नारे के निहितार्थ समझे जा सकते हैं।